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गुरू ही हमें जीवन का सही मार्ग दिखाता है : शुभ द्विवेदी




भारतीय संस्कृति एवं परंपरा में गुरू का स्थान निस्संदेह सर्वश्रेष्ठ है, क्योंकि गुरू ही हमें जीवन का सही मार्ग दिखाता है। इस आशय का प्रतिपादन चि. शुभ द्विवेदी, प्रयागराज ने किया। 

वे विश्व की प्रतिष्ठित स्वैच्छिक हिंदी प्रचार संस्था 'विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज (उ. प्र.)' के तत्वावधान में आयोजित द्वितीय बाल संसद में 'गुरू की महिमा' विषय पर आयोजित आभासी गोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में अपना उद्बोधन दे रहे थे।

शौनक जपे, औरंगाबाद, महाराष्ट्र ने समारोह की अध्यक्षता की। शुभ द्विवेदी ने आगे कहा कि गुरू के बिना ज्ञान नहीं होता। इसलिए गुरू को ईश्वर से भी बढकर माना गया है। गुरू ही ईश्वर को पाने की राह दिखाता है।
  
विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज के सचिव डाॅ.गोकुलेश्वरकुमार द्विवेदी ने अपनी प्रस्तावना में कहा कि अध्यापक और गुरू में अंतर होता है क्योंकि अध्यापक अपने छात्रों को किताबी ज्ञान देते हैं बल्कि गुरू अपने शिष्य को जीवन में सफलता पाने के मार्ग पर ले जाता है। 

विशिष्ट अतिथि डाॅ. पूर्णिमा शर्मा, दिल्ली ने कहा कि जीवन के घोर अंधकार में प्रकाश दिखाने का काम गुरू करता है। हर गुरू में माता-पिता और सखा का भी रूप दिखाई देता है, क्योंकि गुरू में माँ की ममता, पिता जैसी दृढता तथा सखा सम सुख-दुख में साथ देने की तत्परता दिखाई देती है। 

विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान प्रयागराज, (उ.प्र) के अध्यक्ष तथा गोष्ठी के मुख्य दर्शक प्राचार्य डाॅ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने अपने आशीर्वचन में कहा कि बच्चों के लिए प्रथम पाठशाला उनका परिवार है। माँ आद्य गुरू है, क्योंकि माँ के उदर से जन्म लेकर बच्चा माँ की गोद में  बडा होने लगता है। बच्चों को चलना, बोलना माँ सिखाती है। पिता के अनुशासन में उसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है। पाठशाला में जाने के बाद शिक्षक के माध्यम से किताबी ज्ञान और जीवन का पाठ भी मिलता है।
           
गुरू की महिमा पर कु. जान्हवी गवले, औरंगाबाद, महाराष्ट्र; अथर्व श्रीवास्तव, सुल्तानपुर (उ. प्र.); सिद्धि जायसवाल, कोरबा, छ. ग.; खुशी वानखेडे, औरंगाबाद, महाराष्ट्र; ओमांश श्रीवास्तव, लखनऊ तथा निमिष दंडके ने अपने विचार व्यक्त किए।
          
कु. स्वरा त्रिपाठी, लखनऊ; प्रद्युम्न खामगावकर औरंगाबाद; धैर्य दिक्षित, गुडगाव; कु. स्वरा कुलकर्णी, औरंगाबाद, कु.श्रद्धा नायक, औरंगाबाद; कु.वन्या श्रीवास्तव, लखनऊ; कु. अवनी तिवारी, इंदौर; कु. आराध्या बोरसे, औरंगाबाद ने काव्य पाठ किया।
           
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए शौनक जपे, औरंगाबाद ने कहा कि, गुरू का स्थान जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण है। गुरू के बिना जीवन में सही मार्ग की पहचान नहीं होती। एक पथ प्रदर्शक के रूप में गुरू का हमारे जीवन में महनीय स्थान है।
         
संगोष्ठी का आरंभ कु. अवनी तिवारी, इंदौर के नृत्य से हुआ। संचालन शौर्य दीक्षित ने किया तथा बाल संसद प्रभारी डाॅ. रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
             
पटल पर डाॅ. सुनीता यादव, औरंगाबाद, महाराष्ट्र; श्रीम. पूर्णिमा कौशिक, रायपुर; डाॅ. पूर्णिमा झेंडे, नासिक; श्री ओमप्रकाश त्रिपाठी; श्रीमती ज्योति तिवारी, इंदौर की उपस्थिति रही।
साहित्य 8251649642211606288
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