जिंदगी को आनंदित करने का मूल मंत्र
अपनी गलतियों, कमियों को स्वीकार करना, अपने सुरक्षित उज्जवल भविष्य का द्वार खोलने के बराबर : एड किशन भावनानी
वैश्विक रूप से मानव जीवन में हम देखें तो अधिकतम मनुष्य की प्रवृत्ति होती है कि वह सबकुछ अर्जित करना चाहता है। मैं और सभकुछ मेरा, यह स्वाभाविक रूप से मानव जीवन का एक संकल्प है। आज इस मानव जीवन के दौर में और वह प्राप्त भी कर रहा है। मानव का यह स्वभाव है कि आज वह आधुनिक जीवन, सारी विलासितापूर्ण सुख सुविधाओं आराम देह जिंदगी को अपनी पहली पसंद बताना चाहेगा। स्वाभाविक रूप से आज के युग में यह ठीक भी है।
....बात अगर हम भारतीय अपने हमारे, बड़े बुजुर्गों की करें तो आज के युग में उनकी एक एक बात, वाणी, बोल, अनमोल हीरे की तरह हम अपनी जिंदगी में महसूस भी करते हैं। बुजुर्गों की वाणी है कि,जीवन एक चक्र की तरह घूमता रहता है, उस चक्र में सुख-दुख, विपत्तियां, परेशानीयां, खुशीयां, अमीरी गरीबी इत्यादि अनेक हिस्सों से मिलाकर वह जीवन चक्र बनता है और करीब-करीब हर व्यक्ति या पीढ़ी के जीवन में इस जीवन चक्र के हर पार्ट आते ही हैं।
मैंने स्वयं अपनी पीढ़ी में इस जीवन चक्र के हिस्से देखे हैं और मुझे विश्वास है कि करीब करीब सभी ने जो उम्र में 50 प्लस, 60 प्लस, 70 प्लस, होंगे उन्होंने तो जरूर देखें होंगे।...बात अगर हम भारतीय नागरिक के उपरोक्त जीवन चक्र की करें तो भारत माता की मिट्टी ही संस्कारों से ओतप्रोत है, भारत में जन्मे अधिकतम नागरिकों को जीवन चक्र की विपरीत परिस्थितियों से मुकाबला कर परिस्थितियों अनुसार झुककर उससे पार पाने में महारत हासिल है।
बस जरूरत है उसका जीवन में उपयोग करने का।...बात अगर हम परिस्थितियों के अनुसार थोड़ा झुकने की करें तो बड़े बुजुर्ग बुजुर्गों ने कहा है के बोलत-बोलत बड़े बिखात, याने बहसबाजी से ही परेशानियां, झगड़ा, विपरीत परिस्थितियां अपना उग्र रूप, धारण करती है। अतः हमें चाहिए कि यदि हम किसी बात में गलत हैं, या दोष हमारा है, तो हमें उसको स्वीकार कर झुकने की सामर्थता धारण करनी चाहिए। बुजुर्गों ने कहा है कि झुकने वाला ही महान कहलाता है। फलों से लदा हुआ झाड़ भी झुकता है, हर व्यक्ति फलों, फूलों से लदे वृक्ष की ओर आकर्षित होता है।
उसी तरह झुक कर विपरीत परिस्थितियों को भी अनुकूल परिस्थितियां बनाने और सकारात्मकता की ओर बढ़ने का अस्त्र झुकना है।...बात अगर हम तालमेल की करें तो जीवन चक्र में अनेक परिस्थितियां ऐसी उत्पन्न होती है कि उन परिस्थितियों से समझौता करना पड़ता है। अन्यथा बहुत कष्ट, हानि, होने का अंदेशा रहता है। परंतु हम आत्मविश्वास में खोए रहते हैं कि हम सही हैं, हम गलत नहीं हो सकते। परंतु बड़े बुजुर्गों ने कहा है कि, कानों सुनी तो क्या, आंखों देखी पर भी सोच समझकर विश्वास करना चाहिए!!
बिल्कुल सत्यता क्योंकि कभी-कभी ऐसा भी होता है कि जो हम अपनी आंखों से देख रहे हैं वह उस मायने में नहीं है जैसा हम उसका मूल्यांकन कर रहे हैं। इसलिए हमें उन परिस्थितियों से तालमेल करना चाहिए और संघर्ष करने वाला समय आने पर विपदा विपत्ति, बुरी परिस्थितियों, में केवल बहाने बनाना, या मेरी मुर्गी की एक टांग, वाली परिस्थिति नहीं करना चाहिए। तालमेल रूपी मंत्र को अपनाना ही समझदारी होगी उसमें जीवन को बहुत आसान और आनंदित बनाया जा सकता है।
.....बात अगर हम भूल को मानने की करें तो कोई भी काम अच्छा और ठीक सोचकर क्रियान्वयन करते हैं। परंतु कुछ अज्ञानता वश हमसे कुछ भूल हो जाती है और उस क्रियान्वयन का, प्रतिकूल प्रभाव हमें देखने को मिलताहै और हम अपने व्यक्तित्व को देखकर हम उसे दूसरों पर थोपना, कथित उचित ठहराना, इत्यादि अनेक बातों की सहायता लेने की कोशिश करते हैं। परंतु यहां भी बड़े बुजुर्गों ने कहा है कि सच्चाई छुप नहीं सकती बनावट के उसूलों से, अतः यदि किसी अज्ञानता वश या जानबूझकर कोई भूल हुई है तो उसे स्वीकार करना भी महानता के बराबर है और आगे ऐसी भूल नहीं करने का संकल्प लेना सोने पर सुहागा है।
इसमें ऐसा करने वाले के व्यक्तित्व में निखार आता है और अपेक्षाकृत अधिक सुचारिता, व्यक्तित्व में झलकती है। वैसे भूल करने के बाद खेद प्रकट करना या सॉरी शब्द भी पश्चाताप का एक प्राथमिक व सयोगय शब्द है जो आजकल प्रचलित भी है।... बात अगर हम गम खाने की करें तो यह मंत्र सबसे कठिन और भारी है। क्योंकि आज के युग में कोई गम खाने अर्थात पीछे हटने, कुछ हानि सहन करने, त्याग करने, के मूड में नहीं होता। हर किसी की सोच यह होती है कि मैं सही हूं तो, मैं क्यों गम खाऊं या पीछे हटूं। पर यही तो सबसे ऊंची महानता है कि खुद पूरा सही होते हुए भी गम खाकर, किसी को आगे लाना, सम्मान करना, अपनी पूर्ति हो जाने पर किसी और के लिए अवसर छोड़ना, यह मंत्र अपनाने वाला मनुष्य, ईश्वर अल्लाह के तुल्य होता है।
क्योंकि हम जरूर देखते हैं कि होंगे कि पशु पक्षी भी उतना ही दाना चुकते, खाते हैं, जिसमें उनका पेट भर जाए।बाकी अपने दूसरे साथियों के लिए छोड़ देते हैं। परंतु यह भी कटु सत्य है कि आज के इस युग में इस आखरी मंत्र को अपनाने, क्रियान्वयन करने में, इसकी संभावना का आंकलन करना कठिन महसूस होगा। अतः उपरोक्त पूरे विवरण का अगर हम विश्लेषण करें तो हम कह सकते हैं कि परिस्थितियों के अनुसार थोड़ा झुकना, तालमेल बैठाना, भूल स्वीकार करना जिंदगी को बहुत आसान और आनंदित करने का मूल मंत्र है। अपनी गलतियों, कमियों, को स्वीकार करना अपने सुरक्षित उज्जवल भविष्य का द्वार खोलने के बराबर है।
- संकलनकर्ता लेखक - कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र