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यूँ दबे पॉव है मिला कोई...




यूँ दबे  पॉव है मिला कोई 
न मरासिम न वास्ता कोई 

याद का क्यों है सिलसिला कोई 
हम ने रखा न राब्ता कोई 

आँख भर उनकी आँख में देखा 
फिर न अच्छा लगा नशा कोई 

बैठ जाता हूँ उन के कूचे में 
लोग पूछे हैं, वास्ता कोई ?

वो जो मन्फ़ी हुवा मोहब्बत में 
दे गया मुझ को ज़ाब्ता कोई 

सब के अपनी तलाश में गुम थे 
किस से पूछे गा रास्ता कोई 

नज़रें मिलती हैं पलकें झुकती हैं 
यूँ कराता है क्या नशा कोई 

ज़िन्दगी फिर किसी बहाने से 
यूँ मिली जैसे हादसा कोई 

वो जो मंज़िल बुला रही है मुझे 
वहाँ जाता न रास्ता कोई
 
जब भी महफ़िल उरूज पर आई 
और फिर उठ के है चला कोई 

- डॉ. समीर कबीर
नागपुर, महाराष्ट्र


मरासिम=रिश्ते , राब्ता=संपर्क ,कूचे=गली ,वास्ता= रिश्ते, मन्फ़ी =negative,माइनस ,ज़ाब्ता= फ़ार्मूला,  
 हादसा=accident, mishap,उरूज=बुलंदी
काव्य 6636981289470477948
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