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हिंदी कृष्ण काव्य में वैष्णव भक्ति का अंश है : प्राचार्य डाॅ. शहाबुद्दीन शेख


नागपुर/पुणे। "हिंदी कृष्ण भक्तिकाव्य के विकास में वैष्णव पुराणों का महत्वपूर्ण योगदान है।परिणामत: हिंदी कृष्णकाव्य में वैष्णव भक्ति का अंश है।"इस आशय का प्रतिपादन विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज के अध्यक्ष प्राचार्य डाॅ.शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे ने किया। विश्वहिंदी साहित्य सेवा संस्थान प्रयागराज के तत्वावधान में 'हिंदी कृष्णकाव्य का कलात्मक मूल्यांकन' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय आभासी गोष्ठी में वे अध्यक्षीय उद्बोधन दे रहे थे। 

डाॅ.शहाबुद्दीन शेख ने आगे कहा कि हिंदी कृष्ण भक्ति काव्य संपूर्ण रूप से धार्मिक भावना से अनुप्राणित है। भारतीय चिंतन में अाध्यात्मिकता का महत्वपूर्ण स्थान है।कृष्ण भक्ति साहित्य में आत्मा, परमात्मा, ब्रह्म, जीव, जगत, माया, मोक्ष,सृष्टि आदि का चिंतन होता है। कृष्ण भक्ति का मूलाधार ग्रंथ श्रीमद्भागवत् है। संपूर्ण कृष्णकाव्य के आलंबन एकमात्र कृष्ण ही है। अत: हिंदी कृष्णभक्ति काव्य भारतीय सांस्कृतिक चेतना की महत्वपूर्ण उपलब्धि है। 

डाॅ. रजिया शहनाज शेख, बसमत नगर महाराष्ट्र ने कहा कि भक्तिकाल की लहर दक्षिण से निकली जो उत्तर भारत होकर पूरे भारत में व्याप्त हुई। मीरा की भक्ति माधुर्यभाव में व्यक्त हुई है। अति विशिष्ट वक्ता श्री ओमप्रकाश त्रिपाठी, सोनभद्र उ.प्र.ने कहा कि हिंदी के कृष्णकाव्य में भक्तिरस की प्रधानता है।उसमें श्रृंगार रस का पुट है।कृष्ण परमात्मा हैऔर गोपियाँ जीवात्मा हैं।सोलहवीं शताब्दी से पूर्व भी कृष्णकाव्य लिखा गया है।जो संस्कृत भाषा में उपलब्ध है।
 
श्री लक्ष्मीकांत वैष्णव, जांजगीर, चांपा,छ.ग.ने व्यक्त किया कि,भक्तिकाल हिंदी साहित्य के इतिहास में स्वर्णकाल के रूप में बहुपरिचित है।जिसका श्रेय कृष्णकाव्य धारा को जाता है। मुख्य अतिथि प्रो.लता चौहान,बेंगलुरू, कर्नाटक ने कहा कि कृष्णकाव्य की प्रमुख प्रवृत्ति  दार्शनिकता है,जिसमें जीव, जगतऔर माया की चर्चा है। 

डाॅ.शबाना हबीब, त्रिवैंद्रम, केरल ने कहा  कि हिंदी साहित्य के इतिहास में कृष्णभक्ति प्रमुख शाखा है। नाना पुराणों में कृष्ण चरित पाया जाता है। वल्लभाचार्य ने कृष्णभक्ति का आरंभ किया। विभिन्न संप्रदायों ने कृष्णभक्ति को आगे बढाया। 

विशिष्ट वक्ता प्रो. ललिता बी. जोगड, मुंबई ने अपने उद्बोधन में जांभानी साहित्य से परिचय कराया।गुरू जांभोजी ने लोगों को कृष्णचरित्र के माध्यम से सचेत किया है। प्रारंभ में विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज के सचिव डाॅ.गोकुलेश्वरकुमार द्विवेदी ने अपने प्रास्तविक भाषण में कहा कि भक्त सूरदास का काव्य मानवीय संवेदना का काव्य है। जो कभी बासी नहीं हो सकता। सूर की भक्क्ति का विकास विनय, वात्सल्य और श्रृंगार के रूप में हुआ है। 

गोष्ठी का आरंभ श्रीमती पूर्णिमा कौशिक द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुआ।डाॅ.सीमा वर्मा, लखनऊ ने स्वागत उद्बोधन दिया। इस आभासी गोष्ठी में संयोजक  के रूप में श्रीमति पुष्पा श्रीवास्तव, हिंदी सांसद, रायबरेली, उ.प्र., डाॅ.वंदना अग्निहोत्री, कला संकायाध्यक्ष, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर, डाॅ.रश्मि चौबे, गाजियाबाद, सरला तिवारी, सुवर्णा कंत्रा, डाॅ. रिंकू पांडेय, संयोगिता मौर्या की प्रमुख उपस्थिति थीं। इस आभासी गोष्ठी का सफल संचालन व धन्यवाद ज्ञापन श्रीमती पौर्णिमा कौशिक, रायपूर छ.ग.ने किया।
साहित्य 6787867562502447703
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