'तुम्हारी कविताएँ' ! • देब आशीष 'देब'
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सुना है ,
तुम
आजकल कविताएँ लिखती हो !
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लिखती हो तुम ...........
झुग्गी - झोपड़ी - तंगहाली |
भूख - गरीबी और बदहाली ||
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लिखती हो तुम ...........
मजदूर - पसीना - किसानी |
फावड़ा - बेलचा और फटेहाली ||
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इंकलाब , तख्तापलट
धरना और आंदोलन
लिखती हो तुम !!
पर अक्सर
तंज़ कसती हो तुम !
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तुम्हारी कविताएँ ,
खुद को चमकाने की
कोशिश भर है !
वंचितों का मसीहा ,
खुद को, जतलाने की
कोशिश भर है !
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पूंजीपतियों को कोसती ,
तुम्हारी कविताएँ ,
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महज़
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एक
फ़रेब है !
- डॉं. देवाशीष आचार्य,
नागपुर (महाराष्ट्र)