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कार्टून बनाओ प्रतियोगिता को मिला उत्तम प्रतिसाद



समय का सदुपयोग कर बच्चों ने दिखाया कला का जौहर

नागपुर। वर्तमान गंभीर माहौल को हल्का बनाने के उद्देश्य से भारतीय ज्ञान मंच द्वारा स्कूल के बच्चों के लिए ऑनलाइन कार्टून बनाओ प्रतियोगिता का आयोजन किया गया. 5 वीं से 10 वीं कक्षा के बच्चों ने इसमें अपनी कार्टून बनाने की कला का प्रदर्शन किया. 

सभी ने ज़ूम पर कैमरा के सामने अपनी अपनी पसंद के कार्टून बनाए. किसी ने मिक्की माउस का कार्टून बनाया, किसी ने गणेश जी का, किसी ने छोटे भीम का, किसी ने इंसानों के, किसी ने राजनीतिज्ञों के, किसी ने खेल खिलाड़ियों के, और किसी ने अंग्रेजी किरदारों के. सबसे ज्यादा कार्टून विद्यार्थियों ने टीवी पर आने वाले कार्टून चैनल पर ‘डोरेमोन’ और ‘पोकेमोन’ धारावाहिकों पर आधारित कार्टून बनाए. 

जापानी कार्टून बनाने वालों में ‘नोबिता’, ‘शिज़ुका’ और ‘शिनचैन’ प्रचलित रहे. इनके अलावा ‘पिकाचू’, ‘मैरिल’ तथा ‘टोगपी’ भी कईयों के कार्टून में नज़र आये. कई विद्यार्थियों ने अपने कार्टूनों को मास्क भी पहनाये. किसी ने अपने कार्टून पात्रों को ऐसी महाशक्तियां प्रदान की जिससे वे समय-यात्रा कर सकें, या एक स्थान से गायब होकर दूसरे स्थान पर पहुँच सकें, या अन्न का एक निवाला खाकर अनगिनत ज्ञान प्राप्त कर सकें. 

हालांकि सबसे ज्यादा पसंदीदा किरदार ‘डोरेमोन’ रहे, लेकिन बहुत विद्यार्थियों ने देसी कार्टूनों में ‘मोटू-पतलू’, ‘बिल्लू’ और ‘पिंकी’ को पसंद किया. इनके अलावा ‘बार्बी’, ‘टॉम एंड जेरी’, ‘स्पंजबॉब’, ‘निंजा टर्टल्स’ और ‘स्पाइडरमैन’, ‘सुपरमैन’, ‘बैटमैन’ उनके प्रिय रहे. कई विद्यार्थियों ने ‘टिंकल’ कॉमिक्स में आने वाले ‘सुप्पंदी’ को पसंद किया, कईयों ने अकबर-बीरबल की कार्टून कहानियों को, कईयों ने ‘जंगल बुक’ के किरदारों को. ‘चाचा चौधरी’ बहुतों के प्रिय निकले. 

आज के युग में कार्टूनों का महत्त्व बताते हुए इन बच्चों की राय थी कि कार्टूनों से उन्हें काल्पनिक दुनिया में खो जाने का मौका मिलता है. कार्टूनों की कहानियां पढने से उनकी पढने की रुचि में भी विकास होता है, और अलग प्रकार की सोच बनाने का मौका मिलता है. दिनभर टीवी पर आ रहे कार्टूनों से किसी को कोई शिकायत नहीं थी, उलटे कार्टूनों के साथ उन्हें अपनत्व का एहसास होता है. कार्टूनों के दैनिक संघर्षों के प्रति सहानुभूति जताते हुए उन्होंने बताया कि ये कार्टून उनके अंतर्मन में बस गए हैं. 

कार्टूनों से उन्हें प्रतिदिन आने वाली समस्याओं का सामना करने तथा उनसे झूझने की प्रेरणा मिलती है. कार्टूनों की वजह से उन्होंने मार्शल आर्ट्स, जूडो, कराटे सीखना प्रारम्भ कर दिया है, और पहेलियों को सुलझाने में वे बहुत माहिर हो गए हैं. अगर कार्टूनों की तरह की जादुई शक्ति उनके पास भी होती तो वे इन शक्तियों का प्रयोग किस प्रकार करते, इस बात पर प्रतिभागियों ने अपने मत रखे. विद्यार्थी, इस प्रतियोगिता के आयोजक और संचालक, डॉ. भारत खुशालानी, के साथ बातचीत तथा पारस्परिक विचार - विमर्श कर रहे थे.
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