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इंसानियत जिंदा रहने दो...



पैसा ही क्या सब कुछ होता है 
पैसों के लालच में कितना
बदल गया है न इंसान ?

इस आपदा के विकट समय में
भी मानवता को कितना 
शर्मसार कर रहा है इंसान
देखो, कितना बदल गया है इंसान

देश में चारो तरफ मचा हुआ
है हाहाकार और...
भूलकर इंसानियत पैसे कमा रहा है इंसान

रक्षक ही भक्षक नज़र
आने लगा है अब तो
इंजेक्शन लगाकर पानी का
मानवीयता भूल रहा है इंसान
उफ्फ, कितना गिर गया है इंसान

मारकर आत्मा अपनी कैसे
जी रहा है इंसान
हैरत है, हैवान कैसे बन गया इंसान
लाभ उठा रहे हैं मजबूरी का
बैड, दवाई, ऑक्सीजन के 
बदले,सौदेबाजी कर रहा है इंसान
मर गया आंखों का पानी
इन धूर्तों का कोई नहीं है सानी

कभी ऐसा सोचा भी नहीं था
मौत का इस तरह मंज़र छाएगा
नदी में बहती लाशें देखकर
हर किसी का कलेजा दहल जाएगा
पर हृदय विदारक ये नज़ारा
देखकर भी नहीं पसीजता इन
पत्थरों का दिल
सच में कितना बदल गया है न इंसान

मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के 
इस देश को  - है इंसान, तुम मानवता को और कितना शर्मशार करोगे?
लाशों के कफ़्न तक की चोरी 
करके, इंसानों ने अपने इंसान
होने तक की मर्यादा खत्म कर दी
चंद रूपयों के लालच में कितना बदल गया है इंसान

है भगवान मानवता के दुश्मन
मौत के सौदागरों को सद्बुद्धि दो 
एहसास कराओ कि एक दिन तेरा भी यही हश्र होगा, तू भी एक 
इंसान ही है 
बस अब तो हद हो गई है 

है इंसान,अब तो रूक जा, कुछ तो इंसानियत ज़िंदा रहने दे।

ऐसे घृणित कृत्य करके तुम्हारी
आत्मा नही चित्कारती क्या
ऐसा करके तुम अपने बच्चों और
भावी भविष्य को अच्छे संस्कार कैसे दे पाओगे ? ऐसे कर्म करके चैन से कैसे सो पाते हो तुम ?

इंसान का जन्म बहुत मुश्किल से 
मिलता है, कुछ तो इंसानियत 
रखो अपने अंदर!
इंसानियत और मानवता की 
मिसाल बनों

ताकी तारीखें बोले, वाकई बदल गया है इंसान।

- डॉ. शम्भू पंवार
लेखक, साहित्यकार एवं पत्रकार - विचारक,
सुगन कुटीर, चिड़ावा (राजस्थान)
काव्य 5644934522673772294
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