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झूलेलाल साईं के नाम प्रतियोगिता के साथ चालिहो की शुरुआत


नागपुर। झूलेलाल चालिहो के प्रथम दिवस शुक्रवार 16 जुलाई को मूअनि जो दड़ो ज्ञान मंच की ओर से 'झूलेलाल साईं के नाम' प्रतियोगिता का आयोजन किया गया. प्रतियोगिता ऑनलाइन ज़ूम पर आयोजित की गई. इसमें देशभर से सिंधी भाषी लोगों ने भाग लिया. प्रतियोगिता का उद्देश्य लोगों को झूलेलाल संत के अनेकानेक नामों से अवगत कराना था. 


आमतौर पर सिंधी भाषी भी झूलेलाल जी के अन्य नामों से परिचित नहीं होते हैं. प्रतियोगिता की शुरुआत, झूलेलाल जी के सैकडो पर नामों से की गई. इन नामों को ध्यान में करने के पश्चात, प्रतियोगिता में प्रतिभागियों से इन्हीं नामों पर प्रश्न किये गए.  

डॉ. अशोक मोटवानी ने कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए कहा कि झूलेलाल साईं ही एकमात्र ऐसे संत थे जिन्होंने सिंधी समाज को कायम रखा, और सिंधी समाज का जो भी आज नाम है, वह साईं झूलेलाल के कारण है. हम लोग जो जन्मदिन आदि के कार्यक्रम करते हैं, यदि ये कार्यक्रम हम झूलेलाल मंदिर में जाकर करें, तो बच्चों को पता रहेगा कि ये हमारे मंदिर हैं, तथा ये हमारे इष्टदेव हैं. न तो हम सिंधी में बात करते हैं, न ही हम अपने भगवान के बारे में बताते हैं. हमारे एक ही इष्टदेव हैं, इसीलिए कोरोनाकाल में मंदिर भले ही बंद हों, घर में ही चालिहो मनाने की प्रथा को कायम रखना चाहिए.

डॉ. वंदना खुशालानी ने कहा कि हम सिंधी, बडी विरासत के अधिकारी हैं. हम जिस सभ्यता और संस्कृति के वारिस हैं, अगर हम उसे नहीं पहचानते हैं, अपनी भाषा नहीं बोलते हैं, अपने रीति-रिवाज नहीं मानते हैं, अपने पहनावे नहीं जानते हैं, अपने बड़ों की मातृभूमि के प्रति अन्भिग्न हैं, तो हम छितर-बितर हो जायेंगे. हमारे पूर्वजों ने बड़े कष्ट सहे, और उनके दुखों के अनेक फ़साने हैं. झूलेलाल एकता के प्रतीक हैं. झूलेलाल की हर पूजा के बाद हम ईश्वर के समक्ष आँचल उठाकर सुख-शांति, आराम और सुकून की दुआएं मांगते हैं, तो महज़ अपने घर-परिवार के लिए नहीं, अपितु सम्पूर्ण विश्व और मानवजाति के लिए, ताकि वे सुखी रहें, और उनकी मनोकामनाएं पूरी हों. 

डॉ. भारत खुशालानी, इस प्रतियोगिता के आयोजक एवं संचालक थे. गणितीय ढाँचे के आधार पर उन्होंने सोलह वर्गों की श्रंखला वाली रेखाओं की ग्रिड बनाई. हर ग्रिड में झूलेलाल साईं का एक-एक नाम छिपा हुआ था. इस नाम को ढूंढ निकालने के लिए प्रतिभागीओं को अपने स्मृति-पटल में से झूलेलाल जी के अनेकानेक नामों को खंगालना पडा, जिससे आज तक न सुने हुए झूलेलाल साईं के नाम भी उनके जहन में बस गए. हर नाम के बाद सभी प्रतिभागियों ने चर्चा की कि झूलेलाल साईं को इस नाम से क्यों पुकारा जाता है. 

मसलन, ‘उडेरोलाल’ नाम के लिए प्रतिभागियों ने बताया कि झूलेलाल साईं का नाम उनकी छठी के अनुसार ‘उदयचंद’ था जिन्हें प्रेमपूर्वक उडेरोलाल भी कहा जाता था. ‘बेहराणेवारो’ के लिए उन्होंने बताया कि सिंधू नदी के किनारे चालीस दिन की उपासना में बेहराणा बनाया गया था, जिसमें कई प्रकार की खाद्य सामग्रियां शामिल होती हैं, उसे हम वरुण देवता को अर्पित करते हैं कि चालीस दिन तक हम अन्न ग्रहण नहीं करेंगे अगर आप हमारी रक्षा नहीं करेंगे. इसीलिए हर शुक्रवार को बेहराणा निकाला जाता है.

 ‘मच्छू अवतार’ के बारे में बताया कि झूलेलाल मछली पर सवारी करते हैं, उनपर विराजमान हैं और यह उनका सबसे बड़ा वाहन है. चूंकि झूलेलाल जी सिंधियों के राजा हैं, फलस्वरूप उन्हें ‘राजापीर’ नाम से भी संबोधित किया जाता है. कई प्रतिभागियों ने ग्रिड के व्यंजनों के आधार पर झूलेलाल साईं के नए नाम भी बनाए तथा उन नामों की तर्कसंगति का प्रयास किया. ‘तारालाल’ नाम बनाते हुए उन्होंने इस नाम के समर्थन में कहा कि वो हमारी आँखों के तारे हैं इसीलिए उन्हें यह नाम देना जायज बनता है. 

लेकिन इस नाम को तुरंत ही यह कहकर अमान्य करार कर दिया गया कि झूलेलाल जी का तारों से कोई संबंध नहीं है, सिर्फ चन्द्रमा से है. किसी ने ‘दरूलाल’ नाम का इज़ाद करते हुए कहा कि चूंकि झूलेलाल को ‘दरियाशा’ भी कहा जाता है, इसीलिए उन्हें ‘दरूलाल’ भी कहा जाना औचित्यपूर्ण है. लेकिन अन्य प्रतिभागियों ने यह नाम भी अस्वीकृत कर दिया. किसी ने ‘खंड्रलाल’ बनाते हुए उसे न्यायोचित ठहराया कि खंड्र अर्थात शक्कर का हम आमतौर पर मीठी वस्तुओं के लिए इस्तेमाल करते हैं, इसीलिए झूलेलाल साईं का यह नाम उचित होता है. 

झूलेलाल के इस नए नाम को पचास प्रतिशत प्रतिभागीओं की सहमती प्राप्त हुई. किसी ने ‘शाहपीर’ नाम गढ़ते हुए उसकी वजह बताई कि झूलेलाल को शाहों का शाह कहा जाता है, इसीलिए ‘शाहपीर’ जैसा नया नाम उनके लिए उपयुक्त है. लेकिन प्रतिभागियों ने इसे भी काल्पनिक घोषित कर दिया. किसी ने उनका नया नाम प्रस्तावित किया, ‘राहवारो’ कि वे हमें राह दिखाते हैं. इस नाम को अंगीकृत करवाने में वे काफी हद तक सफल रहे. सभी ने सर्वसम्मति से यह कहा कि सिन्धियत से जुड़ी ऐसी ही प्रतियोगिताओं की सख्त आवश्यकता है, तथा भविष्य में ऐसी ही सिंधु संस्कृति के प्रति प्रेम जगाने वाली प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाना चाहिए.

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