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सेवाभावी अशोक कुमार कृपलानी का मनाया जन्मदिवस


निगाहें कामिलो (गुणवान) पर
पड़ ही जाती है जमाने की
कहीं छिपता है  फूल 
पत्तियों में निहां होकर
 
आर्य विद्या सभा के अध्यक्ष श्री अशोक कुमार गंगाराम कृपलानी के संदर्भ में यह कहना उचित ही होगा। श्री गंगारामजी व श्रीमती राधाजी के सुपुत्र अशोक कुमार कृपलानी के बारे में क्या कहना ? यथा नाम तथा गुण। अशोक अर्थात शोकरहित न स्वयं शोक में रहे ना किसी को शोकाकुल करें। पिता का नाम तो मानो पवित्रता का प्रतीक है। भारतीय जनमानस में गंगा व राम दोनों ही संस्कृति और भाव आस्था से पूर्ण। माता श्रीमती राधा देवी भक्ति की अनन्यतम स्वरूप। ऐसे माता-पिता की संतान अशोक कुमार कृपलानी को उनके जन्मदिवस पर आर्य विद्या सभा के समस्त कर्मचारियों की ओर से असीम हार्दिक शुभकामनाएं। चार भाइयों और बहनों में सबसे बड़े अशोकजी ने बड़े होने का दायित्व बखूबी निभाया है लेकिन दर्शाया कभी नहीं।
किसी समय जरीपटका की जाने-माने कपड़ा व्यवसायी रहे श्री गंगाराम जी कृपलानी के सुपुत्र अशोक जी ने अपनी संपूर्ण शिक्षा गुणवत्ता व प्रावीण्यता के साथ पूर्ण की। विश्वेश्वरैया रीजनल कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग की प्रथम बैच के विद्यार्थी रहे और उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिग्री प्राप्त की। प्रतिभा अपनी राह स्वयं निर्धारित कर लेती है। बुद्ध के संदेश अत दीप भव को आत्मसात कर अपना दीपक स्वयं बने। अपनी राहों को रोशन किया। एक साल सरकारी नौकरी करने के उपरांत उन्होंने अपने व्यवसाय को ही प्राथमिकता दी। अपने व्यवसाय को उन्नति के शिखर पर पहुंचाने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी। मेट्रो इलेक्ट्रिकल्स की एक दुकान को उन्होंने अपनी सोच से पांच दुकानों में बढ़ाया और परिवार को साथ लेकर चले।अपनी बुद्धिमता के फल स्वरुप उन्होंने कई जिम्मेदारियां निभाई। पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ-साथ इलेक्ट्रिक एसोसिएशन ऑफ नागपुर के पहले अध्यक्ष, नागपुर बिल्डर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष, सन 2006 से तुकड़ोजी कैंसर हॉस्पिटल के सचिव, सीपी क्लब के समिति सदस्य और वर्तमान में आर्य विद्या सभा के अध्यक्ष को सुशोभित कर रहे हैं।कामयाबी के शिखर छूने पर इतने अहम पदों को सुशोभित करने के पश्चात उनमें लेशमात्र भी अभिमान नहीं है। जमीन से जुड़े परिवार पर पारिवारिक रिश्तों को अहमियत देने वाले अशोक जी निजी जीवन में अत्यंत अनुशासित है। उनकी प्राथमिकता परिवार को खुशहाली देना तो है पर अपनी तंदुरुस्ती की कीमत पर नहीं। अत: योगाभ्यास व शारीरिक व्यायाम उनकी दिनचर्या का अभिन्न अंग है। वसुधैव कुटुंबकम के समर्थक अशोक जी प्रत्येक कार्य को बड़ी जिम्मेदारी और शिद्दत से पूर्ण करते हैं। मात्र नाम व प्रसिद्धि के लिए नहीं अपितु कर्तव्यनिष्ठा हेतु। उनके भाई महेश जी कृपलानी उनके संदर्भ में बात करते हुए भावविभोर हो जाते हैं और उनकी भूरि भूरि प्रशंसा करते नहीं थकते। उनकी पुत्रवधू का कहना है कि उन्हें तो ससुर के रूप में पिता ही मिले हैं। अपने पोते पोतियों से उन्हें असीम प्यार है क्योंकि उनकी शब्दकोश में  सजा देना, गुस्सा या नफरत करना जैसे शब्द ही नहीं  है तो व्यवहार उस तरह का कैसे होगा। शीतल व सुखद अहसास देने वाला एक सौम्य व्यक्तित्व मृदुभाषी  व मितभाषी होना उनका एक अविस्मरणीय गुण हैं। वे मानते हैं

जो कह दिया वह शब्द थे
 जो नहीं कह सके 
वह अनुभूति थी 
और जो कहना है मगर कह नहीं सकते
वह मर्यादा है 

वे प्रेरित करते हैं कि अपनी बात इतनी सटीक व प्रभावपूर्ण ढंग से आहिस्ता से रखो या बोलो कि उन्हीं लोगों को सुनाई दे जिन्हें हम बताना चाहते हैं। ढिंढोरा पीटना उनका मकसद कभी नहीं रहा। उनकी खूबी है तत्काल किसी के मनोभावों को समझ कर उचित को व्यक्त कर प्रत्येक को यह प्रेरणा देना कि कम बोलो मीठा बोलो उपयोगी बोलो। उनका कहना है जीवन अनमोल है, सदाचारी बन कर जियो ये मत सोचो कि औरों को क्या मिला विचार करो कि हमने इस संसार को क्या दिया ?
 भिखारी बनकर मत जियो जिज्ञासु व दानी बनकर जियो। इस रूप में स्वयं को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करना उनका अद्वितीय गुण हैं। वे समझते हैं
 नसीहत नर्म लहज़े में ही अच्छी लगती है क्योंकि दस्तक का मकसद दरवाजा खुलवाना होता है तुड़वाना नहीं।
उनके अनेक गुणों में से एक और महत्वपूर्ण गुण हैं उनकी सूक्ष्म और पारखी दृष्टि। जिससे ना कभी कमी छिपती है न खासियत। उनकी एक नजर ही काफी है विद्यालय में चल रहे निर्माण कार्य पर दूर से नजर पड़ते ही उसकी कमी को बता देना  उनके बूते की ही बात है। कार्य पर उनकी पकड़ उन्हें सबसे  अलग बनाती है। इसमें झलकती उनकी बुद्धिमत्ता पर उन्हें कोई गर्व  या झूठा अहंकार नहीं होता।सिद्धांतवादी अशोकजी के अनुसार वे दिखावे में नहीं कार्य की गुणवत्ता पर विश्वास रखते हैं। गलतियों को स्पष्ट करना उनके कार्य की सूझबूझ को परिभाषित करता है। निरे अहंकार में डूब कर किसी भी बात का फैसला नहीं लेते हैं। हर प्राप्त चीज की कदर करना उनका जन्मजात गुण है चाहे पैसा हो या पद। पैसे की बर्बादी से उन्हें सख्त नफरत है। कहा जाता है बूंद बूंद से घट भरता है तो जो कार्य आज पैसे से हो रहा है उसके लिए रुपए खर्च क्यों किए जाएं। उचित मितव्ययता उनका एक और गुण हैं। वे कहते हैं झूठा मद व पैसा व्यक्ति को ले डूबता है। जिसे युवा पीढ़ी आज भुगत रही है तो संयमित जीवन जीएं।  एक  स्नेहिल पर गरिमा से पूर्ण इंसान उनके व्यक्तित्व से झलकती है। अपने कर्म का व्यवहार में जीवन में अति को हमेशा नकारा जीवन। एक साधारण मनुष्य की तरह जीवन जीने वाले दादा पद पर रहते हुए भी कभी किसी को आदेश नहीं देते। आदेश देना उनकी फितरत नहीं। स्वभाव से वे निश्चलऔर पारदर्शी हैं। उनका मानना है कि हमारे प्रत्येक व्यवहार में पारदर्शिता होनी चाहिए। इसके होने से हम पर कोई उंगली नहीं उठा सकता। सर्वोपरि यह है उनमें व उनके कार्यों में ईमानदारी की स्पष्ट झलक है। उनका कहना है बना बनाया कुछ नहीं मिलता उसे प्राप्त करना पड़ता है। यह सत्य जरूर है कि हमें संस्कार अच्छे ही मिलते हैं। उनको अपनाने से मार्ग में बाधा आएंगी ही यह भी कड़वा सत्य है। लेकिन ऐसे संस्कारों को ईमानदारी के साथ अपनाया तो जो आत्म संतुष्टि मिलेगी उसकी तुलना दुनिया की किसी दौलत से नहीं। ऐसे गुणों के खजांची अशोक जी की सादगी और निर्मलता को देखकर बरबस जुबान से निकल पड़ता है

इस सादगी पर कौन ना मिट जाए ए खुदा
लड़ते भी हैं और हाथ में तलवार भी नहीं
 
वर्तमान समय में ऐसे नीर क्षीर विवेकशील लोगों का मिलना दुर्लभ और नामुमकिन है जिन्होंने मानव और मानवता को सर्वोपरि माना। तुकड़ोजी कैंसर हॉस्पिटल के सचिव पद पर रहते हुए अपने स्वाभाविक सेवाभावी गुण को उन्होंने प्रस्फुटित किया। जाने अनजाने परिचित, अपरिचित न जाने कितने लोगों की मदद की। इसके मूल में उनके हृदय की शुचिता अर्थात अंतकरण की पवित्रता, मलिन भावों की न्यूनता, अहंकार शून्यता। उद्देश्य यही है कि अपने मनुष्य जीवन को सार्थक करें।

यथा 
कबीरा मन निर्मल भया
 जैसे गंगा नीर
 पीछे-पीछे हरि फिरैं
 कहत कबीर कबीर 

व्यक्ति को उसका प्रदर्शन पहचान दिलाता है। पहचान से सम्मान आता है। सम्मान से शक्ति बढ़ती है। शक्ति मिलने पर विनम्रता अनुग्रह का भाव रखना व्यक्ति की गरिमा को बढ़ाता है। ऐसे अनुग्रही अशोकजी कृपलानी को पुनः दिल से जन्मदिवस की मुबारकबाद देते हुए उनकी मौलिक मन:स्थिति का वर्णन करते हुए मानो उन्हीं के शब्दों में क्या रखा है 

खुद को रोज ऊंचा बताने में
थोड़ी सी शोहरत पा इस कदर इतराने में
कुछ फैसले तो विधि के हाथ हुआ करते हैं
वरना कितने ही बेहतर हैं मुझसे जमाने में

एक सम्माननीय छत्रछाया को उनके जन्मदिन पर सादरपूर्ण शुभेच्छा
सम्मान 6526005890917023284
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