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भूमि अधिग्रहण पर सुप्रीम कोर्ट का एतिहासिक फैसला




अधिग्रहित भूमि की क्षमता को, बाजार मूल्य निर्धारित करने में, प्राथमिक कारक के रूप में विचार किया जाए - सुप्रीम कोर्ट



भूमि अधिग्रहण (संशोधित) अधिनियम 2013 के पूर्व मुकदमों के मामलों में, सरकार द्वाराअतिरिक्त मुआवजा सहित वर्तमान मूल्यांकन देने पर विचार हो - एड किशन भावनानी

गोंदिया - भारत में भूमि अधिग्रहण में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार और भी अनेक सुधारों के साथ भूमि अधिग्रहण पुनर्वास पुनर्स्थापना (संशोधन) अधिनियम 2013 संक्षिप्त में (भूमि अधिग्रहण कानून 2013) संसद के दोनों सदनों में पास किया और एक जनवरी 2014 से लागू हुआ था और हाल ही में भूमि अधिग्रहण से संबंधित एक मामले में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि राज्य द्वारा उचित न्यायिक प्रक्रिया का पालन किये बिना नागरिकों को उनकी निजी संपत्ति से ज़बरन वंचित करना मानवाधिकार और संविधान के अनुच्छेद 300A के तहत प्राप्त संवैधानिक अधिकार का भी उल्लंघन होगा। 

सर्वोच्च न्यायालय के मुताबिक,कानून से शासित किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में राज्य कानून की अनुमति के बिना नागरिकों से उनकी संपत्ति नही छीन सकता। न्यायालय ने यह भी कहा कि कानून से संचालित कल्याणकारी सरकार होने के नाते सरकार संवैधानिक सीमा से परे नहीं जा सकती। अगर भूमि अधिग्रहण कानून देखें तो पांच महत्वपूर्ण स्तंभों पर टिका है, ये हैं सामाजिक प्रभाव, आंकलन, लोगों की सहमति, मुआवजा, और पुनर्वासन एवं पुनर्स्थापना। 

सरकार 1894 के पुराने कानून में किसी भी सरकारी उद्देश्य के लिए अर्जेंसी क्लॉज का इस्तेमाल कर भूमि अधिग्रहित कर लेती थी। नए कानून में इसे सीमित कर दिया गया है। सरकार अब केवल राष्ट्रीय सुरक्षा,प्राकृतिक आपदा या संसद द्वारा मान्य अन्य किसी आपात स्थिति में ही अर्जेंसी क्लॉज के माध्यम से जमीन ले सकती है। इन श्रेणियों के तहत ली जाने वाली जमीन के लिए लोगों की स्वीकृति और एसआईए जरूरी नहीं है। 

अगर पांचवी या छठी अनुसूची वाले क्षेत्रों में इस तरह का अधिग्रहण होता है तो ग्रामसभा अथवा स्वायत्त परिषद की स्वीकृति जरूरी है। नया कानून कई फसलों वाली सिंचित जमीन का अधिग्रहण भी रोकता है। विशेष परिस्थितियों में जमीन लेने पर सरकार को उतनी ही जमीन विकसित करके देनी होगी।

...इसी प्रकार का एक मामला जिसमें भूमि अधिग्रहण की अधिसूचना 26 जून 1982 को जारी हुई थी जिसमें 1229. 914 एकड़ जमीन का अधिग्रहण भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1894 के अनुसार करना था, मामला निचले स्तर से होकर माननीय सुप्रीम कोर्ट की दहलीज तक आ पहुंचा और मंगलवार दिनांक 23 मार्च 2021 को माननीय तीन जजों कीबेंच जिसमें माननीय न्यायमूर्ति उमेश उदय ललित, माननीय न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता तथा माननीय न्यायमूर्ति आर रविंद्र भट्ट की बेंच के सम्मुख सिविल अपील क्रमांक 337/2021 जोकि एसएलपी (सिविल)क्रमांक 4445/2020 से उदय हुआ था। यूपी आवास एवं निवास परिषद बनाम प्रतिवादी सहित अनेक प्रतिवादी शामिल थे। 

माननीय बेंच ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के पश्चात अपने 31 पृष्ठों और 44 पॉइंटों के आदेश में कहा कि अधिग्रहित भूमि की क्षमता को बाजार मूल्य निर्धारित करने में प्राथमिक कारक के रूप में विचार किया जाए।यह सवाल कि जमीन का संभावित मूल्य है या नहीं, यह मुख्य रूप से उसकी स्थिति, स्‍थल और उपयोग, जिसमें इसे लिया जाता है या जिसमें इसे लिए जा सकने की उचित क्षमता है,या इसकी आवासीय वाणिज्यिक या औद्योगिक क्षेत्रों/संस्थाओं से निकटता पर निर्भर करता है, माननीय बेंच ने याचिकाकर्ता की ओर से इलाहाबाद हाईकोर्ट के,उत्तर प्रदेश के कुछ गांवों में अधिग्रहित भूमि के भूस्वामियों को मुआवजे में वृद्धि करने के फैसले खिलाफ दायर अपील में कहा। 

अधिग्रहण भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 की धारा 28 के तहत परिषद की ओर से 26.06.1982 को जारी किए गए नोटिफिकेशन से संबंधित ‌था, जिसमें 1229.914 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया जाना था। अदालत ने कहा कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम,193 की धारा 4 (1) के तहत अधिसूचना की तिथि पर भूमि के बाजार मूल्य का अनुमान लगाने के लिए अपनाए जाने वाले मूल्यांकन के तरीके हैं: 

(i) विशेषज्ञों की राय, 

(ii) उचित समय के भीतर अधिग्रहित की गई जमीनों, या उससे लगी जमीनों के वा‌स्त‌विक खरीद-फरोख्त के लेन-देन में दिया गया मूल्य और इसी प्रकार फायदे रखने वाली जमीन की कीमत; और 

(iii) अधिगृहीत जमीन की वास्तविक या तुरंत संभावित लाभ की कई वर्षों की खरीद। कोर्ट को अधिग्रहण के मामलों में बाजार मूल्य का निर्धारण करने में, जिस एसिड टेस्ट अनिवार्य रूप से हमेशा अपनाना चाहिए, वह कल्पना के करतबों से बचना है और विवेकपूर्ण इच्छुक क्रेता की जगर पर खड़े होकर देखना है, पीठ ने कहा अधिग्रहित जमीन की क्षमता जमीन के बाजार मूल्य को निर्धारित करने के लिए ध्यान में रखा जाने वाले प्राथमिक कारकों में से एक है। 

संभाव्यता कातात्पर्य वास्तविकता की स्थिति में परिवर्तन या विकास की क्षमता या संभावना से है। संपत्ति का बाजार मूल्य सभी मौजूदा लाभों के साथ इसकी मौजूदा स्थितियों के आधार पर निर्धारित किया जाना चाहिए। यह सवाल कि जमीन का संभावित मूल्य है या नहीं, यह मुख्य रूप से उसकी स्थिति, स्‍थल और उपयोग, जिसमें इसे लिया जाता है या जिसमें इसे लिए जा सकने की उचित क्षमता है, या इसकी आवासीय, वाणिज्यिक या औद्योगिक क्षेत्रों/संस्थाओं से निकटता पर निर्भर करता है, जैसे पानी, बिजली जैसी सुविधाओं की मौजूदगी के साथ साथ आगे के विस्तार की संभावना। साथ ही, पास के शहर में हो रहे विकास या विकास की संभावनाओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए। यह क्षेत्र की कनेक्टिविटी और समग्र विकास पर भी निर्भर करता है।

- संकलनकर्ता कर विशेषज्ञ
एड किशन सनमुखदास भावनानी
गोंदिया (महाराष्ट्र)

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