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आज की सबसे बड़ी समस्या है प्रश्नाकूलता का अभाव : प्रो. चितरंजन मिश्र




नागपुर। समय दोषी नहीं होता, मनुष्य की जड़ता दोषी होती है। जब मनुष्य अपनी चित्तवृत्तियों का दास हो जाता है, तब उसकी जिज्ञासा मिटने लगती है, उसकी मनुष्यता का क्षरण होने लगता है। प्रश्नाकूलता का अभाव हमारे समय की सबसे बड़ी समस्या है। यह बात साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के संयोजक प्रो. चितरंजन मिश्र ने हिन्दी विभाग, राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित विशिष्ट व्याख्यान में कही। 

व्याख्यान का विषय था-भक्तिकाव्य और हमारा समय। उन्होंने कहा कि भक्तिकालीन कविता गहरी जिज्ञासा की कविता है। हमारे कवियों ने सामाजिक जड़ता के विरुद्ध आवाज उठायी। कविता या साहित्य का कार्य ही है, जड़ता और पशुता को निर्मूल करते हुए मनुजता का भाव जागृत करना। कविता समाज को जोड़ने का ही नहीं, जगाने का भी एकमात्र जरिया है। इसीलिए साहित्य हीन, काव्य हीन समाज जड़ -समाज बन जाता है, जहां मानवीय संवेदनाएं दम तोड़ने लगती हैं।
    
प्रो. मिश्र ने कहा कि समस्त धर्म साधनाओं और धर्म आंदोलनों का निचोड़ यही है कि ' परहित सरिस धरम नहिं भाई।' भक्त कवियों ने ईश्वर से लेकर समाज पद्धति तक सबकी रूढ़िगत मान्यताओं पर प्रहार करते हुए नई अवधारणाएं गढ़ी। यही भक्ति कालीन कविता का लोकतंत्र है कि वहां सबके अपने - अपने आराध्य हैं, अपनी व्याख्याएं हैं, और बड़ी बात यह है कि सबके लिए 'स्पेस' है। हमारे समय  में अवधारणाओं का संकुचन भी हुआ है और लोकतांत्रिक 'स्पेस' का, सोच का अभाव भी गहराता गया है। चाहे समाज हो या राजनीति आज समकालीनता, तात्कालिकता और भौतिकता का दबाव इतना हावी है कि परखने का विवेक समाप्त होता जा रहा है, जो जड़ता का सूचक है। 
        
उन्होंने कहा कि हमारे जीवन से राग और प्रेम गायब हो गए हैं। कभी ये जीवन की सरसता और समृद्धि के मानदंड रहे हैं। जीवन में राग शेष रहेगा, तभी समाज बचेगा और बनेगा। भक्ति काव्य जीवन से पलायन का काव्य नहीं है, जीवन-संग्राम की कविता है। यही वजह है कि हमें अपनी धरोहर भक्ति काव्य पर बार-बार पुनर्विचार करना चाहिए। यह सोचने की बात है कि बीसवीं शती के सबसे बड़े क्रांतिकारी योद्धा महात्मा गांधी के आदर्श थे कबीर-सूर- तुलसी। उनके रामराज्य की परिकल्पना भक्ति कालीन कविता से प्रेरित थी। रामराज्य के उस सपने का बुनियादी आधार था प्रेम। आज उस प्रेम तत्व की प्रतिष्ठा की दरकार है। 
      
प्रास्ताविक उद्बोधन में विभागाध्यक्ष डॉ.मनोज पाण्डेय ने कहा कि भक्ति काव्य हमारी अवधारणाओं का पुनराविष्कार करता है, मानवीय सरोकार को रेखांकित करता है। हमारे समय में मानवीय मूल्यों का संकट गहराता गया है। हमारी परिधि इतनी सिमटती गई है, लोलुपता इतनी बढ़ती गई है कि हम महज परिस्थितियों के दास होकर रह गए हैं। 

हमारे विकास के सारे सूचकांक अर्थ केन्द्रित हो गए हैं। विकास की चकाचौंध से हम इतने अभिभूत हैं कि हमारी मनुष्यता लुप्त होती जा रही है। आत्मकेंद्रियता बढ़ती जा रही है जो किसी भी समय के समाज के लिए घातक होती है। इसलिए आज जरूरत है कि हम अपने समय के सवालों से टकरायें, मानव-विरोधी मूल्यों को पहचानें और मानवीय मूल्यों को रोपित करें। अतिथि वक्ता का परिचय डॉ. सुधा जांगिड़ ने दिया तथा आभार प्रदर्शन कार्यक्रम के संयोजक डॉ. संतोष गिरहे ने व्यक्त किया।
साहित्य 5358707540773815654
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