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जन सरोकारों के कवि हैं कबीर : प्रो. शिवप्रसाद


नागपुर। कबीर भारतीय जीवन मूल्यों के आराधक हैं। उनका समूचा साहित्य जन- सरोकारों की प्रतिष्ठा से प्रेरित है। उन्होंने भारतीय समाज की विसंगतियों, विडंबनाओं के विरुद्ध उन दिनों आवाज उठाई, जब समाज पूरी तरह से खंड-खंड हो चुका था। आज इक्कीसवीं सदी में भी स्थितियां  कुछ अधिक बेहतर नहीं है।' यह बात इलाहाबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर शिवप्रसाद शुक्ल ने हिन्दी विभाग, राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित विशिष्ट व्याख्यान में कही। 

व्याख्यान का विषय था- 'कवि कबीर: चिंतन और दृष्टि'। प्रो. शुक्ल ने कहा कि कबीर का काव्य इसलिए अधिक प्रासंगिक है कि वे आज भी हमें सत्य और न्याय की सीख देते हैं। कोई भी समय और समाज इन्हीं दो बुनियादी मूल्यों और मान्यताओं के आधार पर समुन्नत बन सकता है। उन्होंने इस बात पर चिंता जताई कि कबीर का अक्सर कु-पाठ  प्रस्तुत किया गया है। 

विचारधाराओं से ग्रस्त आलोचकों ने कबीर के काव्य- मर्म को अपनी संकुचित विचारधारा की सीमा में आंकने की कोशिश की है, जो कि इस कवि के साथ अन्याय है। कबीर की उदार और व्यापक चिंतन- दृष्टि को विचारधाराओं के खूंटे से बांधना गलत है। वे लोकवादी कवि हैं। लोक - मन की अपेक्षाओं के संदर्भ में उन्हें देखा-परखा जाना चाहिए।

उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय, जलगांव के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. सुनील कुलकर्णी ने अपने व्याख्यान में कहा कि कबीर एक समाज-सुधारक थे, कविता उनका लक्ष्य नहीं था, वह उनके लिए एक माध्यम थी। उन्होंने अपने समाज की चिंताओं को वाणी दी। वे समाजचेता कवि थे। उनकी वाणी भारतीय मानस को आज भी झंकृत करती है। उनका पाठ करते समय हमें उनके सामाजिक सरोकारों को सर्वोपरि रखना चाहिए। 

स्वागत उद्बोधन देते हुए हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. मनोज पाण्डेय ने कबीर को सच्चा लोक-कवि बताया। उन्होंने कहा कि कबीर की समाज-निष्ठा ही उनकी प्रासंगिकता का मूलाधार है और जब तक सामाजिक विसंगतियां रहेंगी तब तक कबीर का काव्य समाज के लिए जरूरी बना रहेगा।
इस अवसर पर विचारोत्तेजक चर्चा-परिचर्चा भी हुई। विद्वान वक्ताओं ने प्रतिभागियों के प्रश्नों, प्रतिक्रियाओं पर सविस्तार चर्चा की। 

कार्यक्रम का संचालन डॉ. सुमित सिंह ने किया और आभार प्रदर्शन डॉ. संतोष गिरहे ने व्यक्त किया।
साहित्य 48739873409868464
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