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पर्यावरण : देवी अहिल्याबाई होलकर


देवी अहिल्याबाई होलकर ने पर्यावरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया था। उनके मानस में प्रकृति प्रेम के निर्झर अविरल सदा बहते रहते थे। उन्होंने जल जंगल और जीव की रक्षा, शिक्षा,चिकित्सा और सुरक्षा के नीति गत प्रबंध किए थे। शिव और शक्ति की भक्ति में मातोश्री ने संपूर्ण सृष्टि और प्रकृति की महिमा के दर्शन पाए थे । उन्होंने प्रकृति और पुरुष, भूमि और बीज के माध्यम से लोगों को प्रर्यावरण का संदेश दिया। परमार्थ से जुड़े उनके प्रकल्प सम्पूर्ण भारतवर्ष में संचालित थे। उन्होंने जहां भी निर्माण कार्य किए वहां शुद्ध वातावरण हेतु खास इंतजाम किए।

आज भारत सहित पूरी दुनिया में पर्यावरण को लेकर चर्चाएं चल रही हैं। इंदौर की शासिका ने करीब तीन सौ वर्ष पूर्व प्रर्यावरण के प्रति लोगों को जागृत करने का एक ऐतिहासिक  और अनुकरणीय कार्य किया था। उनके राज्य में प्रत्येक किसान को 20 पौधे लगाना अनिवार्य था। जंगल से झाड़ काटना अपराध माना जाता था। पुण्यश्लोका के शासनकाल में एक करोड़ से अधिक पौधे रोपित और पोषित किए गए थे। लोकमाता ने कृषि, उधोग,  व्यापार को बढ़ावा दिया, लेकिन प्रकृति के हितों का हमेशा ध्यान रखा। उनका मानना था कि कण कण में शिव अंश व्याप्त है, हर पशु पक्षी में जीवन। सबके भीतर स्वाभिमान है, सबके भीतर मानव सा तन। 

उन्होंने पशुपालकों के लिए भूमि और पशु उपलब्ध करवाए। बड़े-बड़े चारागाह स्थापित किए। वन्यजीवों के लिए जलाशयों की विशेष व्यवस्था की गई। वे पक्षियों के लिए हरे भरे खेत खरीद कर छोड़ देती थीं। उन्होंने प्रर्यावरण सन्तुलन को बढ़ावा दिया। चींटियों को आटा और मछलियों को आटे की गोलियां डालना उनकी दिनचर्या में शामिल था। वे नर मछली को राम और मादा मछली को मौसी कहकर सम्बोधित करतीं थीं। मातोश्री ने 4 धाम, 7 पुरी ,12 ज्योतिर्लिंग सहित 12672 स्थानों पर मंदिर ,धर्मशाला ,कुएं, बावड़ी ,घाट आदि के निर्माण कार्य कराए। विद्यालय, चिकित्सालय संचालित किए । प्रत्येक स्थान को स्वच्छ और शुद्ध रखने के लिए वृक्षारोपण का विशेष ध्यान रखा । इसके लिए अलग से कर्मचारी नियुक्त थे। 

उनके शासनकाल में अनेक सड़क मार्गों के निर्माण हुए। काशी से कलकत्ता तक राजमार्ग का निर्माण मातोश्री ने करवाया । सड़क के दोनों ओर फल और छाया दार पौधे रोपित करना एक महत्वपूर्ण प्रकल्प था।  उन्होंने अपने परिजनों की याद में बनवाये स्मारकों के आसपास जल और हरियाली की भरपूर व्यवस्था करवाई थी। देश भर में निर्मित, कुएं तालाब,   बाबडियो में आज भी भरपूर जल स्रोत मौजूद हैं। आसपास के लोग दैनिक उपयोग और सिंचाई के लिए काम में लेते हैं। उत्कृष्ट वास्तुकला के नमूने ये जल स्रोत कई स्थानों पर शासन प्रशासन की अनदेखी और आमजन में जागरूकता के अभाव में अपना मूल स्वरूप खो रहे हैं।

नारी शक्ति अग्रदूत ने मानव जीवन के मूल्यों को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने जीव+वन अर्थात जहां वन है वहां जीवन है की कहावत को चरितार्थ किया था। सर्व जन हिताय सर्वजन सुखाय के सिद्धांत पर चलकर उन्होंने वेद और विज्ञान को जनकल्याण की कसौटी पर कसकर मूर्त रुप दिया। उनका मानना था कि प्रजा के सुख में राजा का सुख है। प्रजा के हित में उनका हित है। स्वस्थ सुखी समाज ही राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका निभा सकता है। वे अपनी प्रजा को संतान मानकर चलतीं थीं। यही प्रमुख कारण था कि लोगों ने उन्हें जीवन काल में ही मां, देवीश्री, पुणयशलोका जैसे सम्मान देकर अपने मन मंदिर में स्थापित कर लिया था। 

मातोश्री ने तलवार के बल पर नहीं बल्कि प्रेम के बल पर लोगों के दिलों पर राज किया था। गंगा, यमुना, सिंधु , नर्मदा,ताप्ति, कृष्णा,कावेरी, गोदावरी, शिप्रा, आदि नदियों के तट पर कराये गये कार्य उनके व्यापक दृष्टिकोण को बयान करते हैं। जल संरक्षण के क्षेत्र में उनका अद्भुत, अनुकरणीय योगदान विश्व में एक अनूठी मिसाल पेश करता है। आज अनेक शोधार्थी इस विषय पर कार्य कर रहे हैं। विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर हम मातोश्री के जीवन दर्शन को आत्मसात करें। माता भूमि: पुत्रो अहं पृथिव्या:। अर्थात भूमि मेरी माता है और मैं उसका पुत्र हूं। अतः प्रत्येक पृथ्वी वासी को चाहिए कि वह पावन धरा को मां मानकर जग जीवन के रुपों के सहजने की साधना,सबके हित की भावना के साथ कार्य करें।

- घनश्याम होलकर
इतिहासकार
9314179253

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