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मेरे गाँव का पोखरा...


मेरे गाँव का प्रतीक है
मेरे गाँव का पोखरा

याद करता है अतीत
मिट्टी निकाल
लोगों ने घर बनाया
सुन्दर गाँव बसाया
विविधता में एकता की मिशाल
मेरे गाँव का पोखरा

तब
जब घर बन रहे थे
न पूछा था किसी से जात
और न पूछा था धर्म 
अब

जब पानी जमा होता है उसमें
हर किसी की
प्यास बुझाता है
बड़ा ही स्वाभिमानी है यह
नि:स्वार्थ सेवा करता है
मेरे गाँव का पोखरा

आज आधुनिकता ने
छीन ली पोखरे की पहचान
नहीं रहे अब मिट्टी के घर
ईंट, पत्थर की दीवार वाले
बन गए पक्के मकान
बहकर आने लगी अब गंदगी
पूरे गाँव की उस पोखरे में

फिर भी वजूद कायम है उसका
प्यास बुझाकर पशुओं-पक्षियों की
कहता है उनसे बार-बार यही
आधुनिकता की अंधी दौड़
मिटा नहीं पाएगा कभी
मेरे अस्तित्व को, मेरे स्वरूप को।


- कवि : डॉ. प्रमोद पाण्डेय

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