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क्यों इतने दूर हो गए...


संस्कार विचार सब बदल रहे हैं l
जो अपने थे वो पराए हो रहे हैं ll
भगवान ये कैसा दौर है l
मां बेटा अलग हो रहे हैं ll

जान देने वाले, जान लेने वाले हो गए l
व्यापार के लालच में प्यार खो गए ll
जन्मदाता को वृद्धआश्रम छोड़ गए l
क्यों पैसे और व्यापार के लालच में अंधे हो गए ll

भूल के मां की ममता पिता का दुलार l
बसा रहे हैं अपना अलग संसार ll
क्यों इंसान हो गया दुषार l
भूल गया माता पिता का प्यार ll

आगे बढ़ रहे हैं, पर साथ आशीर्वाद नहीं l
जी रहे हैं, पर उनके छत्रछाया नहीं ll
पार्टी फंक्शन हो रहे हैं पर शामिल वो नहीं l
क्या ये है परिभाषा मॉडर्न होने की...
तो फिर हम देसी ही सही ll

- मेघा माहेश्वरी (बंग)
मोती विहार कॉलोनी, रामनगर,
अजमेर, राजस्थान

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