वी - डेम इंस्टीट्यूट और फ़्रीडम हाउस की रिपोर्ट्स - विदेश मंत्री ने कहा देश में लोकतंत्र की स्थिति पर हमें किसी से सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं
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भारत विश्व में सबसे बड़ा मजबूत लोकतंत्र - स्वतंत्रता और लोकतंत्र पर विदेशी प्रश्नगत रिपोर्ट ख़ारिज करना चाहिए - एड किशन भावनानी
गोंदिया - भारत 135 करोड़ जनसंख्या के साथ वैश्विक स्तर पर सबसे मजबूत लोकतंत्र माना जाता है और विश्व में भारतीय लोकतंत्र की मसाले दी जाती है और भारत अपने भारतीय संविधान के आधार पर चलने वाला देश है भारतीय संसद ने अनेक मजबूत कानून दिए हैं जिसका पालन हर छोटे से बड़े पद वाले नागरिक गरीब और सामान्य जनता के लिए भी समानता से लागू होता है, सबसे बड़ी खूबसूरती भारत में किस पार्टी या व्यक्ति को सत्ता प्रदान करनी है यह चाबी भी जनता के पास रहती है परंतु कुछ दिनों से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से हम देख रहे हैं कि लोकतंत्र पर रेटिंग करने वाली दो विदेशी एनजीओ संस्थाओं की रिपोर्ट में कुछ विपरीत प्रतिक्रिया आई है और भारतीय विदेश मंत्री ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया चैनल के इंटरव्यू में कुछ बातें कहीं और उन्हें इसी रिपोर्ट्स से जोड़कर देखा जा रहा है यह लेख इलेक्ट्रॉनिक मीडिया खबरों के आधार पर बनाया गया है भारतीय विदेश मंत्री ने चैनल पर कहा कि देश में लोकतंत्र की स्थिति पर हमें किसी के सर्टिफ़िकेट की ज़रूरत नहीं है।
उनसे पूछा गया था कि 'कई हालिया रिपोर्ट्स में यह कहा गया कि दूसरी बार सरकार आने के बाद से भारत में लोकतंत्र कमज़ोर हुआ है।क्या यह भारत की छवि के लिए चुनौती है? विदेश मंत्री ने अंतरराष्ट्रीय संगठनों की दो रिपोर्टों पर आक्षेपकिया,जिन्होंने भारत में स्वतंत्रता और लोकतंत्र की आलोचना की। उन्होंने पाखंड के क्षेत्र की आवाज दी और दुनिया के ऐसे स्वयंभू पहक्षरों की तरह काम करने की कोशिश की, जो यह समझते हैं कि भारत में कोई उनकी मंजूरी नहीं चाहता।इसके जवाब मे विदेश मंत्री ने कहा, "आप जिन रिपोर्ट्स की बात कर रहे हैं, उनमें लोकतंत्र (डेमोक्रेसी) और निरंकुश शासन (ऑटोक्रेसी) का ज़िक्र किया गया, पर ये डेमोक्रेसी या ऑटोक्रेसी की बात नहीं, बल्कि ये हिपोक्रेसी (पाखंड) है. ये वो लोग हैं जिनके हिसाब से चीज़ें नहीं होतीं, तो उनके पेट में दर्द होने लगता है।
हाँ, हम राष्ट्रवादी हैं'विदेश मंत्री ने कहा,वो हमें राष्ट्रवादी पार्टी कहते हैं। हाँ,हम हैं राष्ट्रवादी पार्टी, हमने 70 देशों को कोविड वैक्सीन दी है और जो ख़ुद को अंतरराष्ट्रीयवाद के पैरोकार बताते हैं, उन्होंने कितने देशों को वैक्सीन पहुँचाई हैं? वो बताएं ज़रा कितने हैं जिन्होंने कहा कि कोविड वैक्सीन की जितनी ज़रूरत हमारे लोगों को है, उतनी ही ज़रूरत बाकी देशों को भी है। तब ये कहाँ चले जाते हैं। विदेश मंत्री ने कहा, हमारी भी आस्थाएं हैं, मान्यताएं हैं, हमारे मूल्य हैं, लेकिन हम अपने हाथ में धार्मिक पुस्तक लेकर पद की शपथ नहीं लेते।सोचिए ऐसा किस देश में होता है?
इसलिए मेरा मानना है कि इन मामलों में हमें ख़ुद को आश्वस्त करने की ज़रूरत है। हमें देश में लोकतंत्र की स्थिति पर किसी के सर्टिफ़िकेट की ज़रूरत नहीं है, ख़ासतौर पर उन लोगों से तो बिल्कुल भी नहीं, जिनका स्पष्ट रूप से एक एजेंडा है। दरअसल मामला ऐसा है कि अभी कुछ दिन पहले स्वडीन की एक वी डेम इंस्टीट्यूट जो, वी-डी संस्थान (लोकतंत्र की विविधता) एक स्वतंत्र अनुसंधान संस्थान है जिसकी स्थापना प्रोफेसर स्टाफ आई लिंडबर्ग द्वारा 2014 में की गई थी और इसे कई सरकारी संगठनों, विश्व बैंक तथा अनेक अनुसंधान संस्थानों द्वारा वित्त पोषित किया गया था। परियोजना का मुख्यालय राजनीति विज्ञान विभाग, स्वीडन के गोथेंबर्ग विश्वविद्यालय में स्थित है।
स्वीडन के वी-डेम इंस्टीट्यूट की साल 2020 की डेमोक्रेसी रिपोर्ट जारी की गई है। जिसमें भारत लोकतंत्र के विपरीत बातें कहीं हैं। भारत को इस लिस्ट में हंगरी और तुर्की के साथ रखा गया है, क्योंकि रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लोकतंत्र के कई पहलुओं पर पाबंदियां लगाई जा रही हैं. जिनमें सामाजिक संगठन और अभिव्यक्ति की आजादी जैसे पहलू शामिल हैं, सिर्फ इतना ही नहीं रिपोर्ट में भारत को सेंसरशिप मामले में पाकिस्तान के बराबर बताया गया है और बांग्लादेश से बुरी रैंकिंग दी गई है, रिपोर्ट में इसके उदाहरण भी दिए गए हैं। जिसमें बताया गया कि सत्ता नेतृत्व वाली सरकार ने देशद्रोह, मानहानि और आतंकवाद रोधी कानूनों का काफी ज्यादा इस्तेमाल किया है, सत्ता संभालने के बाद 7 हजार से भी ज्यादा लोगों पर आरोप लगाए गए हैं और इसमें से अधिकांश वो आरोपी हैं, जो सत्ताधारीके आलोचक थे, रिपोर्ट में भारत को हंगरी और तुर्की के साथ रखा गया है और कहा गया है कि देश में लोकतंत्र के कई पहलुओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
वी-डेम इंस्टीट्यूट की यह रिपोर्ट ऐसे वक़्त में आई है जब बोलने की आज़ादी पर अंकुश लगाने और असहमति की आवाज़ को देश के ख़िलाफ़ बताने की पुरजोर कोशिशें की जा रही हैं। वी-डेम इंस्टीट्यूट ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि देश में बोलने की आजादी को रोका जा रहा है...दूसरी रेटिंग एजेंसी एनजीओ फ्रीडम हाउस है। फ्रीडम हाउस नाम के इस एनजीओ की स्थापना दूसरे विश्व युद्ध के दौरान वर्ष 1941 में अमेरिका के न्यूयॉर्क में हुई थी, उस समय इस एनजीओ का मुख्य उद्देश्य दुनिया को ये बताना था कि अमेरिका लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए विश्व युद्ध में शामिल हुआ है।
वॉशिंगटन स्थित प्रतिष्ठित थिंक टैंक फ्रीडम हाउस ने अपनी 2021 की रिपोर्ट में भारत के फ्रीडम स्कोर को घटा दिया हैl इस रिपोर्ट में भारत का दर्जा पिछले साल के "फ्री" यानी स्वतंत्र से "पार्टली फ्री" यानी आंशिक रूप से स्वतंत्र कर दिया गया है। इंटरनेट फ्रीडम स्कोर के आधार पर भी भारत को आंशिक रूप से स्वतंत्र का दर्जा दिया गयाहै। क्या है रिपोर्ट में? फ्रीडम हाउस की जारी की गई इस वैश्विक रिपोर्ट का नाम फ्रीडम इन द वर्ल्ड 2021 है। फ्रीडम इन द वर्ल्ड एक सालाना वैश्विक रिपोर्ट है जिसमें दुनियाभर के देशों में राजनीतिक और नागरिक स्वतंत्रता का आकलन किया जाता है।
इसके अलावा इसमें कुछ चुनिंदा जगहों को मानवीय और राजनीतिक स्वतंत्रता के कई मानकों के आधार पर परखा जाता है। सभी मानकों के आधार पर इस रिपोर्ट में देशों को स्कोर दिया जाता है।2021 के अंक में 195 देशों और 15 इलाकों में 1 जनवरी 2020 से लेकर 31 दिसंबर 2020 तक हुएघटनाक्रमों का विश्लेषण किया गया है देश-द्रोह के क़ानून के दुरुपयोग का ज़िक्र है। फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट में नागरिकता क़ानून (सीएए) में हुए बदलावों को भेदभाव वाला बताया गया है और कहा गया है कि पिछले साल फ़रवरी में इस क़ानून के चलते हुए विरोध-प्रदर्शनों में हिंसा हुई, इसमें कई लोग मारे गए रिपोर्ट में भारत में कोरोना वायरस महामारी से निबटने के लिए पिछले साल लगाए गएलॉकडाउन के चलते प्रवासी मज़दूरों को हुई दिक्क़तों का भी ज़िक्र किया गया है।
क्या है भारत का स्कोर? फ्रीडम हाउस की फ्रीडम इन द वर्ल्ड 2021 रिपोर्ट में भारत को आंशिक रूप से स्वतंत्र दर्जा दिया गया है। इसमें 100 के मानक पर भारत का स्कोर 67 तय किया गया है। रिपोर्ट में राजनीतिक अधिकारों के लिए 40 अंकों में से भारत को 34 नंबर दिए गए हैं. जबकि नागरिक अधिकारों में 60 अंकों में से भारत को 33 नंबर ही मिले हैं। पिछले साल भारत का स्कोर 70 था और इसका दर्जा फ्री यानी स्वतंत्र का था।इसी तरह से इंटरनेट की आज़ादी को लेकर भारत का स्कोर 51 रहा और इसमें भी भारत को आंशिक रूप से स्वतंत्र का दर्जा दिया गया है।
प्रेस की आज़ादी इस विषय पर भारत का स्कोर 4 में से 2 है। परंतु दूसरी एजेंसी प्यू रिसर्च सेन्टर की रिपोर्ट...ये स्टडी अमेरिका के थिंक टैंक प्यू रिसर्च सेंटर की है, जिसके मुताबिक 2019 में भारत उन देशों की सूची में सबसे ऊपर था,जहां लोग अपने देश की सरकार और लोकतंत्र से सबसे ज़्यादा संतुष्ट हैं। 70 प्रतिशत लोगों ने तब भारत के लोकतंत्र को सही माना था,लेकिन क्या आपको पता है कि लोकतंत्र पर लेक्चर देने वाले देशों में ये आंकड़ा कितना है।रेटिंग एजेंसियों की स्टडी में विरोधाभास। अब आप खुद सोचिए अमेरिका की दो बड़ी रेटिंग एजेंसियों की स्टडी में कितना विरोधाभास है। एक स्टडी कहती है कि भारत में लोकतंत्र की मात्रा बहुत कम है और एक रिपोर्ट कहती है कि भारत में लोग लोकतंत्र से सबसे ज़्यादा संतुष्ट हैं।
संकलनकर्ता कर विशेषज्ञ
- एड किशन सनमुखदास भावनानी
गोंदिया महाराष्ट्र