हर बार सरकार और प्रशासन को दोष देना उचित नहीं
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एक परिवार मे जैसे एक अकेला वरिष्ठ व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता सब जब मिल जाते हैं तो सभी के सहयोग से ही परिवार सकारात्मक और सही सोच संग चल सकता है। ठीक उसी तरह हमारा भारत देश भी एक परिवार की तरह ही है जहां सरकार हमारे भारत देश के वरिष्ठ सदस्य तो हम जनता उस परिवार का हिस्सा। तो हम सभी के सहयोग से ही इस कुदरती मार कोरोना वायरस पर विजय पाई जा सकती थी हर बार सिर्फ़ परिवार के वरिष्ठ सदस्यों को कोसना कहां तक उचित है।
कोरोना की जब भयावह पहली लहर मे कुछ कमी आई तो तुरंत लाकडाऊन हटाया गया और आर्थिक साधनों के जुगाड़ के चलते समस्त कार्यस्थलों को खोल दिया गया नियमों की रुपरेखा बनाते हुए।सब कुछ जैसे सामान्य सा प्रतित होने लगा था बहुत से प्रवासी मजदूर पुनः आशा और उमंग का दीप जला अपनों को छोड़ फिर शहरों,महानगरों मे रोजी की तलाश मे चले आऐ। विवाह स्थलों को भी खोल दिया गया।परंतु ये ना सोचा था कि नियमों को ताक मे रख सभी लापरवाही करेंगे।
आज जब विवाह स्थलों को खोला गया था तो मात्र सौ से या पचास से अधिक लोगों को निमंत्रण देने की अनुमति नहीं थी परंतु फिर भी लोगों ने मात्र दिखावे और रिश्तेदारी को महत्व देते हुए सभी की जान के साथ खिलवाड़ करते हुए धूमधाम से विवाह प्रक्रिया अपनाई।आज इसका परिणाम ये है कि बहुत से विवाह समारोह मे उपस्थित हुए लोगों मे से बारातियों की संख्या मे से पचास से अस्सी लोग संक्रमण का शिकार हुए ऐसी खबरें सुनने को मिल रही है। वो भी अलग-अलग राज्यों से आऐ अतिथिगण थे।
इस लापरवाही के मार चलते दूसरी कोरोना वायरस की भयावह लहर का जिम्मेदार आज कौन है ? क्या राज्य सरकार या प्रशासन व्यवस्था ? नहीं बिल्कुल नहीं, हर बात मे सरकार और हमारे राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था को कोसना कहां तक सही है। इन सभी गैरजिम्मेदाराना हरकत के लिये आज जनता ही गुनहगार साबित हो रही है। प्रशासन ने ढ़िलाई दी ताकि लोगों के घरों के चूल्हे जले,किसी के बच्चे भूखे ना सोऐं हर कोई पुनः अपने लिये आर्थिक साधनों का जुगाड़ करे।
परंतु जनता ने ही इतनी अधिक लापरवाही दिखाई जिसका परिणाम आज कोरोना की दूसरी भयावह लहर का सामना सभी को करना पड़ रहा है। सबसे अधिक जो इस भयावह लहर की आज मार झेल रहे हैं वो हैं हमारे प्रवासी मजदूर। कोरोना काल के इस भयावह पहली या दूसरी लहर के जो सबसे अधिक शिकार हुए हैं वो हैं हमारे प्रवासी मजदूर जो कि हजारों सपने बसर कर आंखों मे अपने परिवार संग या तो परिवार को अपने अपनों के सहारे छोड़ अकेले ही शहरों का रुख कर लेते हैं।
कोरोना वायरस की पहली लहर के आते ही सभी ओर लाकडाऊन लगने के कारण सभी तरह के कार्यस्थल बंद हो गये जिसके चलते प्रवासी मजदूरों को खाने पीने की किल्लत का बहुत सामना करना पड़ रहा था बुझे मन से हर कोई पलायन मजदूरों ने अपने सपनों को चूर होते देख अपने अपनों के पास लौट जाने का निर्णय कर चल दिये पैदल अपनों के पास हजारों किलोमीटर की यात्रा तय कर अपनों को सुरक्षित पाने की आस का दीप जलता रहा मन मे।
जब पुनः सब शुरु हुआ तो प्रवासी मजदूर वापस शहरों की ओर पलायन कर लौट आऐ। लेकिन पुनः भयावह मंजर का सामना करना इस बार मुमकिन सा नहीं लग रहा है। पुनः दूसरी लहर के प्रकोप से बचने के लिये सरकार ने लाडाऊन ही लगाना उचित समझा। फिर से सभी प्रवासी मजदूर इस कोरोना वायरस की दोहरी मार सहते हुए अपने-अपने गांवों रेन बसेरों की ओर रुख कर चले पैदल ही।
इतना भयावह मंजर है हर ओर रोज मिडिया, पत्रकारिता के माध्यम से जनता को समझाया जा रहा कि मास्क का इस्तेमाल करें,सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें, हाथ मुंह धोऐं बार बार फिर भी लोग सब्जी मार्केट मे, या दूसरी जगहों पर जैसे ही मौका मिलता भीड़ लगा लेते इस गैरजिम्मेदाराना हरकत का कौन जिम्मेदार ?
सवाल बहुत हैं दिल मे जनता से ही पूछने के लिये परंतु हमारी जनता ही समझने को तैयार नहीं।क्या प्रशासन एक-एक के घर मे तो चौकसी के लिये पुलिसकर्मियों को नहीं बिठा सकती ना। प्रशासन फिर भी अपनी ओर से जो हो रहा है वो मदद् कर रहे हैं।परंतु हम जनता ही अपनी जिम्मेदारी को भूल रहे हैं।हमें भी प्रशासन का साथ निभाना है। जनता और प्रशासन दोनों से ही सहयोग की आशा है। सिर्फ़ प्रशासन और सरकार को ही कोई ना कोसे आज हर कोई एक बार ये भी मंथन करे कि क्या आज जो संक्रमित हुए हैं।
उनकी कहां गलती है और ये भी सोचे की आज मसानघाटो मे लकड़ी तक की कमी आ गई है।हमारे अपनों का अंत समय मे मुंह भी देखने को नहीं मिल रहा है। कांधा तो दूर की बात है। आप सभी अपने अपनों की रक्षा की जिम्मेदारी खुद उठाऐं। और अपनी गलतियों को नजरअंदाज न करते हुए विपरीत परिस्थितियों मे सकारात्मक ऊर्जा का संचार करें अपनों के संग अपनों के रंग मे घुलके।
नागपुर, महाराष्ट्र