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मानवीय सरोकारों की अभिव्यक्ति है साहित्य : प्रो पालीवाल



नागपुर। साहित्य मानवीय सरोकारों, मानवीय मूल्यों की सार्थक अभिव्यक्ति है। यहां जीवन के विविध रंगों, प्रसंगों की अनुगूंज सुनाई पड़ती है। जीवन वैविध्य की पहचान और परख साहित्य के प्रांगण में ही संभव होती है। यह विचार प्रख्यात कथालोचक पूर्व प्रोफेसर प्रो. सूरज पालीवाल ने व्यक्त किए। वे हिन्दी विभाग, राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित विशिष्ट व्याख्यान में बोल रहे थे। 

व्याख्यान का विषय था 'हिंदी गद्य विधाएं - पहचान और परख'। उन्होंने कहा कि हिन्दी गद्य की विविध विधाए जीवन वैविध्य की सूचक हैं। कथा साहित्य  जीवनानुभूति की संवेदनात्मक व्यंजना है। जिस रचनाकार की संवेदनशीलता की रेंज जितनी व्यापक और गहन होती है, उसकी रचना उतनी ही प्राणवान और कालजयी बनती है। इसलिए रचना की परख और पड़ताल के लिए जरूरी है कि रचना की भावभूमि से जुड़ा जाय। 

दूसरे अतिथि वक्ता राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद, नई दिल्ली के  डा . नीलकंठ कुमार ने कथेत्तर गद्य की विविध विधाओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आत्मकथा, जीवनी, संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज आदि में आनुभूतिक ताप सर्जनात्मकता से अधिक होती है। ये विधाएं गहन आत्मान्वेषण और आत्म - परीक्षण की मांग करती हैं। उन्होंने कहा कि सर्जकीय ईमानदारी की असल कसौटी हैं कथेत्तर विधाएं। इनकी पहचान और परख लेखक की सजगता, तटस्थता और रचनात्मक आकुलता के आधार पर की जा सकती है।
       

प्रास्ताविक उद्बोधन में हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ मनोज पाण्डेय ने लेखकीय सर्जनात्मकता के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि साहित्य मानवीय संवेदनाओं से समृद्ध बनता है। रचनाकार जितना संवेदनक्षम होता है, लेखकीय जवाबदेही को जितनी गहराई से महसूस करता है, रचनात्मक लेखन उतना ही जीवंत और प्रेरणास्पद बनता है। प्रत्येक विधा का अपना वैशिष्ट्य है। जीवन के अपेक्षाकृत छोटे फलक को प्रस्तुत करने वाली विधाएं अधिक सतर्कता की मांग करती हैं।

अतिथि वक्ताओं का परिचय डॉ सुमित सिंह और प्रा. अशोक मौर्य ने दिया तथा आभार प्रदर्शन विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ संतोष गिरहे ने किया।

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