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व्यंग्य विधा के ऋषि हैं व्यंग्यकार संतोष खरे




व्यंग्यधारा समूह की ओर से ‘महत्व : संतोष खरे’ विषय पर ऑनलाइन संगोष्ठी का आयोजन
 


नागपुर। जिस तरह ऋषि अपनी साधना में लीन रहते हैं उसी प्रकार वरिष्ठ व्यंग्यकार संतोष खरे व्यंग्य विधा के प्रति एक समर्पित ऋषि हैं। अपने समय के सार्थक व्यंग्यकार हैं। समाज के विभिन्न क्षेत्रों में व्याप्त विसंगतियों पर उन्होंने करारा कटाक्ष किया है। यह कथन वरिष्ठ व्यंग्यकार मधु आचार्य ‘आशावादी’ ने अपने वक्तव्य में कही। विगत रविवार को व्यंग्यधारा समूह की ओर से वरिष्ठ व्यंग्यकार संतोष खरे के व्यक्तित्व व कृतित्व पर आधारित ‘महत्व : संतोष खरे’ विषय पर ऑनलाइन संगोष्ठी का आयोजन किया गया। 

आयोजन के आरम्भ में व्यंग्यधारा की इस श्रंखला की संकल्पना और उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए जबलपुर से वरिष्ठ व्यंग्यकार रमेश सैनी ने कहा कि श्री संतोष खरे उन व्यंग्यकारों में से हैं जो परिपूर्ण व्यंग्य का लेखन करते हैं। उनकी रचनाओं में व्यंग्य के लिए आवश्यक सभी तत्व मौजूद होते हैं। इसका कारण है अपने आसपास के समाज और राजनीति का बारीकी से अध्ययन। 

दिल्ली से व्यंग्य के प्रखर समालोचक व समीक्षक डाँ.रमेश तिवारी ने श्री संतोष खरे का परिचय देते हुए उनके संघर्षपूर्ण जीवन पर विस्तार से प्रकाश डाला। 

साहित्यिक खेमों और साहित्यकारों के तामझाम से दूर श्री खरे ने जो देखा और भोगा है, उसे बड़ी ईमानदारी से अपने व्यंग्यों में रेखांकित किया है।

बीकानेर से संजय पुरोहित ने श्री संतोष खरे का चर्चित व्यंग्य ‘अपनी मृत्यु का सिंहावलोकन’ का प्रभावशाली ढंग से पाठ प्रस्तुत किया| इस रचना में हमारे समाज में व्याप्त पाखंड, संवेदनशीलता का प्रदर्शन और कर्मकांड पर करारा प्रहार किया गया है। लेखक के निधन का समाचार छोटा-सा छपता है, लेकिन भ्रष्टाचारी नेता का बड़ा और अभिनेत्री की शादी का समाचार पांच कॉलम में छपता है। 

जबलपुर से विवेक रंजन श्रीवास्तव ने संतोष खरे के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि श्री खरे के प्रथम व्यंग्य संग्रह ‘धूप का चश्मा’ को साहित्य अकादमी ने खरीदा। अनेक समाचारपत्रों में उन्होंने स्तंभ लेखन भी किया। असहिष्णुता को लेकर पुरस्कार वापसी का दौर चला तो श्री खरे ने भी शरद जोशी पुरस्कार लौटा दिया, जिसे अस्वीकार कर दिया गया। 

धनबाद से अभिजित दुबे ने श्री खरे के कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए उनके चार व्यंग्य ‘साहित्य की राजनीति’, ‘घोषणा नारे और लोकतंत्र’, ‘हास्य पर एक निबंध’ तथा ‘अपनी मृत्यु का सिंहावलोकन’ का समीक्षात्मक विश्लेषण किया। उन्होंने कहा कि समाज की कोई भी चीज उनके लिए अछूती नहीं रही। सुधीर कुमार चौधरी (इंदौर)  ने भी अपने विचार व्यक्त करते हुए श्री खरे के व्यंग्यों को बेहतरीन व्यंग्य बताया। वे समाज में व्याप्त विसंगतियों को आसानी से पकड़ लेते हैं| 

जबलपुर से वरिष्ठ व्यंग्यकार डॉ. कुंदन सिंह परिहार ने  श्री खरे को जमीन से जुड़े सयाने लेखक के रूप में निरुपित किया| उन्होंने कहा कि व्यंग्यम के काल से उनकी रचना देख-पढ़ रहे हैं| खरे जी तटस्थ भाव से लेखन करते हैं| सही और सत्य का पक्ष लेते हैं| 

जयपुर से प्रभात गोस्वामी ने श्री खरे को व्यंग्य की पाठशाला बताते हुए कहा कि नये रचनाकारों को उनके व्यंग्यों से सीखने का मौका मिलता है| श्री तीरथ सिंह खरबंदा ने किसी वरिष्ठ व्यंग्यकार पर केंद्रित व्यंग्यधारा समूह के इस आयोजन और अन्य गतिविधियों की सराहना की। 

रायपुर के डॉ. महेंद्र ठाकुर ने श्री खरे के साथ सतना, मध्य प्रदेश में बिताए समय को याद करते हुए अपने संस्मरणों के द्वारा कहा कि वे लेखन के प्रति समर्पित सौम्य और सरल स्वभाव वाले अच्छे व्यक्ति हैं। हैदराबाद के डा. सुरेश कुमार मिश्र ‘उरतृप्त’ ने श्री खरे के व्यंग्य ‘धूप का चश्मा’ का बारीकी से व्यंग्य के हर कोण का विश्लेषण किया। 

आयोजन का संचालन रमेश सैनी तथा आभार प्रदर्शन मधु आचार्य ‘आशावादी’ ने किया| इस गरिमामय आयोजन में अनूप शुक्ल (शाहजहांपुर) सुनील जैन ‘राही’(दिल्ली), राजशेखर चौबे (रायपुर), कुमार सुरेश (भोपाल), श्रीमती वीना सिंह (लखनऊ),  प्रभाशंकर उपाध्याय (सवाई माधोपुर), श्रीमती अलका अग्रवाल सिग्तिया (मुम्बई), श्रीमती रेणु देवपुरा(उदयपुर), वीरेन्द्र सरल (धमतरी), टीकाराम साहू ‘आजाद’ (नागपुर) हनुमान प्रसाद मिश्र (अयोध्या), प्रमोद चमोली (बीकानेर), सौरभ तिवारी (दिल्ली) आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही|
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