हम तुम...
हम तुम
एक है, एक रहेंगे
समेट लो मेरा वजूद
सागर सा उफन रहा
बटोर लो वो दर्द
जो मुझमें है प्रिय
तुम साथ रहो
मुझमें यूं समाओं
विरक्त ना हो कभी
मेरी खामोशियों को
मेरे लिखे शब्दों को
कभी तो पढों प्रिय
क्यों नज़र फेर लेतीं
कुछ तो समझो प्रिय
हर दिन इंतजार सा है
मुझे समझोगी तुम -
काश। मुझे समझो
तुम भेजो मुझे
यूं कड़वे कटु बोल
मैं 'वाणी मधुर' बनाऊं
'तुम' भेजो जलते अंगारे
'मैं' शीतल कर लूंगा
सच कहता हूं -
'तुम' मेरी गीत फसल हो
गुनगुनाऊं तुझे
'तू' मेरा अहसास
'तू' मेरा विश्वास
'तूही' मेरी स्वास
प्रिय बस तुम
मेरी हो
मेरी हो
मेरी ही हो
मेरी......
- रति चौबे,
12, विश्राम नगर, वर्धा रोड,
नागपुर - 440015 (महाराष्ट्र)