सरकारों के अधीन प्रत्येक पुलिस थानों में सीसीटीव्ही स्थापना अत्यंत महत्वपूर्ण - आदेशों का अनुपालन करने सुप्रीम कोर्ट ने कठोर निर्देश जारी किए
https://www.zeromilepress.com/2021/03/blog-post_90.html
न्यायपालिका के दिशानिर्देशों, आदेशों का सम्मान करना कार्यपालिका सहित हर नागरिक का कर्तव्य, जवाबदारी - एड किशन भावनानी
गोंदिया - विश्व में तकनीकी विकास के साथ साथ भारत में भी तकनीकी विकास बहुत ही तेजी के साथ हुआ है। अब हर क्षेत्र में घंटों का काम मिनटों में और मिनटों का काम सेकंड हो में होता है और अब हर क्षेत्र में पेपर वर्क एक एतिहासिक स्थिति बनती जा रही है और उसका स्थान तकनीकी, डिजिटल, टेक्नोलॉजी ले रही है।
बात अगर हम भारतीय न्यायपालिका क्षेत्र की करें तो इस क्षेत्र में भी समन, नोटिस तथा वर्तमान में वर्चुअल हीयरिंग इत्यादि तकनीकी विकास का ही नतीजा है। उल्लेखनीय है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यों की बेंच ने दिनांक 2 दिसंबर 2020 को स्पेशल लीव पिटिशन (क्रिमिनल) क्रमांक 3545/2020 परमवीर सिंह सैनी बनाम बलजीत सिंह व अन्य के मामले में अपने 12 पृष्ठों और 23 प्वाइंटटों के आदेश में सभी राज्यों की सरकारों व केंद्र और केंद्रशासित प्रदेशों अंतर्गत पुलिस थानों और एजेंसियों में सीसीटीवी की स्थापना का आदेश दिया था और आदेश के पैरा नंबर 19 में कहा था इन आदेशों का अक्षरक्ष पालन जल्द से जल्द कर लागू किया जाए।
परंतु यह मामला मंगलवार दिनांक 2 मार्च 2021 को माननीय सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच जिसमें माननीय न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन, माननीय न्यायमूर्ति बी आर गवई तथा माननीय न्यायमूर्ति ऋषिकेश राय के समक्ष आया जो माननीय एमिकस क्यूरी एडवोकेट सिद्धार्थ दवे द्वारा रिपोर्ट प्रस्तुत किया गया था। माननीय बेंच ने अपने 21 पृष्ठों के आदेश में, माननीय बेंच ने केंद्रीय जांच एजेंसियों के ऑफिस में अब तक सीसीटीवी न लगने पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा है कि सरकार कदम पीछे खिंचने की कोशिश कर रही है।
सीबीआई, एनआईए, और ईडी के दफ्तरों को कैमरे की निगरानी में लाने में आनाकानी क्यों हो रही है ? साथ ही सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों प्रत्येक द्वारा अलग अलग दाखिल 36 एफिडेविटों का विश्लेषण किया और साथ ही राज्य सरकारों को पांच महीने के भीतर समस्त पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाने का आदेश दिया है। बेंच ने केंद्र सरकार को तीन सप्ताह और राज्य सरकारों को एक माह में हलफनामा दाखिल करने को कहा है। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने पत्र लिखकर मंगलवार को होने वाली सुनवाई टालने की मांग की थी।
कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल से स्पष्ट किया है कि यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों से जुड़ा मामला है। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई में सॉलीसीटर जनरल ने जवाब दिया, सुनवाई टालने की मांग इसलिए कि गई थी कि आदेश के प्रभावों पर गौर किया जा सके। इसपर पीठ ने पूछा कैसा प्रभाव? हमे किसी भी प्रभाव से मतलब नही है।यह संविधान के आर्टिकल 21के तहत नागरिक अधिकारों का मामला है। हम पत्र में दिए बहाने मंजूर नही कर रहे हैं।इस पर सॉलिसीटर जनरल ने पत्र को नजर अंदाज कर सुनवाई टालने की गुहार लगाई।
पीठ ने मेहता से प्रश्न किया कि एजेंसियों के दफ्तरों में सीसीटीवी लगाने के लिए कितना फण्ड दिया है? मेहता ने जवाब दाखिल करने के लिए 10 दिन का समय मांगा है। आदेश कॉपी के अनुसार बेंच ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को कठोर से कठोर निर्देश दिए हैं कि सीसीटीवी हर राज्य के सभी पुलिस स्टेशनों पर समयबद्ध तरीके से स्थापित किए जाएं। हम इस देश के नागरिकों के विषय में भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के अधीन सर्वाधिक महत्वपूर्ण बातों को दुहराते हैं।
पीठ ने न्यायालय के आदेश का पालन करने के लिए राज्य सरकारों द्वारा मांगी गई समय-सीमा के संबंध में एमिकस क्यूरी वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ डेव द्वारा प्रस्तुत चार्ट की जांच की। पीठ इस तथ्य से खुश नहीं थी कि राज्यों ने 2 दिसंबर, 2019 को दिए गए फैसले के अनुसार, सीसीटीवी अधिष्ठापन के पूर्ण होने के लिए "ठोस कार्य योजना" नहीं दी है बेंच ने कहा, हमारे आदेशों का अक्षरशः अनुसरण किया जाना चाहिए था। पीठ ने राज्यों को आदेश दिया कि वे न्यायालय के निर्देशों के पालन के लिए 2 मार्च से एक महीने के भीतर बजट आवंटन करें और इसके चार महीने के भीतर सीसीटीवी स्थापित करें। दूसरे शब्दों में, राज्यों को आज से पुलिस स्टेशनों में सीसीटीवी स्थापित करने के लिए 5 महीने दिए गए हैं।
पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु, असम और पुडुचेरी संघ राज्य क्षेत्र के बहुल राज्यों के लिए समय अधिक दिया गया है। उत्तर प्रदेश राज्य को इसके विशाल क्षेत्रीय विस्तार और भारी संख्या में पुलिस स्टेशनों को देखते हुए (बजटीय आबंटन के लिए 3 माह और कार्यान्वयन के 6 माह के लिए) नौ माह का समय दिया गया है। इसी प्रकार मध्य प्रदेश राज्य को 7 महीने का समय दिया गया है (बजट आवंटन के लिए 1 महीना और कार्यान्वयन के लिए 6 माह)। यह अदालत बिहार राज्य द्वारा प्रस्तुत शपथ-पत्र से बहुत नाखुश थी जिसमें किसी समय-सीमा का संकेत नहीं दिया गया था।
इसने राज्य की जटिलता और आकार को देखते हुए दिशा-निर्देश देने के लिए बिहार को 9 महीने का समय दिया। बेंच ने सभी राज्यों को उनके स्थिति अनुसार समय दिया है और सुनवाई की अगली तारीख 6 अप्रैल 2021 रखी गई है और यूनियन ऑफ इंडिया को दिनांक 2 दिसंबर 2020 के अपने आदेश के पैरा नंबर 19 का अनुपालन करने का आदेश दिया है।
संकलनकर्ता कर विशेषज्ञ
- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी
गोंदिया महाराष्ट्र