चुनाव के दूसरे दिन
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फिर उसने हर रंग दिखाया मुझे..
कुछ लाल थे
उमंग, उत्साह से ओत-प्रोत,
केसरिया-
उर्जा से भरपूर,
पीत- नटखट श्याम सा भोला,
हरा -
प्रकृति के आंचल सा समृद्ध, कोमल,
नीला - अंबर जैसा विशाल,
बैंगनी - मचलते अरमानों जैसे,
काला - पांडुरंग कन्हैया जैसा लुभावना,
और सफेद रंग - शांत, शीतल हिम जैसे।
तनिक पश्चात्
देखा मैंने,
उसकी आंखें थी क्रोधित लाल,
शब्द थे सफेद कठोर संवेदनाहीन,
वाणी हरे कड़वे नीम की तरह,
दिल स्याह काले कोयले की तरह,
पीले - बैंगनी कोमल अधखिले अरमानों को कुचलता हुआ
स्वयं वह
नीले आसमान सा दूर, बहुत दूर।।
यह चुनाव के दूसरे दिन की बात है।
नागपुर (महाराष्ट्र)