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भाषा और लिपि की शक्ति को बचाएं रखें : डॉ. हरिसिंह पाल





नागपुर/पुणे। समस्त भारतीय भाषाएँ और राष्ट्रीय लिपि के पास असीम शक्तियाँ हैं। उनके माध्यम से हमारें पास सशक्त विरासत हैं। अतः हमारी भाषाएँ और लिपि की शक्ति को बचाएं रखनें की नितांत आवश्यकता हैं। इस आशय का प्रतिपादन नागरी लिपि परिषद्, नई दिल्ली के महामंत्री डॉ. हरिसिंह पाल ने किया। 

नागरी लिपि परिषद्, नई दिल्ली और राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के संयुक्त तत्वावधान में "सार्वभौमिक लिपि के रूप में विश्व नागरी : उपलब्धि और संभावनाएँ" विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में वे अध्यक्षीय उद्बोबोधन दे रहे थें। डॉ. पाल जी ने आगे कहा कि विश्व की अन्य लिपियों की तुलना में नागरी लिपि का कार्य अतुलनीय हैं।
          
नागरी लिपि परिषद् , नई दिल्ली के कार्याध्यक्ष प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि देवनागरी लिपि भारत की प्रमुख लिपि हैं, जिसकी उत्पत्ति भारत की प्राचीन लिपि ब्राह्मी से मानी जाती हैं। लगभग आठवीं सदी में प्राचीन लिपि का अविर्भाव हुआ। वर्तमान में नागरी लिपि ने भारत की सीमा लांघकर वैश्विक रुप धारण किया हैं। सार्वभौमिक लिपि के रुप में नागरी लिपि की अपनी स्वतंत्र पहचान हैं। नागरी लिपि के माध्यम से भारत सहित विश्व की किसी भी भाषा को सहज व सुलभता से सीखा जा सकता हैं।
       
नागरी लिपि परिषद्, मध्यप्रदेश के संयोजक एवं राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी ने कहा कि नागरी लिपि के प्रचार-प्रसार व विकास की दृष्टि से राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना सदैव अग्रक्रम पर हैं। भारत की समस्त भाषाओं को जीवंत रखनें में देवनागरी लिपि का महनीय योगदान हैं।
         
डॉ. रश्मि चौबे गाजियाबाद ने कहा कि अपनी गुण, विशेषताओं व वैज्ञानिकता के कारण नागरी लिपि अन्य लिपियों को पीछे छोड़ती हैं। नागरी की सार्थकता विश्व पटल पर सर्वग्राह्य हैं।
      
बाळासाहेब तोरस्कर, मुबंई ने कहा कि नागरी लिपि भिन्न-भिन्न भाषाओं को जोड़ने में सक्षम हैं।
   
राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना की मुख्य कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती सुवर्णा जाधव ने कहा कि हम भाषा तो अपनी प्रयोग में लाते हैं लेकिन लिपि के रुप में रोमन के प्रति आकर्षित होते हैं ये बहुत ही हानिकारक हैं।
      
मुख्य अतिथि श्री सुरेश चन्द्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नार्वे ने कहा कि हमें अपनी भाषा, लिपि, संस्कृति और सभ्यता पर विशेष गर्व होना चाहिए।
         
इस आभासी अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रा. रोहिणी डावरे (अकोले), डॉ.प्रतिभा येरेकार (धर्माबाद नांदेड़), डॉ.जय जय राम अरुण पाल, डॉ. सुनीता मंडल, सतीश शर्मा, मनीषा सिंग मुबंई, अनिल उपाध्याय सहित अनेक महानुभावों ने अपनी सक्रियता दर्शायी।
    कार्यक्रम का प्रारंम्भ श्रीमती पूर्णिमा कौशिक, रायपुर के सरस्वती वंदना की प्रस्तुति से हुआ। अर्पणा जोशी इंदौर ने स्वागत भाषण दिया। सुश्री गरिमा गर्ग ने संस्था परिचय प्रस्तुत किया।
     
राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना की राष्ट्रीय प्रवक्ता, शिक्षाविद् डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, छत्तीसगढ़ ने सफल संचालन करते हुए कहा कि नागरी लिपि की सबसे बड़ी विशेषता इसकी वैज्ञानिकता हैं। और यहीं सार्वभौमिक लिपि के रुप में विश्व नागरी की उपलब्धि और संभावनायें हैं।
   
अंत में राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना, महिला ईकाई की राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. शिवा लोहारिया, जयपुर राजस्थान ने सभी का आभार प्रकट किया।
साहित्य 3270398310189203961
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