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पर्यावरण अनुकूल व्यवहार सच्ची ईश्वर आराधना है : प्रो. शर्मा



अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में हुआ भारतीय व्रत, पर्व और उत्सव : पर्यावरणीय और मूल्य चेतना के परिप्रेक्ष्य में पर मंथन

सृजनधर्मियों की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी भारतीय व्रत, पर्व और उत्सव : पर्यावरणीय और मूल्य चेतना पर केंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कला संकायाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। अध्यक्षता प्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ऑस्लो, नॉर्वे ने की।

मुख्य अतिथि  विक्रम विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि भारत के लोक और जनजातीय समुदायों में प्रकृति के प्रति गहरा अनुराग और आस्था दिखाई देती है। वृक्षों के नाम के आधार पर गांव और गोत्रों का नामकरण किया जाता है। व्रत, पर्वोत्सवों का रिश्ता गहरी पर्यावरणीय और मूल्य चेतना से है। उपासना के अनेक स्थलों पर पेड़ों को बहुतायत से देखा जा सकता है। मातृका के रूप में नदियाँ जनजातीय एवं लोक समुदाय में विशेष स्थान रखती हैं। 

हमारा पर्यावरण अनुकूल व्यवहार सच्ची ईश्वर आराधना है। व्रत का संबंध विशिष्ट आध्यात्मिक एवं मानसिक अवस्था से है, जिसके माध्यम से पर्यावरण संरक्षण का कार्य सहज ही हो जाता है। पर्यावरण और प्राणियों का परस्पर पूरक संबंध माना गया है। भारत की पर्यावरणीय दृष्टि दुनिया के तमाम देशों के लिए प्रेरणा का विषय है।

पूर्व प्राचार्य डॉ ओम प्रकाश जोशी, इंदौर ने कहा कि भारत कृषि प्रधान देश है। यहां कृषि कार्य, ऋतु परिवर्तन, जन्मोत्सव, सूर्य, चंद्र आदि से जुड़े अनेक पर्व मनाए जाते हैं। भारत में पर्यावरण के दोनों भागों - जीवित और अजीवित की पूजा की जाती है। वर्तमान दौर में हमारी जीवन शैली में बाजारवाद हावी होता जा रहा है। हम उपयोग से उपभोग की ओर जा रहे हैं। ऐसे में त्योहारों और पर्यावरण के बीच सामंजस्य रखना जरूरी है।

अध्यक्षीय उद्बोधन में श्री सुरेश चंद्र शुक्ला शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के लिए नदी  एवं अन्य जल स्रोतों के समीप रहने वाले लोगों को व्यापक प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है। शिक्षा के क्षेत्र में पर्यावरण के अध्ययन को महत्त्व मिलना चाहिए। वर्तमान में कई देशों में पर्यावरण राजनीतिक मुद्दा भी बन गया है।

डॉ अनुसूया अग्रवाल, महासमुंद ने कहा कि पर्व और उत्सव हमारी सांस्कृतिक चेतना को आधार देते हैं। भारत की संस्कृति के निर्माण में पर्यावरण का महत्वपूर्ण योगदान है। सूर्य, चंद्र, वनस्पति, जल  सब मिलकर समन्वित जीवन को आधार देते है।

डॉ ख्याति पुरोहित, अहमदाबाद ने कहा कि विश्व स्तर पर हमें पर्यावरण को लेकर पुनर्विचार करना होगा। भारत की संस्कृति अरण्य संस्कृति रही है। प्राचीन काल से ऋषि मुनि इन बातों को जानते थे कि प्रकृति का जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है।

योगाचार्य डॉक्टर निशा जोशी ने कहा कि पर्यावरण हमारे चारों ओर का आवरण है। मनुष्य के द्वारा निरंतर पर्यावरण का विध्वंस किया जा रहा है। पर्यावरण संरक्षण के लिए ठोस प्रयास आवश्यक हैं। व्रत हमें आंतरिक शुचिता प्रदान करते हैं।

डॉ संजीव कुमारी गुर्जर, हिसार ने कहा कि पर्यावरण समस्त जीवित और निर्जीव वस्तुओं से बना है, लेकिन जीवित प्राणियों में मनुष्य पर्यावरण का निरंतर विध्वंस कर रहा है। उन्होंने सात आर के सूत्र को अंगीकार करने पर बल दिया।

संस्था परिचय देते हुए साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि मानव के मानसिक और शारीरिक विकास के लिए संस्था द्वारा महत्वपूर्ण कार्य किया जा रहा है। मन और मस्तिष्क को स्वस्थ रखने के लिए साहित्य की आवश्यकता है। धरती, आकाश, सागर, जल और वायु ये सभी प्रकृति के अनुपम उपहार हैं।

विशिष्ट अतिथि डॉक्टर मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर ने कहा कि भारत के व्रत पर्व और उत्सवों में वैज्ञानिकता अंतर्निहित है। लोक संस्कृति के साथ  इनका गहरा रिश्ता है। हमें मूल्य चेतना को पुनर्जीवित करना होगा।

डॉ अरुणा राजेंद्र शुक्ला ने कहा कि हमें प्रकृति की चेतावनी को समझना होगा। कोविड-19 के बाद हमने बहुत कुछ सीखा है। आपदा और महामारी से रक्षा के लिए प्रकृति को सम्मान देना जरूरी है।

संगोष्ठी की प्रस्तावना पूर्णिमा कौशिक रायपुर ने प्रस्तुत की। कार्यक्रम के प्रारंभ में सरस्वती वंदना रूली सिंह, मुंबई ने की। अतिथि परिचय श्रीमती लता जोशी, मुंबई ने दिया। स्वागत भाषण डॉक्टर गरिमा गर्ग, पंचकूला, हरियाणा ने दिया।

संगोष्ठी में प्रा. रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, डॉ विमल चंद्र जैन इंदौर, श्री मोहनलाल वर्मा जयपुर, अदिति लांभाटे, भुवनेश्वरी जायसवाल, दिनकर बारापत्रे, शैलेश चतुर्वेदी, डॉ ज्योति वर्मा, श्री जी डी अग्रवाल, इंदौर, जयमाला देसाई, लता जोशी, मनीषा सिंह, मंजू श्रीवास्तव, मोहम्मद मुकीम, शिल्पा भट्ट, डॉक्टर शैल चंद्रा, छत्तीसगढ़, प्रवीण नायी, परमानंद शर्मा, नेहा राठौर, नरेश जोशी आदि सहित अनेक शिक्षाविद, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी एवं गणमान्यजन उपस्थित थे।

राष्ट्रीय संगोष्ठी का संचालन डॉ सुनीता चौहान मुंबई ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने किया।
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