साथी
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बंद घर के तन्हा कोने में,
हमको भी शामिल कर लेते,
हम साथ निभाने आ जाते।
गम हो या के हो खुशी,
आँसू हो या फिर हो हंसी,
सुख - दुख के आंगन में बंधु
हम साथ निभाने आ जाते।
सुबह ढले फिर शाम आ जाए
ये पल, हर पल यूं बितेगा
क्यूँ धरे रहें उस पल को फिर
बगिया में कोयल कुहूकेगा।
कभी आज़मा के देखो प्रिये
यूं आवाज कभी भी दे देना
जिस पल पाओ खुद को तनहा
हम साथ निभाने आएंगे।
नागपुर (महाराष्ट्र)