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भारतीय ज्ञान मंच ने कागज़ कला और शिल्प प्रतियोगिता का किया आयोजन


डॉ. भारत खुशालानी ने रॉकेटो  के इतिहास से कराया रूबरू

नागपुर। भारतीय ज्ञान मंच द्वारा स्कूली विद्यार्थियों के लिए आज ‘कागज़ कला और शिल्प’ प्रतियोगिता का आयोजन किया गया. पांचवीं से दसवीं तक की कक्षा के बच्चों ने इसमें भाग लिया. प्रतियोगिता का विषय ‘रॉकेट’ था. इसमें विद्यार्थियों को दुनिया के अलग-अलग रॉकेट बनाने के लिए दिए गए. विद्यार्थियों ने रॉकेट के अलग अलग हिस्सों को जोड़कर रॉकेट का मॉडल तैयार किया. 


उन्होंने नोज-कोन, फिन, नोजल, फ्यूल टैंक, पेलोड, इंजन आदि को मिलाकर रॉकेट को खडा किया. 50 से 100 मीटर की ऊंचाई वाले रॉकेट विद्यार्थियों ने एक मीटर लम्बे बनाए. एरियन, एटलस, डेल्टा, जूनो, लॉन्ग-मार्च, प्रोटोन, पेगासस, स्पेस - शटल, सैटर्न, टाइटन, स्पुतनिक, फैलकन, स्टारशिप आदि के साथ साथ प्रतिभागियों ने हिन्दुस्तान के GSLV और PSLV रॉकेट भी बनाए. नील आर्मस्ट्रांग और बज्ज एल्ड्रिन को चन्द्रमा तक पहुंचाने वाले विशाल सैटर्न रॉकेट से लेकर छोटे बूस्टर रॉकेटों के मॉडल विद्यार्थियों ने कागज़, गत्ता, अखबार, सेंचुरी पेपर, ग्लेज़ पेपर और रंग - बिरंगी झिल्लियों का इस्तेमाल करके बनाए. 


निर्णय करते समय इस बात पर ध्यान दिया गया कि स्पर्धियों ने रॉकेट के अलग अलग स्टेजों को बनाते समय उनके बीच की जुड़ाई में कितना ध्यान दिया है. दो स्टेजों के बीच शंकु न होने से कुछ प्रतिभागियों के रॉकेट एक स्टेज से दूसरे स्टेज में बिना किसी ढलान के चले जा रहे थे.आयामी सटीकता एक अहम पैमाना था, जिसके अभाव में कुछ के रॉकेटों की मुख्य बॉडी मोटी, कुछ के बगल की रॉकेट - मोटर मोटी, कईयों के नोज - कोन हद से ज्यादा पतले, और कुछ के बूस्टर सिस्टम छोटे नज़र आए. 

ज़ूम पर इस कार्यक्रम का आयोजन करने वाले डॉ. भारत खुशालानी, जिनका नैपुण्य एयरोस्पेस एवं एस्ट्रोनॉमी में है, ने इन सभी रॉकेटों की जानकारी छात्र-छात्राओं को दी, तथा इन सभी रॉकेटों का इतिहास बताया. उन्होंने प्रतिभागियों को इन सभी रॉकेटों की लांच प्रक्रिया की जानकारी भी दी, तथा किस सन से किस सन तक इन रॉकेटों द्वारा उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजा गया था, इसकी जानकारी भी दी. रॉकेट प्रणाली के बारे में बताते हुए उन्होंने हर रॉकेट के ईंधन के जलने का समय मात्र सेकंडों में होने की जानकारी दी. लो-अर्थ-ऑर्बिट तथा जियोसिनक्रोनस में भेजे जा रहे उपग्रह कितने वजनी हो सकते हैं, ये आंकड़े भी बताये. प्रतियोगिता में प्रतिभागियों को एरियनस्पेस, स्पेसएक्स, रॉकेटडाइन तथा नासा जैसी स्पेस कंपनियों की महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई. 

भारत ने रॉकेटों की सफलता दर में विविधता के बारे में बताते हुए कहा कि चीन के लॉन्ग - मार्च - 2F की सफलता दर 100 प्रतिशत है और आज तक उसका कोई भी प्रक्षेपण विफल नहीं हुआ है, और दूसरी छोर पर सोवियत युग का N1 रॉकेट था जिसकी सफलता दर शून्य थी और उसका हर प्रक्षेपण विफल रहा था जिसके कारण सोवियत वैज्ञानिकों को इस रॉकेट को रद्द कर देना पडा. गोयनका इंटरनेशनल स्कूल, सूरत की छात्रा छवि शर्मा ने प्रतियोगिता में तीसरा स्थान प्राप्त किया. रूरकी पब्लिक स्कूल, रूरकी की छात्रा तमन्ना को दूसरा स्थान मिला. आदित्य बिरला पब्लिक स्कूल, रायपुर के तनिष्क वर्मा ने प्रतियोगिता में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर प्रथम स्थान प्राप्त किया.

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