संवेदना का व्यापार है साहित्य : प्रभाकर सिंह
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नागपुर। साहित्य का इतिहास मानव समाज के परिवर्तन का लेखा- जोखा है। मानव संवेदना का व्यापार है साहित्य। यह अतीत का महज दस्तावेज नहीं है, बल्कि आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के शब्दों में चित्तवृत्तियों के बदलने के कारणों और कारकों की पड़ताल है। यह बात बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर प्रभाकर सिंह ने हिन्दी विभाग, राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित विशिष्ट व्याख्यान में कही।
व्याख्यान का विषय था- 'हिन्दी साहित्येतिहास लेखन की परम्परा।' उन्होंने कहा कि हिन्दी साहित्य का इतिहास केवल हिन्दी जाति का इतिहास नहीं है, बल्कि समग्र भारत की सामुहिक चिंताओं की अभिव्यक्ति है। विभिन्न दृष्टिकोणों से इतिहास लेखन की परम्परा निरंतर चलती रही है। हर दौर में इतिहास लेखन को 'करेक्ट' करने की कोशिशें हुईं हैं। नये विमर्शकारों ने भी इतिहास लेखन को लेकर पहल की है। डॉ. सिंह ने इस बात पर बल दिया कि हिन्दी साहित्य को सामाजिक, सांस्कृतिक जागृति के एक विश्वसनीय माध्यम के रूप में देखा जाना चाहिए। साहित्य का इतिहास लेखन ही नहीं, पठन-पाठन भी गंभीर समझदारी की मांग करता है। ऐतिहासिक तथ्यों और तर्कों को सही परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत है।
अतिथि वक्ता पांडिचेरी विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डॉ.सी.जयशंकर बाबू ने अपने उद्बोधन में भक्ति साहित्य के संदर्भों का जिक्र करते हुए कहा कि दक्षिण भारतीय हिन्दी लेखन पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। दक्षिण के आलवार भक्तों ने और आदि शंकराचार्य ने भक्ति का जो प्रवाह पूरे देश में फैलाया , उसे तो हिन्दी साहित्य में स्थान दिया गया, लेकिन ऐसे बहुत से लोग आलवार के पहले और बाद में भी हुए हैं जिन्होंने हिन्दी की कई बोलियों में दक्षिण के राज्यों में रहकर रचना की है। हिन्दी साहित्येतिहास में इसको नोटिस नहीं किया गया है। उन्होंने साहित्येतिहास लेखन में समन्वयवादी दृष्टिकोण अपनाने पर बल दिया।
प्रास्ताविक रखते हुए हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डॉ. मनोज पाण्डेय ने हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा को रेखांकित करते हुए कहा कि इतिहास अतीत के व्यतीत होने की कहानी नहीं है, बल्कि भविष्य के पथ-निर्देशन का जरिया है। परम्परा नैरन्तर्य में बदलाव अपेक्षित होता है। इतिहास बोध के साथ साहित्य को देखने से हमारे सामाजिक सरोकारों का दायरा व्यापक बनता है। अतिथि वक्ताओं का परिचय हिन्दी विभाग के डॉ. निखिलेश यादव और प्रा.दिलीप गिरहे ने दिया तथा आभार प्रदर्शन विभाग के वरिष्ठ सदस्य, कार्यक्रम के संयोजक डॉ. संतोष गिरहे ने किया।