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चिकित्सीय विवाद तात्कालिक सुलझाना ज़रूरी

 


एलोपैथी और आयुर्वेद, होम्योपैथी के आपसी विवाद से कोविड -19 के खिलाफ लड़ाई कमजोर होगी : एड किशन भावनानी

गोंदिया - भारत में कोरोना महामारी से महायुद्ध में शासन-प्रशासन, न्यायपालिका क्षेत्र, चिकित्सा क्षेत्र, व्यापारिक, सामाजिक क्षेत्र, गैर सरकारी स्वयंसेवी संस्थाएं, एनजीओस, धार्मिक संस्थाओं सहित अन्य क्षेत्र के नागरिकों सहित सभी एक साथ मिलकर, एक लक्ष्य से कोरोना महामारी को हराने के लिए रणनीतिक रूप से एक कुचल सैनिक बनकर युद्ध लड़ रहे हैं और मन में ठान लिया है कि कोरोना महामारी को भारत से, पूरी तरह से, जड़ से मिटा देंगे। दिनांक 25 मई 2021 को स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा घोषित आंकड़े दो लाख़ से भी कम बताए गए। जबकि एक महीने पूर्व चार लाख से अधिक रोज़ाना आंकड़े आ रहे थे। 

अभी रिकवरी रेट भी बहुत अच्छा चल रहा है और इस महामारी से बेकाबू हो रहे कुछ राज्यों में भी तेजी से स्थिति सामान्यता की ओर बढ़ रही है, जिससे संकेत मिल रहे हैं कि वह दिन ज्यादा दूर नहीं जब हम इस महामारी पर पूर्ण  नियंत्रण पाने में सफल होंगे। बस जरूरत है एकचित्त होकर आपसी तालमेल, सहयोग और सकारात्मक व्यवहार, रवैया, रखने की और मंजिल शीघ्र पाने का संकल्प धारण करने की।.....बात अगर हम कोरोना महामारी से लड़ाई की करें तो चिकित्सीय क्षेत्र ने इस महायुद्ध में एक तरह से चीफ कमांडर का रोल अदा कर रहा है और उसी की सल्लाह, परामर्श, दिशा-निर्देशों से ही उपरोक्त सभी पक्ष सैनिक बनकर लड़ाई में साथ और सहयोग कर रहे हैं। 

परंतु अगर यह चिकित्सा क्षेत्र ही आपसी विवादों में उड़ पड़ेगा तो कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई कमजोर होगी और हमारे जंग जीतने की दूरी बढ़ती जाएगी जिसे तात्कालिक रोकना, कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई में शामिल उपरोक्त सभी संस्थाओं रूपी सैनिकों का काम है।....बात अगर हम चिकित्सा क्षेत्र के आपसी विवादों की करें तो इसकी शुरुआत, माननीय बाबाजी ने जो आयुर्वेद, योग चिकित्सा से जुड़े हैं, के एक-दो बयान से हुई जिसका विरोध इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा किया गया और स्वास्थ्य मंत्रालय को पत्र लिखकर अपना विरोध प्रकट किया जिस पर माननीय केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री महोदय ने बाबाजी को पत्र लिखकर अपना बयान वापस लेने को कहा और बाबा जी ने ट्विटर हैंडल पर अपने बयान को वापस ले लिया। 

दिनांक 24 मई 2021 को एक प्रसिद्ध टीवी चैनल पर रात्रि में एक लाइव डिबेट कार्यक्रम में दोनों पक्षों बाबाजी और आईएमए के पदाधिकारियों को आमने-सामने बैठाकर बातचीत करवाई गई। जिसे पूरे भारत के नागरिकों ने जिसके पास वह टीवी चैनल होंगे, देखे होंगे, साथियों, मेरा मानना है कि मुझे उसमें एलोपैथी और आयुर्वेद, होम्योपैथी में टकराव की स्थिति नजर आई जो वर्तमान कोरोना काल में दुर्भाग्यपूर्ण है। दिनांक 25 मई 2021 को बाबाजी द्वारा एक ओपन लेटर लिखकर एलोपैथी से संबंधित 25 प्रश्न पूछने के लिए पत्र जारी किया गया। उधर आईएमए ने इस संबंध में उत्तराखंड के सीएम और मुख्य सचिव को एक पत्र लिखकर कड़ी कार्रवाई करने संबंधी निवेदन भेजा है और सरकार की तरफ से ठोस कार्रवाई न होने पर अगली रणनीति बनाने की बात कही है और बाबाजी को भी एक लीगल नोटिस भेजकर 14 दिन में उसका जवाब देने के लिए कहा है और नहीं देने पर प्राथमिकी दर्ज कराने की बात कही गई है। 

हालांकि आईएमए पदाधिकारियों ने योग चिकित्सा पर कोई प्रश्न नहीं उठाया और नाही आयुर्वेद और होम्योपैथी पर कोई प्रश्न चिन्ह लगाया। परंतु आईएमए के पदाधिकारियों को बाबाजी के तथाकथित बयान पर आपत्ति थी और उस पर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।....बात अगर हम चिकित्सीय क्षेत्र की पद्धतियों की करें तो, दोनों ही पैथी का अपना महत्व है। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति जहां बीमारी से बचाव और उसको जड़ से खत्म करने में असरदार है, तो एलोपैथी एक्यूट और सीवियर बीमारियों, जटिल ऑपरेशन्स और इन्फेक्शन के इलाज में बेहतर है। 

दोनों ही पैथी के कुछ न कुछ साइड इफेक्ट्स भी हैं। एलोपैथिक और आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक, दुनिया के सभी चिकित्सा विज्ञान का एक ही उद्देश्य है, स्वास्थ्य का रक्षण, लेकिन सभी चिकित्सा विज्ञान की कुछ न कुछ विशेषता होती है। सभी चिकित्सा विज्ञान के सिद्धांत अलग अलग होते है। बढ़ते अनुसंधान एवं विकास के साथ चिकित्सा विज्ञान का भी विकास होता रहा है। पिछले कई सालों में आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने आसमान छुलेने वाली तरक्की की है। जो रोग आज से २० साल पहले असाध्य माने जाते थे जैसे की कैंसर , डायबिटीज़ , पोलियो , टी.बी , उनका इलाज आज आधुनिक चिकित्सा द्वारा मुमकिन बना है। 

अतः उपरोक्त पूरे विवरण का अगर हम अध्ययन करउसका विश्लेषण करेंगे तो, यही सार निकलेगा कि वर्तमान कोरोना काल से ग्रस्त संकट की घड़ी में एलोपैथिक, आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक विभिन्न चिकित्सीय पक्षों का आपसी विवाद दुर्भाग्यपूर्ण है। जिसे समाप्त करना होगा। अगर इन चीफ कमांडर सभी चिकित्सीय क्षेत्रों का ध्यान इस महामारी से युद्ध में एकाग्र रखने में कठिनाई महसूस होगी तो इसका विपरीत प्रभाव कोविड -19 ग्रस्त मरीजों के स्वास्थ्य पर पड़ने की संभावना है। इसलिए इस विवाद को फिलहाल समाप्त करने की पहल करना बेहतर विकल्प रहेगा।


- संकलनकर्ता लेखक - कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया (महाराष्ट्र)
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