रे मन धीरज क्यूं ना धरे...
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रे मन धीरज क्यूं ना धरे।
हृदय में पीड़ा
लाख जतन करूं,
उभर उभर क्यूं आवे।
रह रह के
नैना छलके,
छिपे ना छुपने पाए,
रे मन
धीरज क्यूं ना धरे।।
चहूं ओर
केबल आँसू दरसे
मन निसहाय लागे,
पुकारूं तो पुकारूं किसको
जल - जल जियरा जाए,
रे मन
धीरज क्यूं ना धरे।।
अदृश्य भए
मन मितवा मेरे
ऐसे काल ग्रसे ,
त्राहि त्राहि
भई यूं जैसे
परलय ऐसे परसे
रे मन
धीरज क्यूं ना धरे।।
हे दीननाथ
साथी मितवा
क्यूं ना
हाथ मोरे थामे,
निसहाय
तेरे इस दीन को
ना क्यूं
तू ही उबारे,
रे मन
धीरज क्यूं ना धरे।।
- डॉ. शिवनारायण आचार्य
नागपुर (महाराष्ट्र)