वृक्षों पर ही टिका है मानव जीवन का अस्तित्व !
भारत हजारों वर्षों से खेती व जंगलों पर जीवित है। आज पर्यावरण का समतोल बिघड रहा है जिसके कारण कभी बाढ, तो कभी भयानक गमी एवं कभी भयानक ठंड का प्रकोप के कारण आम आदमी की जिंदगी जीना मुश्किल हो गई। पर्यावरण को संतुलित बनाये रखने हेतु शासन सहित हम सभी का कर्तव्य बनता है कि वृक्ष लगाये न कि वृक्ष काटे।
बिघडते पर्यावरण के कारण देश आपदाओं से जूझ रहा है। पर्वतों को मजबूती देने का काम वृक्ष ही करते है। पर्वतों की सुंदरता है वृक्ष। वृक्षों के कारण ही प्रत्येक मानव स्वच्छ वातावरण में सांस ले रहा है। वृक्ष ही हमे धूप, छाव से बचाते है। घने जंगल को काटकर सड़क बनाई जा रही है जिसके कारण जंगलों में कई वृक्षों का अस्तित्व ही नष्ट हो रहा है।
कई लोग अपनी आजीविका चलानेवाली खेती बेचकर शहर की ओर रुख कर रहे हैं। कारण पर्यावरण के कारण खेती की पैदावार भी घट रही है जिसके कारण किसान परेशान है। कहा गया है कि उत्तम खेती, मध्यम व्यापार, कनिष्ठ नौकरी। भारत भूल गया है कि हजारों वर्षों से खेती से बढ़कर दूसरा नौकरी देनेवाला उसके लिए न कोई था, न कोई होगा।
औद्योगिकीकरण आज चलता है, कल दूसरे देशों के बेहतर उत्पादन से हमारे यहां बन्द भी हो जाता है। गरीबी औद्योगिकीकरण के अस्थायी रूप के कारण फैलती जायेगी। जितना भारत खेती से दूर जायेगा, उतनी ही बेरोजगारी बढ़ेगी। साफ नदियां, उपजाऊ खेत, हरे-भरे ऊंचे वृक्ष, घने जंगल मजाबूत देश के स्तम्भ हैं। वृक्ष मानवीय सभ्यता का मेरुदण्ड हैं। वृक्ष के बिना मानव जीवन तथा पर्यावरण की कल्पना नहीं की जा सकती।
वृक्षों पर ही मानव जीवन का अस्तित्व टिका है, मानव हो या पशु-पक्षी सभी वृक्षों की बदौलत सांस ले रहे हैं। ऐसी महत्वपूर्ण संपदा की उपेक्षा कर मनुष्य स्वयं के पैरों पर कुल्हाडी मार रहा है। स्वस्थ पर्यावरण सोना, चांदी, हीरे - मोती तथा यूरेनियम से भी अधिक मूल्यवान है क्योंके सारी चीजें तो फिर से प्राप्त की जा सकती है, परंतु पर्यावरण नहीं। यदि एक बार इसका विनाश हुआ तो फिर यह सदा के लिए खो जायेगा और उसी के साथ लुप्त हो जाएगा सारा सृष्टिक्रम।
विश्व की इस सबसे ज्वलंत समस्या को हल करने के लिए आवश्यकता है पर्यावरण के प्रति समाज के हर वर्ग में इतनी जागरूकता फैलाई जाने की आवश्यकता है। मानवता और पर्यावरण के साथ लगातार किए जा रहे खिलवाड़ के दौर में यदि मानव इस महत्व को नहीं समझा पाया तो महाविनाश निश्चित समझो। मानव समाज इस समय एक ऐसे चौराहे पर खड़ा है जहां से उसे तय करना है कि धार्मिक कट्टरता, साम्यवादी जुनून और पूंजीपतियों के शोषण के मार्ग पर ही चलते रहना है या फिर ऐसा मार्ग तलाश करना है, जो मानव जीवन और पर्यावरण को स्वस्थ, सुंदर और खुशहाल बनाएं।
धरती पर वृक्ष नहीं रहेंगे तो बाकी और किसी के बचने की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिये वृक्षों का संवर्धन अपने बच्चों की तरह कीजिए क्योंकि वृक्ष हमारे जीवन का अभिन्न अंग है, इसे काटो मत, बढ़ाओं और सुरक्षा करो। अपने जन्मदिन हजारों खर्च करने के बजाए एक वृक्ष लगाओ ताकि आनेवाली पीढ़ी उसे देखकर अपनों को याद करें।
आज हालात यह है कि मानव हर तरह से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाकर यह समझता है कि वह बच जाएगा तो यह उसकी भूल है। स्थावर या जंगम दृश्य और अदृश्य सभी जीवों का अस्तित्व स्वीकारने बाला ही पर्यावण और मानव जाति की रक्षा के बारे में सोच सकता है।
जीव और अजीव की सृष्टि में जो अजीव तत्व है अर्थात मिट्टी, जल, अग्नि, वायु और वृक्ष उन सभी में भी जीव है अत: इनके अस्तित्व को अस्वीकार मत करो। इनके अस्तित्व को अस्वीकार करने का मतलब है अपने अस्तित्व को अस्वीकार करना। पर्यावरण के साथ हो रहा यह खिलवाड़ लोगों के लिये खतरे की घंटी है।
- दीपक लालवानी,
500, रेसीडेन्सी रोड, सदर, नागपुर - 440001