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विश्व पर्यावरण दिवस पर 'एक नवगीत'


ख़ुद के तन को मत काटो तुम, खुदगर्ज़ी की आरी से
सालों में इक पेड़ पलेगा बड़े जतन, तैयारी से।

झरने, जंगल , हरियाली सब ख़्वाबों में रह जाएंगे,
जब भी हम टकराएंगे मौसम की ख़ुद्दारी से।

कहीं पे सूखा, कहीं ज़लज़ला, बेमौसम बरसात कहीं,
यह ही तो सौग़ात मिलेगी, प्रदूषण की यारी से।

आओ मिलकर पेड़ लगाएं आबोहवा को साफ़ करें,
कंकरीट के जंगल में अब दम घुटता बिमारी से।

पवन हो निर्मल, निर्मल पानी, खेतों में हों गुड़-धानी,
ज़र्रा - ज़र्रा खुशियाँ महकें, हर घर की फुलवारी से।

आओ सहेजें सब मिलकर, हम अपनी धरोहर को,
'कमल' पेड़ हैं जीवन सबके, न काटें बारी- बारी से।

                  


- कमल शर्मा

होशियारपुर, पंजाब
146001

काव्य 3828127084358331977
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