पर्यावरण पर चित्र बनाओ प्रतियोगिता को मिला उत्तम प्रतिसाद
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वैज्ञानिक डॉ. भारत खुशालानी ने साझा किये अपने अनुभव
बच्चों ने दिया अपनी दूरदर्शी सोच का परिचय
नागपुर। विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर भारतीय ज्ञान मंच द्वारा पांचवीं से दसवीं कक्षा के बच्चों के लिए चित्र बनाओ प्रतियोगिता का आयोजन किया गया. लगभग सौ बच्चों ने इस प्रतियोगिता में हिस्सा लिया तथा पर्यावरण के विभिन्न पहलूओं को लेकर चित्र बनाए. ऑनलाइन ज़ूम पर आयोजित इस प्रतियोगिता में प्रत्येक प्रतिभागी ने पर्यावरण विषय को लेकर अपना एक चित्र बनाया. उन्होंने अपनी कल्पनानुसार उनमें रंग भी भरें.
प्रत्यक्ष बनाए गए चित्र उनके मूल चित्र थे, जिसके कारण अन्य लोगों के कॉपीराइट कार्यों का उल्लंघन नहीं हुआ. सभी प्रतिभागी यथासंभव विषय पर टिके रहे. दोहराए गए विषयों पर चित्र बनाने से बचने के लिए विद्यार्थियों ने हटकर सोचा और ऐसा चित्र बनाने की कोशिश की जो कोई और न सोच सके. किसी ने पर्यावरण से संबंधित किसी समसामयिक मुद्दे को लिया, तो किसी ने पर्यावरण से जुड़ी हाल की किसी घटना को चित्रित किया.
पेन, पेंसिल, स्केच पेन, क्रेयॉन, मार्कर का उपयोग कर, तथा पानी के रंग, एक्रिलिक रंग, तेल-पेंट का इस्तेमाल कर उन्होंने कैनवास, कागज, सेंचुरी पेपर आदि पर चित्र बनाए. निर्णायक मानदंड में विद्यार्थी कितने सफल रहे हैं, यह इस बात पर निर्भर था कि पर्यावरण विषय के विकास में उन्होंने किस विषय को चुना है, चित्र बनाने की कितनी अच्छी तरह से योजना बनाई है और इसके लिए कितनी तैयारी की है, उनकी रचनात्मकता, चित्र की मौलिकता और अपने चित्र में अपना इच्छित संदेश देने में वे किस हद तक कामयाब हुए हैं.
चित्र का सौन्दर्य और उसकी समग्र दिखावट भी अहम थी. सभी ने अपने चित्रों को शीर्षक भी दिए. अमेरिका के लॉस एंजेलिस शहर की जलवायु पर पुस्तक प्रकाशित कर चुके तथा बंगाल की खाड़ी के चक्रपातों पर शोधकार्य कर चुके डॉ. भारत खुशालानी के निर्देशन में विद्यार्थियों ने चित्र बनाए. अमेरिका के सर्वश्रष्ठ विश्वविद्यालयों में से एक कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट प्राप्त डॉ. खुशालानी ने विद्यार्थियों को पर्यावरण के विभिन्न पहलूओं से अवगत कराया तथा युवा पीढ़ी को आने वाले समय में पर्यावरण संबंधित किन-किन खतरों से झूझना पड़ेगा, इस बात का अंदेशा दिया. कार्यक्रम का आयोजन तथा संचालन करते हुए उन्होंने प्रतिभागियों के बनाए गए चित्रों को नया आयाम दिया.
उनके निर्देशन में विद्यार्थियों ने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, धुंए के कारण बढ़ते अस्थमा केसेस, हवा में स्मॉग, तेल रिसाव आपदाएं, रासायनिक रिसाव आपदाएं, ओजोन छिद्र, जंगलों में लग रही आग, पेड़ों के कटने, ध्वनि प्रदूषण, वाहनों से निकास - गैसों का उत्सर्जन, अम्ल वर्षा, जनसंख्या विस्फोट, कीटनाशकों का दुष्प्रभाव, परमाणु विकिरण, अनुचित अपशिष्ट निपटान, प्लास्टिक का प्रयोग, जानवरों का अवैध शिकार, बढ़ रहा इलेक्ट्रॉनिक कचरा, कार्बन फुटप्रिंट कम करने के उपाय, प्रजातियों का आवास विनाश, ऊर्जा का कुशल उपयोग, सौर और पवन ऊर्जा का उपयोग, नए पर्यावरण कानून, सामग्री का पुनर्चक्रण, शहरी विकास का प्रभाव, आवश्यक खनिजों की मिट्टी को नष्ट करना, खनन गतिविधि, महासागरों को कचरे के ढेर से बचाने के उपाय, इत्यादि विषयों पर चित्र बनाए.
सभी विद्यार्थियों ने अपने चित्रों पर टिप्पणियाँ भी की तथा नारे भी लिखे. अपने चित्रों के व्याख्यान से उनकी परिपक्व सोच साफ़ दिखाई देती थी. उन्होंने चित्र बनाते हुए अपने वीडियो भी भेजे ताकि इस बात में कोई संदेह नहीं रहे कि चित्र उन्होंने स्वयं बनाए हैं. सभी विद्यार्थियों के चित्रों से धरती की दर्द-भरी कहानी बिना कुछ कहने की आवश्यकता के नज़र आती थी. कटे हुए पेड़, लुप्त हुए जानवर, फक्ट्रियों के धुंए धरती को विनाश की तरफ ले जाते हुए दिखते थे. प्रकृति से हाथ मिलाते इंसान, सूखी भूमि और लहुलहान किसान बेहद मार्मिक चित्र प्रस्तुत कर रहे थे. सभी विद्यार्थियों को सर्टिफिकेट दिए गए.