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गहन मानवीय बोध के कवि थे मुक्तिबोध : आलोक गुप्ता


नागपुर। मुक्तिबोध गहन मानवीय बोध के कवि थे। उन्होंने अपने पूरे रचनात्मक जीवन में सामाजिक सरोकारों को सर्वोपरि रखा। वे किसी खास विचारधारा से ग्रस्त नहीं थे और न ही किसी विचारधारा के पैरोकार थे। यह बात गुजरात केन्द्रीय विश्वविद्यालय के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो.आलोक गुप्त ने हिन्दी विभाग राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित विशिष्ट व्याख्यान में कही। 

व्याख्यान का विषय था- मुक्तिबोध: चिंतन और दृष्टि। अतिथि वक्ता के रूप में बोलते हुए उन्होंने कहा कि मुक्तिबोध वास्तव में चिंतक थे, समीक्षक नहीं। उन्होंने अपने सम्पूर्ण लेखन में मानवीय अस्मिता की प्रतिष्ठा की है। वे जितने बौद्धिक थे, उतने ही संवेदनशील भी। वे ज्ञानात्मक संवेदन ही नहीं, संवेदनात्मक ज्ञान को भी जरूरी मानते थे। डॉ. गुप्त ने मुक्तिबोध की प्रासंगिकता का जिक्र करते हुए कहा कि जन-सामान्य के भावों, अनुभूतियों से जुड़े होने के कारण मुक्तिबोध की प्रासंगिकता आज भी बरकरार है।

दूसरे अतिथि वक्ता बी. एन. मंडल विश्वविद्यालय, मधुबनी, बिहार के प्रोफेसर डॉ. सिद्धेश्वर कश्यप ने मुक्तिबोध की कहानियों की चर्चा करते हुए कहा कि वे समाज के उपेक्षित और वंचित वर्ग की आवाज को स्वर देते हैं। उनकी सृजनात्मक प्रतिभा बेजोड़ थी। वे स्वप्नदर्शी रचनाकार थे, मगर दिवा - स्वप्नदर्शी नहीं थे। अपने अनुभव बोध के साक्ष्य पर उन्होंने युग-सत्य को रेखांकित किया। भावना और कल्पना की उड़ान के बरक्स जीवन यथार्थ का उद्घाटन उनका लक्ष्य था।  उनमें जबरदस्त लेखकीय दायित्व बोध था। डॉ कश्यप ने मुक्तिबोध को एक ऐसा चिंतक बताया जो समष्टि हित की सोच रखता है और समाज के समक्ष एक बौद्धिक चुनौती प्रस्तुत करता है।

स्वागत उद्बोधन देते हुए हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. मनोज पाण्डेय ने कहा कि मुक्तिबोध एक ऐसे रचनाकार थे जो बुद्धि और विवेक दोनों को समान महत्व देते थे। उनके लिए साहित्य एक माध्यम था सामाजिक बदलाव का। मनुष्य के कसकते-दुखते हुए क्षणों की गहन अनुभूति उनमें थी। इस अवसर पर व्यापक चर्चा-परिचर्चा भी हुई। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. संतोष गिरहे ने व्यक्त किया और संचालन डॉ. सुमित सिंह ने किया।
साहित्य 7143497530084397126
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