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बस कह कर तो जाते...


द्धार पे मेरी नज़र गढ़ी है
कब आजाओ पता नही है
    नयन तटों से  -
        उमढा़ सागर
आंसू बनकर ढुलक
         रहा है

जीवन पुस्तक के
   'किरदार' थे तुम
        बिखर गए हैं
         पुस्तक के पन्ने -
छटपटाहट सी रहती
       हर - पल
कहां से ढूंढ निकालूं -
          तुमको
धरा एक है, आकाश एक
हम - तुम बटें क्यों टुकड़ों
              में -
दर्द एक था, प्रीत एक थी
फिर क्यूं  तुम गए अकेले
   ‌           ???
जीवन चहकता था तुमसे
सदा सुवासित रही तुमसे
       मधुसिक्त रही-
        हरपल तुमसे
मुझसे ही हो गए विमुख

        तुम 'बरगद' से
       बलिष्ठ तना थे
उर्जित रही सदा ही तुमसे
         मेरे जीवन के -
            'सूत्रधार' थे -
गठबंधन तोड़ तुम भागे ?

       देकर 'उम्रकैद'
        तुम यूं मुझको -
जीवन को कर 'सीलबंद'
ओ मेरे निष्ठूर 'न्यायधीश'
‌       चले गए हो कहां
      किस लोक में तुम
बिंदिया में था 'प्रतिबिंब'
‌           तेरा -
सदा रही इस भाल पे मेरे
बिछिंया ही संबल थे मेरे
        ढूंढ तो कैसे ?
       हुए कहां 'लापता'
           कुछ तो
      दे जाते 'सुराग' प्रिय
           कहां करूं -
         'अपील' बता दो
           'अपहरणकर्ता' ।  
    छीन तुम्हें ले आऊं
          बस - एक
            शिकायत
          सदा रहेगी
    मुझसे 'तुम'
          कहकर तो जाते ???

- रति चौबे,
12, विश्राम नगर
वर्धा रोड नागपुर - 440015
(महाराष्ट्र)

काव्य 3643124014188045194
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