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व्यंग्य में संवेदनहीनता के लिए कोई जगह नहीं है : रमेश सैनी


नागपुर। व्यंग्यधारा की बावनवीं ऑनलाइन वीडियो गोष्ठी रविवार को आयोजित की गई। व्यंग्यकार श्री रमेश सैनी ने कहा कि व्यंग्य में संवेदनहीनता के लिए कोई जगह नहीं है। हर बार यह सवाल उठता है कि सीमित शब्दों के कारण व्यंग्य नहीं उभर पाया। उन्होंने संपादकों द्वारा व्यंग्य के कतरब्योत पर चिंता जताते हुए कहा कि इसमें व्यंग्य और व्यंग्यकार दोनों का नुकसान है, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि हम संपादक के चरणों में पूरी तरह समर्पित हो जाते हैं। 

श्री सैनी ने कहा कि व्यंग्यधारा समूह ने इस वर्ष जनवरी 2021 से एक नवीन शुरुआत की है-"इस माह के व्यंग्य’। इसके अंतर्गत इस बार अप्रैल-2021 में प्रकाशित व्यंग्य रचनाओं में से कुछ चयनित रचनाओं पर अभिजित कुमार दुबे ( धनबाद ), निर्मल गुप्त (मेरठ), अनूप शुक्ल (शाहजहांपुर), रामस्वरूप दीक्षित ( टीकमगढ़ ) ने अपने विचार व्यक्त किए। 

चर्चा की शुरुआत करते हुए अभिजीत दुबे ने कुंदनसिंह परिहार का व्यंग्य "अपनी किताब पढ़वाने की कला’ पर कहा कि यह एक छोटी हास्य रचना है। इसमें व्यंग्य कम है। पंच डालने की कोशिश की गई है। हालांकि रचना में विस्तार की काफी गुंजाइश है। व्यंग्य में किताब के पृष्ठों की संख्या बता कर किताब पढ़ने का दबाव बनाने की प्रवृत्ति पर प्रहार किया गया है। 

शांतिलाल जैन के व्यंग्य "स्वेज नहर और अपना शहर’ पर चर्चा करते हुए कहा कि लाजवाब रचना है जो बार-बार पढ़ने को प्रेरित करती है। इस व्यंग्य में भारतीय जनमानस  की प्रवृत्ति पर तीखा प्रहार किया गया है। बाहर हम भारतीय मिलजुल कर रहते हंै और देश में जूतमपैजार।  भाषा शैली और शब्दों की जादूगरी प्रभावशाली है। 

भाषा को लेकर सजग रहने की आवश्यकता : दीक्षित

आयोजन में अतिथि वक्ता रामस्वरूप दीक्षित ने कहा कि भाषा को लेकर सजग रहने की आवश्यकता है। प्रभावी व्यंग्य के लिए भाषा के साथ ही विचार और कथ्य का ईमानदारी से निर्वहन जरूरी है। नए शब्दों और प्रतीकों का प्रयोग किया जाना चाहिए। श्री दीक्षित ने अलंकार रस्तोगी के व्यंग्य ‘लोमड़ी की चालाकी का लेटेस्ट वर्जन' पर चर्चा करते हुए कहा कि व्यंग्य का कंटेंट अच्छा है। भाषा पर ध्यान देने की आवश्यकता है। 

उन्होंने शशिकांत सिंह ‘शशि’ के व्यंग्य ‘फरियादी हाजिर हो' पर चर्चा करते हुए कहा कि रचना में व्यवस्था पर करारा प्रहार किया गया है। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पत्रकारिता की विसंगतियों और भूमिका पर गहरा कटाक्ष है कि सत्ता पोषक मीडिया सत्ता की ही तरफदारी करता है। विषय अच्छा है, किंतु विस्तार के चक्कर में व्यंग्य का सांगठनिक ढांचा कमजोर हो गया है। 

व्यंग्यकार अनूप शुक्ल ने हरीश कुमार सिंह के व्यंग्य ‘पुलिस की पावर' और अख्तर अली के व्यंग्य ‘कब्रस्तान में संक्रमित प्रेमी युगल' पर चर्चा की। व्यंग्य में एक ओर समाज और व्यवस्था की विफलता पर चोट किया गया है और दूसरी ओर जिंदगी के बजाय मृत्यु को उपलब्धि बताना ही इस व्यंग्य की सीमा है। रचना में प्रेमी युगल मरने को उपलब्धि मान रहे हैं जबकि प्रेम मरने की नहीं, जीने की जिजीविषा पैदा करता है। पुलिस की पावर व्यंग्य सपाट रचना है। इसमें पुलिस की कार्यशैली को उजागर किया गया है|

निर्मल गुप्त ने छोटे व्यंग्यों की स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा कि व्यंग्य अब धीरे-धीरे पॉकेट कार्टून के करीब जा रहा है। कम शब्दों में अपनी बात कहने के लिए युक्ति चाहिए। व्यंग्यकार को कविता की भी थोड़ी समझ पैदा करने की आवश्यकता है, ताकि तीखे और कम शब्दों में अपनी बात कह सके।  

श्री गुप्त ने हरीश नवल के व्यंग्य ‘भैयाजी की चोट' रचना की चर्चा करते हुए इसे अधूरा व्यंग्य बताया। उन्होंने शंका जताई कि यह व्यंग्य कहीं से कतर कर तो नहीं लगाया गया है या किसी प्रकाशनाधीन उपन्यास का अंश तो नहीं है। ललित उपमन्यु के व्यंग्य ‘मुर्गा, मीटिंग और भैयाजी की हार' को अच्छा, लेकिन सपाटबयानी से युक्त रचना बताया। भाषा में तीखापन नहीं है। व्यंग्य में वृतांत से काम नहीं चलता।

चर्चा में दिल्ली के व्यंग्य आलोचक डॉ रमेश तिवारी ने कहा कि लेखक को  जीवन और जीवन संघर्ष की बात करनी चाहिए। व्यंग्य में सार्थक मूल्यों की बात होनी चाहिए। छोटी रचना को चुनौती के रूप में लेते हुए समग्रता के साथ पेश करने की आवश्यकता है। रायपुर के व्यंग्यकार राजशेखर चौबे ने अख्तर अली की रचना पर अपनी राय रखते हुए रचना को व्यंग्यकार के उद्देश्यों के अनुरूप पढ़ने की जरूरत पर बल दिया। 

बीकानेर के बुलाकी शर्मा, जबलपुर के कुंदन सिंह परिहार, धमतरी के वीरेंद्र सरल, सूर्यदीप कुशवाहा ने भी अपने विचार व्यक्त किए। आभार प्रदर्शन करते हुए बीकानेर के प्रमोद कुमार चमोली ने व्यंग्यधारा समूह की सराहना की और कहा कि समूह के कार्यक्रम से सीखने को मिलता है। हम अपने लेखन में सुधार कर सकते हैं। कार्यक्रम का संचालन रमेश सैनी ने किया। 

आयोजन में मधु आचार्य ‘आशावादी', सुनील जैन राही (दिल्ली),  कुमार सुरेश (भोपाल), अलका अग्रवाल सिग्तिया (मुंबई), वेद प्रकाश भारद्वाज (गाजियाबाद), श्रीकांत आप्टे (भोपाल), डा. संजीव कुमार ( दिल्ली), मुकेश राठौड़ (भीकमगांव मप्र), हनुमान प्रसाद मिश्र (अयोध्या), टीकाराम साहू ‘आजाद’ (नागपुर), रेणु देवपुरा (उदयपुर), एम एम चंद्रा (दिल्ली), सौरभ तिवारी (दिल्ली) आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
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