बच कर लिखने पर बात नहीं बन सकती : सेवाराम त्रिपाठी
व्यंग्यधारा की 56 वीं ऑनलाइन व्यंग्य रचना विमर्श गोष्ठी
नागपुर। व्यंग्य बच कर लिखने पर बात नहीं बन सकती। उपरोक्त कथन व्यंग्यधारा की 56वीं ऑनलाइन व्यंग्य रचना विमर्श गोष्ठी 'इस माह के व्यंग्य' में मई माह की चयनित रचनाओं पर चर्चा करते हुए प्रमुख वक्ता वरिष्ठ व्यंग्यकार सेवाराम त्रिपाठी (रीवा) ने कहा.अपनी बात को आगे बढ़ाते सेवाराम त्रिपाठी कहते हैं कि व्यंग्य लेखन तलवार की धार पर चलना है।
व्यंग्य हमेशा प्रतिपक्ष में रहा है और प्रतिरोधी स्वर प्रकट होते रहे हैं। किसके लिए और क्यों लिख रहे हैं ? इस पर विचार करने की आवश्यकता है। लेखन बिना आग में तपे संभव नहीं है। बच कर लिखने पर बात नहीं बन सकती। विडंबना है कि आज व्यंग्य की जमीन खिसकती जा रही है। व्यंग्य के लिए जरूरी है करुणा। यह कोई मजाक नहीं है। व्यंग्य परिवर्तन की बात करता है। व्यंग्य का लक्ष्य बड़ा है और परतदार भी।
श्री त्रिपाठी ने जगदीश ज्वलंत के व्यंग्य ' गिरवी रखा हुआ ईमान' तथा रंगनाथ द्विवेदी के व्यंग्य 'हीरालाल की नाक' का विश्लेषण किया। उन्होंने कहा कि 'गिरवी रखा हुआ ईमान' में व्यंग्य की कहनभंगिमा उत्कृष्ट है। सारी बातें सूत्रों में कही गई है। यह मारक रचना है। हीरालाल की नाक व्यंग्य दरअसल व्यंग्याभास है। हास्य है लेकिन न के बराबर। हालांकि इसमें व्यंग्य की संभावना है।
गोष्ठी के प्रमुख वक्ता ब्रजेश कानूनगो ने कहा कि आज के व्यंग्य में शैलीगत, भाषागत और नीतिगत विविधता हो सकती है लेकिन किसी व्यंग्य को खारिज नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि सफल रचना का कोई फॉर्मूला नहीं है। रचना में स्थाई रूप से समाज के हितचिंतन, मनुष्य के हित और दुखों को स्थान देना जरूरी है।
समकालीन यथार्थवादी सवालों और उनकी पक्षधरता भी जरूरी है। उन्होंने प्रभाशंकर उपाध्याय के व्यंग्य 'साहित्य संसार के देव महादेव' और राकेश सोहम के व्यंग्य 'हो रहा जिक्र पैहम में आम का' की समीक्षा करते हुए कहा कि इस व्यंग्य को एक लंबी फिल्म के ट्रेलर की तरह संक्षेप में समेट दिया गया हो. उन्होंने इसे सामान्य सी रम्य रचना बताया।
वरिष्ठ व्यंग्यकार वेदप्रकाश भारद्वाज ने कहा कि व्यंग्यकार को जीवन के विभिन्न पक्षों पर नजर रखते हुए प्रहार करना चाहिए। व्यंग्य पाठकों को जगाएं और सोचने पर विवश करें। व्यंग्य का शीर्षक व्यंग्यात्मक होना चाहिए। श्री भारद्वाज ने डॉ अतुल चतुर्वेदी के व्यंग्य 'आक्सीजन सिलेंडर गाथा' और साधना बलवटे के व्यंग्य 'मृत्युलोक बन गया वास्तव में मृत्युलोक' की समीक्षा की।
'ऑक्सीजन सिलेंडर गाथा' को ठीक-ठाक रचना बताते हुए कहा कि इसका एक वाक्य प्रभावी है कि परिवर्तन की हवा बैलगाड़ी से चलकर आती है। कथोपकथन शैली में यह रचना दो सिलेंडरों की बातचीत के माध्यम से बुनी गई है। मृत्युलोक नामक व्यंग्य को अच्छी रचना बताते हुए कहा कि यमदूत का प्रमोशन का मार्मिक प्रसंग है।
वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री रमेश सैनी ने कहा कि व्यंग्य समसामयिक घटनाओं पर लिखा जा सकता है लेकिन रचना बीस या साल तक याद की जा सकेगी उसमें ऐसे तत्व की बात है जो उसकी आयु बढ़ा सके.इस ओर ध्यान दिया जाना जरूरी है। व्यंग्य लेखन जिम्मेदारी और दायित्व का काम है। जो व्यंग्यकार अपनी जिम्मेदारी से बचते हैं तो वे अपने समाज को , खुद को और अपने लेखन को धोखा देते हैं।
पल्लवी त्रिवेदी के व्यंग्य इम्युनिटी की समीक्षा करते हुए कहा कि यह अच्छा व्यंग्य है। सभी इम्युनिटी बढ़ाने पर सोच रहे हैं। टीवी, बाबा, डॉक्टर और वैद्यों का बाजार सजा है। यह बाजार और मानवीय संवेदना के शून्य होते जा रहे खतरे के प्रति आगाह करती है।
रामविलास जांगिड़ के व्यंग्य 'एक भूत का लाइव इंटरव्यू' की चर्चा करते हुए कहा कि यह अच्छी रचना है। भूत आज नेता, बलात्कारियों, हत्यारों और सोशल मीडिया से डर रहा है। सोशल मीडिया झूठी खबरें दे रहा है। सच-झूठ का पता नहीं चल रहा है।यह आज के समाज के लिए चिंतनीय है।
शशांक भारतीय के व्यंग्य 'मैं तब तक मरा नहीं था' पर बात करते हुए रमेश सैनी ने कहा कि यह मानवीय संवेदना और सरोकार पर आधारित अद्भुत व्यंग्य है। उन्होंने कहा कि जब तक हम जीवन, समाज या जग से नहीं जुड़ेंगे तब तक अच्छी बात नहीं कह पाएंगे.यह भारतीय मूल्यों, परिवार में प्रेम और समर्पण से रची पगी रचना है इसमें वे सभी तत्व और गुण हैं जिससे हम कह सकते हैं कि यह भविष्य की रचना है।
इस अवसर पर श्री राजेंद्र वर्मा, अभिजीत दुबे, प्रभात गोस्वामी, रेणु देवपुरा, राजशेखर चौबे, बुलाकी शर्मा, डॉ सुरेश कुमार मिश्र 'उरतृप्त', अनूप शुक्ल, राकेश सोहम ने भी अपने विचार व्यक्त किए। रामविलास जांगिड़ ने कहा कि वे लिखते वक्त रचना में तीन बातों पर ध्यान देते हैं प्रवाह, नयापन और विडंबना। इस भव्य और स्मरणीय कार्यक्रम का सुंदर संचालन समालोचक डॉ. रमेश तिवारी ने किया।
आभार प्रदर्शन करते हुए व्यंग्यकार और उपन्यासकार मधु आचार्य 'आशावादी' ने कहा कि रचना शाश्वत और कालजयी हो सकती है बशर्ते हम अपने समय के प्रति ईमानदार रहें। सोशल मीडिया के खरे रूप को सामने लाने की आवश्यकता है।
इस ऑनलाइन गोष्ठी में पिलकेंद्र अरोरा, शांतिलाल जैन, सुनील जैन राही, अलका अग्रवाल सिगतिया, हनुमान प्रसाद मिश्र, टीकाराम साहू 'आजाद', ओम वर्मा, पंकजेन्द्र किशोर, सूर्यदीप कुशवाहा, रामस्वरूप दीक्षित, वीना सिंह, रेशमा मालू, मुकेश राठौर, वीरेंद्र सरल, सौरभ तिवारी आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही