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डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर का वैश्विक दृष्टिकोण आज भी प्रासंगिक : प्राचार्य डाॅ. शहाबुद्दीन शेख



नागपुर/पुणे। भारतीय  संविधान  की मसौदा समिति के अध्यक्ष महामानव डाॅ. बाबासाहैब आंबेडकरजी का वैश्विक दृष्टिकोण आज भी प्रासंगिक है,इस आशय का प्रतिपादन राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के कार्यकारी अध्यक्ष प्राचार्य डाॅ. शहाबुद्दीन शेख, पुणे ने किया। राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के तत्वावधान में डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर के 130 वें जन्मदिवस के उपलक्ष्य में आयोजित आभासी अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठी में वे अध्यक्षीय उद्बोधन दे रहे थे। 

"डाॅ.आंबेडकर का वैश्विक दृष्टिकोण और इक्कीसवीं सदी" इस विषय पर यह आभासी गोष्ठी आयोजित थी। विशिष्ट अतिथि के रूप में हिंदी परिवार, इंदौर के हरेराम वाजपेयी की उपस्थिति थी। प्राचार्य शेख ने आगे कहा कि डाॅ.बाबासाहेब आंबेडकर का व्यक्तित्व एवं जीवन चरित्र आधुनिक भारत के इतिहास का एक महान पर्व है। मानव मुक्ति के इतिहास का वह एक स्वर्ण पृष्ठ है। अपने उच्च धेय्य प्राप्ति के लिए डाॅ. बाबासाहेब अविरत संघर्ष करते रहे।

परिणामत: डाॅ. बाबासाहेब के नाम से देश में अनेक विद्यालय, महाविद्यालय व विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।समानता, स्वतंत्रता और बंधुता डाॅ. आंबेडकरजी के जीवन का मुख्य मिशन रहा है। इसलिए उन्हें आधुनिक भारत के शिल्पकार के रूप में जाना जाता है। 

डाॅ. सुनिता मंडल (कोलकाता) ने अपने मंतव्य में कहा कि समाजसुधार अभियान में डाॅ. बाबासाहब की भूमिका अहम रही है। उनका विचार समानता का अलख जगानेवाला रहा है।
डाॅ. वरूण गुलाटी (अंबाला) ने कहा कि डाॅ. आंबेडकर महान समाजशास्री, पत्रकार तथा मानव अधिकार के अध्येता थे।

राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के महासचिव डाॅ. प्रभु चौधरी ने डाॅ. आंबेडकर के विविध पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि महामानव के अभिनव कार्य को भूलना असंभव है। श्रमिकों को श्रम का अधिकार देने का महनीय कार्य डाॅ. आंबेडकर ने किया है। अत: उनका कार्य अतुलनीय और अनुकरणीय है।
राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना की मुख्य कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती सुवर्णा जाधव ने कहा कि बाबासाहब का संविधान हमें मनुष्य बनाने की प्रेरणा देता है।

डाॅ. बाबासाहब के कारण हजारों का उद्धार हुआ है, उनका मानना था कि सच्ची शिक्षा वही है जो समानता सिखाएँ और मानवता का बोध कराये।

हिंदी परिवार, इंदौर के श्री हरेराम वाजपेयी ने कहा कि बाबासाहब ने देश को विभाजित करने की बात कभी नहीं की परंतु बडे दुर्भाग्य की बात है कि भारतीय जनमानस बाबासाहब को धर्म, जाति, प्रांत तथा राजनीति के हिस्सों में बाँट रहा है। वास्तव में यह सरासर गलत है। डाॅ.बाबासाहब का स्मरण अर्थात हमारे भारतीय संविधान की रक्षा है।

डाॅ.सतीश शर्मा ने कहा कि सर्वसमावेशी विकास को डाॅ.बाबासाहब ने जनमानस में रखा।
डाॅ. नीतिन आरोटे (अकोले) महाराष्ट्र ने कहा कि डाॅ.बाबासाहब में दूरदृष्टि थी। उनका व्यक्तित्व असामान्य था। वे उँचे व्यक्तित्व के धनि थे।

इस अवसर पर श्रीमती दिव्या पाठक व प्रा.ममता झा (मुंबई) ने भी अपने विचार रखे।
प्रारंभ में राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना की राष्ट्रीय प्रवक्ता डाॅ. मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, छत्तीसगढ ने अपने प्रास्तविक भाषण में कहा कि डाॅ. बाबासाहब के जन्मदिवस को 'समानता दिवस' व 'ज्ञान दिवस' के रूप में भी जाना जाता है। 

डाॅ. बाबासाहब का पहला जयंती समारोह पुणे महाराष्ट्र में 14 अप्रैल 1926 में मनाया गया था। डाॅ.रश्मि चौबे (गाजियाबाद) ने सरस्वति वंदना प्रस्तुत की। श्रीमती पौर्णिमा कौशिक ने अतिथि परिचय प्रस्तुत किया। इस आभासी गोष्ठी का सफल व सुंदर संचालन प्रा. रोहिणी डावरे, अकोले (अध्यक्ष महिला इकाई महाराष्ट्र) ने किया। राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना महाराष्ट्र राज्य के अध्यक्ष डाॅ. भरत शेणकर, अकोले ने सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया।
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