Loading...

आम आदमी की पीड़ा को अभिव्यक्त करे, वही व्यंग्य है : शशिकांत शशि



नागपुर। आम आदमी की पीड़ा को अभिव्यक्त करे, वही व्यंग्य है। उक्त विचार व्यंग्यधारा समूह की ओर से रविवार को आयोजित पचासवीं आन लाइन संगोष्ठी में' व्यंग्य के प्रतिमान और वर्तमान' विषय पर चर्चित व्यंग्यकार शशिकांत सिंह शशि ने व्यक्त किये  "कांग्रेस के लिए जैसे गांधीजी पूजनीय बने हुए हैं वैसे ही व्यंग्यकारों के लिए परसाई पूजनीय बने हुए हैं । राजनेता जैसे गांधी का नाम खूब लेते हैं किंतु उनके सिद्धातों - विचारों पर नहीं चलते. वैसे ही मौजूदा समय के व्यंग्यकार परसाई की बातें खूब करते हैं किन्तु उनकी प्रतिबद्धता और सरोकारों पर नहीं चलते। 

वे परसाई का मन्दिर बना उन्हें पूजनीय बनाने में लगे हैं किंतु उनमें परसाई जैसा साहस नहीं नजर आता । आगे शशिकांत शशि ने कहा कि व्यंग्य साहित्य से अलग नहीं है। व्यंग्य के वे ही प्रतिमान हैं जो साहित्य के हैं । प्रमुख प्रतिमान एक ही है कि जो आम आदमी की पीड़ा को अभिव्यक्त करे, वही व्यंग्य है। उन्होंने अफसोस से कहा कि  वर्तमान में मंच से हम क्रांति की बातें करते हैं किंतु लिखते समय चालाकी से बच निकलते हैं । 

आज कला को ही व्यंग्य बना दिया गया है और उसमें विषय गायब है । अधिकांश व्यंग्यकार मॉस के लिए नहीं विशेष क्लास के लिए लिख रहे हैं । उन्होंने कहा कि अच्छा व्यंग्य आज भी लिखा जा रहा है किंतु साजिशन उसे किनारे किया जा रहा है जो चिंताजनक है। साहित्य अकादमी, नई दिल्ली में राजस्थानी भाषा परामर्श मण्डल के संयोजक और वरिष्ठ साहित्यकार मधु आचार्य 'आशावादी' ने अपने वक्तव्य में कहा कि उत्तर आधुनिकता के इस दौर में संवेदनाओं पर गहरा संकट मंडराया हुआ है। 

व्यंग्य साहित्य की ही महत्वपूर्ण विधा है और सत्य का संवेदनात्मक अन्वेषण ही साहित्य का मूल ध्येय होता है। किंतु आज हम बोलने के बाद लिखने बैठते हैं तो अपने बचाव में हेलमेट लगा लेते हैं । उन्होंने कहा कि यह समय चैलेंजिंग है, हमें सही और गलत तथा खोटे और खरे की पहचान कर खरे को प्रोत्साहित करना होगा अन्यथा खोटे सिक्के चलते रहेंगे। आरम्भ में दिल्ली से आलोचक डॉ. रमेश तिवारी ने बताया कि व्यंग्यधारा की यह स्वर्णजयंती पचासवीं ऑन लाइन संगोष्ठी है। 

प्रगतिशील सोच के साथ ही साहित्य लिखा जा सकता है। यह धर्मयुद्ध है । इस धर्मयुद्ध में जो व्यंग्यकार कमजोर पक्ष के साथ खड़ा है, वही सच्चा व्यंग्यकार है। उन्होंने कहा कि व्यंग्य का मूल स्वर जन चेतना है और यही उसका मूल प्रतिमान है। आज की गोष्ठी के औचित्य पर अपने विचार रखे। जबलपुर से वरिष्ठ व्यंग्यकार रमेश सैनी ने परसाई को सन्दर्भित करते हुए कहा कि वे वामपंथी थे किंतु उन्होंने वामपंथ की विसंगतियों पर भी खुल कर लिखा, किन्तु आज के व्यंग्यकार में अपने वैचारिक पंथ या अपने किसी गॉडफादर की विसंगतियों पर लिखने का साहस नहीं उन्होंने आगे कहा कि आज सेफजोन में नफा नुकसान को केन्द्र में लिखा जा रहा है इसलिए रेखांकित करने योग्य कम लिखा जा रहा है। 

दुर्ग से वरिष्ठ व्यंग्यकार विनोद साव ने कहा कि कोरोनाकाल के इस भयावह समय में हम अपने सरोकार ही विस्मृत करने लगे हैं। यह सच है कि नियामक शक्ति साहित्य नहीं, वरन सरकार, मीडिया आदि हैं किंतु हमें साहित्य की सामर्थ्य को पहचान अपने दायित्वों का निर्वहन करना होगा। उन्होंने कहा कि व्यंग्य का उद्देश्य लोक कल्याण है । व्यंग्य वैज्ञानिक लेखन है। विज्ञान की तरह वह यथार्थ पर टिका हुआ है इसलिए हमें समय के यथार्थ को पूरी ईमानदारी से सामने रखने की आवश्यकता है।

संगोष्ठी पश्चात हिंदी के शलाकापुरुष नरेंद्र कोहली के निधन पर शोकसभा का आयोजन किया गया जिसमें अनूप शुक्ल, बुलाकी शर्मा, अलका अग्रवाल सिगतिया, अभिजित कुमार दुबे, कुमार सुरेश, प्रभात गोस्वामी, सूर्यदीप कुशवाहा, टीकाराम साहू 'आजाद', वीरेन्द्र सरल, राजशेखर चौबे, एम एम चन्द्रा ने कोहली के अविस्मरणीय साहित्यिक अवदान को रेखांकित करते हुए कहा कि कोरोना ने साहित्य की महान विभूति को हमसे छीन लिया। 

तत्पश्चात सभी ने दो मिनट का मौन रखकर दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना कर श्रंद्धाजलि अर्पित की। गोष्ठी का संचालन रमेश सैनी ने किया।  रायपुर से व्यंग्यकार राजशेखर चौबे  सभी अतिथि वक्ताओं  सहभागियों का आभार प्रदर्शन  किया। इस महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक गोष्ठी में शांतिलाल जैन, रेणु देवपुरा, सौरभ तिवारी, अनिता यादव, संजय  पुरोहित, मुकेश राठौड़, प्रमोद चामोली, विवेक रंजन श्रीवास्तव,  हनुमान प्रसाद मिश्र आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
व्यंग 616321946434087177
मुख्यपृष्ठ item

ADS

Popular Posts

Random Posts

3/random/post-list

Flickr Photo

3/Sports/post-list