वह... भयमुक्त समाज की प्रतीक्षा
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8 मार्च, अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस, हम हर जगह बहुत उत्साह के साथ मनाते हैं. लेकिन उसी उद्देश्य से जिसके लिए महिला दिवस मनाने की परंपरा रखी गई थी, हम पाते हैं कि हम एक अलग दिशा में भटक रहे हैं. महिला दिवस का मुख्य उद्देश्य महिलाओं को पुरुष प्रधान संस्कृति को तोड़कर पुरुषों के समान अधिकार और विशेषाधिकार देने चाहिए. इसमें कोई संदेह नहीं है कि हम इसमें बहुत सफल रहे हैं.
आज दुनिया के हर हिस्से में महिलाओं को पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर देखना बहुत खुशी की बात है, लेकिन वर्तमान में महिलाओं के खिलाफ हिंसा में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, यह कन्या भ्रूण हत्या है, किशोर लड़कियों या यहां तक कि वयस्क महिलाओं के खिलाफ हिंसा बढ़ रही है. महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचारों के बारे में जो अखबारों में नियमित रूप से खबरे पढी जाती हैं, उनके कारण मन में असंख्य दर्द पैदा हो जाते हैं.
हम छत्रपति शिवाजी महाराज के महाराष्ट्र राज्य में रहते हैं जो पर स्री को माता के रूप में संबोधित करते हैं. हमारे महाराष्ट्र में प्रगतिशील सोच और सक्षम महिलाओं की एक लंबी परंपरा है. सावित्रीबाई फुले, पंडित रमाबाई, लक्ष्मीबाई तिलक, रमाबाई रानाडे, आनंदीबाई कर्वे, आदि महिलाएं समाज निर्मिती का ध्यास लेकर जीनेवाली ऐसी महान महिलाएँ इसी महाराष्ट्र में जन्मी थी इसलिए, इस राज्य ने महान महिला लेखकों की परंपरा से लाभ उठाया है जो अशिक्षित है, लेकिन अपनी अचूक आवाज और साहित्य के माध्यम से अपनी समझ प्रदान करते हैं.
हमारे पास सिंधुताई सपकाल के काम का एक जीवंत उदाहरण है, जिसे अनाथ बच्चों की मां के रूप में जाना जाता है. और ऐसी सभ्य अवस्था में महिलाओं के खिलाफ अत्याचार में लगातार वृद्धि हमारी प्रगति के लिए एक अपमान है. औरत 'जो परिवार की रीढ़ है और वैकल्पिक रूप से समाज, माँ, बहन, बेटी, पत्नी, दादी, दोस्त, प्रेमी विभिन्न भूमिकाओं में ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारियों को निभाती हुई दिखाई देती है. यह उम्मीद की जाती है कि उसके लिए एक महिला-मुक्त समाज बनाया जाएगा और वह बिना किसी हिचकिचाहट के इसमें रह सकेगी.
यहां तक कि ऐसी स्थिति में जहां पूरी दुनिया आज कोरोना नामक एक भयानक संकट का सामना कर रही है, मेरी महिलाओं को स्वास्थ्य, पुलिस, स्वच्छता, आदि के क्षेत्र में आगे आने और काम करने के लिए देखा जाता है. एक गृहिणी के रूप में, एक महिला जो सूर्योदय से सूर्यास्त तक काम करती है, उसे इस संकट के दौरान अपने परिवार और वैकल्पिक रूप से समाज को कोरोना से बचाने की जिम्मेदारी निभाते हुए घर में देखा जाता है. ऐसी नारी शक्ति के कार्य को सलाम किया जाना चाहिए.
अपने स्व आस्तित्व का त्याग कर हर मोर्चे पर समर्थता से लड़नेवाले "उस' 'सी' के लिए एक भय मुक्त समाज की निर्मिती होकर वह "स्री" खुले आकाश में निःसंकोश भ्रमण कर सकेगी. और उसी दिन को महिला दिवस के रूप में मनाया जाएगा. मेरी सभी माताओं और बहनों को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाएँ ..!
- सौ अरुणा महेश बंग
संचालिका - श्री संत गामाजी महाराज शिक्षण संस्थान, हिंगणा, नागपुर.