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चुनाव के दूसरे दिन




मैंने कहा रंगों से इश्क़ है मुझे,
फिर उसने हर रंग दिखाया मुझे..

कुछ लाल थे 
उमंग, उत्साह से ओत-प्रोत,  
केसरिया-
उर्जा से भरपूर, 
पीत- नटखट श्याम सा भोला, 
हरा -
प्रकृति के आंचल सा समृद्ध, कोमल,
नीला - अंबर जैसा विशाल, 
बैंगनी - मचलते अरमानों जैसे,
काला - पांडुरंग कन्हैया जैसा लुभावना, 
और सफेद रंग - शांत, शीतल हिम जैसे।

तनिक पश्चात्

देखा मैंने,
उसकी आंखें थी क्रोधित लाल,
शब्द थे सफेद कठोर संवेदनाहीन,
वाणी हरे कड़वे नीम की तरह,
दिल स्याह काले कोयले की तरह, 
पीले - बैंगनी कोमल अधखिले अरमानों को कुचलता  हुआ 
स्वयं वह 
नीले आसमान सा दूर, बहुत दूर।।

यह चुनाव के दूसरे दिन की बात है।


- डॉ. शिवनारायण आचार्य
नागपुर (महाराष्ट्र)
काव्य 5047628343570114631
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