परमात्मा ने अपने प्रतीक के रूप में गुरु की निर्मिती की है : डॉ. वंदना अग्निहोत्री
नागपुर/पुणे। परमात्मा निर्दोष है। हर स्थान पर वे उपस्थित नहीं रह सकते। अतः अपने प्रतीक के रूप में परमात्मा ने गुरु की निर्मिती की है। इस आशय का प्रतिपादन मुख्य अतिथि डॉ वंदना अग्निहोत्री, कला संकायाध्यक्ष, देवी अहिल्या, विश्वविद्यालय, इंदौर, मध्य प्रदेश ने किया।
विश्व की प्रतिष्ठित स्वैच्छिक हिंदी प्रचार संस्था विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के तत्वावधान में 'गुरु और अध्यापक की महिमा' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय आभासी संगोष्ठी में वे अपना मंतव्य दे रही थी।
हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने गोष्ठी की अध्यक्षता की। डॉ. अग्निहोत्री ने आगे कहा कि समस्त संसार में अखंड ब्रम्हांड तथा चर और अचर का दर्शन कराने वाला एकमात्र गुरु ही है। पुस्तकों को पढ़ने के बाद भी गुरु की आवश्यकता महसूस होती है। अध्यापक तथा शिक्षक आज की आवश्यकता है।
डॉ.सुनीता प्रेम यादव, औरंगाबाद, महाराष्ट्र ने कहा कि गुरु न केवल मौलिक ज्ञान देता है बल्कि चरित्र संपन्न भी बना देता है। गुरु के कारण ही हमारी संस्कृति व परंपरा टिकी हुई है। डॉक्टर निक्की ए. तिरुवनंतपुरम, केरल ने कहा कि गुरु अपने शिष्य में समाज में रहने योग्य क्षमता निर्माण करता है। अध्यापक अपने विद्यार्थियों में विवेकशील दृष्टि निर्माण करके उनका सर्वागीण विकास करता है।
यह अत्यंत दुखद है कि वर्तमान युग मे कुछ अध्यापक विद्यार्थियों का शारीरिक व मानसिक शोषण करते हैं। डॉ.रजिया शहनाज शेख, बसमत, महाराष्ट्र ने कहा कि वैदिक परंपरा के अनुरूप सूफी परंपरा में भी गुरु की महिमा का गान किया गया है। डॉ. सुधा सिन्हा, पटना, बिहार ने कहा कि
प्रथम गुरु माँ होती है, जो नैतिकता व जीवन का पाठ पढ़ाती है। आज अध्यापक व विद्यार्थी में स्नेह की कमी है।
विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के सचिव डॉ. गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी ने अपने प्रास्ताविक भाषण में कहा कि गुरु और अध्यापक पर्यायवाची नहीं है। गुरु और अध्यापक में अंतर है। गुरु से हमारा संबंध अव्यवसायिक होता है, तो अध्यापक से वहीं संबंध व्यावसायिक होता है। गुरु एक अध्यात्मिक घटना है। गुरु शिष्य के मध्य गहन प्रेम का संबंध होता है।
विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि गुरुकुल प्रणाली में गुरु का महत्व अबाधित रहा है। गुरुकुल प्रणाली आज से 200 वर्ष पूर्व तक संपूर्ण भारत की एकमात्र शिक्षा प्रणाली थी । गुरु की आवश्यकता हर युग में रही है।
माता पिता के पश्चात गुरु ही ऐसा व्यक्ति है जो शिष्य की प्रतिभा को निखारता है। वर्तमान में अब समय के साथ गुरु का चेहरा काफी बदल गया है। गुरु अब गुरु नहीं- मात्र शिक्षक है तथा शिष्य सिर्फ छात्र। फिर भी अच्छे शिक्षकों के बिना शिक्षा की कोई भी पद्धति सफल नहीं हो सकती। शिक्षक होना बहुत बड़ी और आनंददायक जिम्मेदारी है।
गोष्ठी का आरंभ डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर द्वारा प्रस्तुत स्क्रीन के माध्यम से सरस्वती वंदना से हुआ। प्राध्यापिका रोहिणी डावरे, अकोले, महाराष्ट्र ने स्वागत उद्बोधन दिया। गोष्ठी का सफल सुंदर संचालन हिंदी सांसद डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, छत्तीसगढ़ ने किया साथ ही गुरु की महिमा पर गीत प्रस्तुति की गई तथा भुवनेश्वरी जयसवाल, रायपुर ने आभार ज्ञापन किया।
आभासी पटल पर अन्य विद्वत जन तथा शिक्षाविदों मे श्रीमती सुवर्णा जाधव, डॉ.समीर सैय्यद, प्रा. नाना साहेब गोफने, डॉ.शहनाज शेख, डॉ.पासवान, डॉ.सरस्वती वर्मा, प्रा. मनीषा सिंग, डॉ.सोनाली चन्नावर, श्रीमती पूणिर्मा कौशिक उपस्थित थे।