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नो स्कूल - नो फीस - कक्षा ११ तक के छात्रों को बिना परीक्षा प्रमोट करे सरकार






निजी स्कूलों के फ़ीस निधारण नियामक प्राधिकरण का करे गठन : अग्रवाल


नागपुर। विदर्भ पेरेंट्स एसोसिएशन  के अध्यक्ष संदीप अग्रवाल ने मुख़्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखकर कक्षा ११ तक के छात्रों को बिना परीक्षा प्रमोट करने व निजी स्कूलों के फ़ीस निधारण के लिए शुल्क  नियामक प्राधिकरण का गठन करने की मांग की है। श्री अग्रवाल ने कहा की  पिछले १
वर्ष से देश कोरोना महामारी से जूझ रहा है। पिछले मार्च २० से ही सभी स्कूल बंद पड़ी है, लॉकडाउन के चलते देश के सभी परिवार आर्थिक नुकसान का सामना कर रहे है। 

इस दौरान अपने आप को और परिवार को इस महामारी से बचाने में हर नागरिक जदोजहद कर रहा है जिसके बावजूद स्कूल संचालक फ़ीस वसूली के लिए मनमानी कर रहे है। कई स्कूलों ने ऑनलाइन क्लासेस चालू कर रखी है जो सिर्फ फ़ीस वसूली का एक बहाना है। हाल ही में तमिलनाडु सरकार ने कक्षा ९ वी से ११ तक के छात्रों को बिना परीक्षा के ही अगली कक्षा में प्रमोट कर दिया है। 

इसी तरह उत्तर प्रदेश सरकार ने पहली से आठवीं के कक्षा को प्रमोट करने की घोषणा कर दी है। इसी तर्ज पर महाराष्ट्र सरकार भी पहली से ११ वी के छात्रों को बिना परीक्षा के प्रमोट करने का आदेश जारी करें। श्री अग्रवाल ने कहा की  प्रदेश में निजी स्कूलों के लिए रेग्युलेशन ऑफ़ फ़ीस एक्ट २०११ कानून लागु है। परन्तु दुर्भाग्य से स्कूल इस कानून का पालन  नहीं कर रही है। 

महाराष्ट्र सरकार में शिक्षा राज्यमंत्री बच्चूभाऊ कडु से मिलकर विदर्भ पेरेंट्स एसोसिएशन ने कुछ स्कूलों का सरकारी ऑडिट करने की मांग की थी, जिसके बाद मंत्री बच्चूभाऊ कडु ने नागपुर विभाग की कुछ चुनिंदा स्कूलों के दो वर्ष का ऑडिट कराने के आदेश दिए थे। शिक्षा उपसंचालक, नागपुर द्वारा यह ऑडिट शुरू किया गया जिससे  यह बात सामने आई है की  इन स्कूलों ने केवल दो वर्ष में ही तक़रीबन १०० करोड़ की गैर क़ानूनी उगाही पालको से  की है। 

महाराष्ट्र में फीस एक्ट २०११ लागु है और इसमें में स्पष्ट प्रावधान है की सभी स्कूलों ने पैरेंट टीचर एसोसिएशन (PTA)  का गठन करना चाहिए और गठन करने की पूरी प्रक्रिया भी इस कानून में लिखी है परन्तु कोई भी स्कूल ने उस गठन की प्रक्रिया का पालन नहीं किया और मनमानी तरीके से अपनी पसंद के पालको को लेकर PTA में लेकर बोगस समिति बनाई। PTA बनाने की जानकारी स्कूल की वेबसाइड पर डालना, नोटिस बोर्ड पर लगाना तथा  सरकार को इसकी जानकारी देना अनिवार्य था। साथ ही गठन की प्रक्रिया की विडिओग्राफी करना भी अनिवार्य था। 

परन्तु किसी भी स्कूल ने सरकार के पास यह जमा नहीं कराया और शिक्षा विभाग ने भी उन स्कूलों पर ऐसा न करने हेतु कोई भी कार्यवाही  नहीं की। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। फीस एक्ट २०११  में यह भी प्रावधान है की स्कूल सिर्फ २ वर्ष में एक बार ही १५ प्रतिशत तक फीस बढ़ा सकती है इसके विपरीत भी प्रतिवर्ष स्कूल फीस बढाई गई है जो पूरी तरह गैर कानूनी है। इस एक्ट में यह भी बताया गया है की स्कूल किस किस मद में फीस वसूल कर सकती है पर इसका भी पालन नहीं किया गया। स्कूल द्वारा Miscellaneous  फीस के नाम पर भी गैरकानूनी वसूली की गयी। 

स्कूलों द्वारा कानून का पालन नहीं किया गया।  सभी पालको ने स्कूलों ने जब जब जितने पैसे मांगे गए उन्होंने दिया पर स्कूलों ने कभी भी पालको के हितो का ध्यान नहीं रखा। और केवल पैसा कमाने है उनका उपदेश बन गया है। सभी निजी स्कूले विभिन्न संस्थाओं द्वारा चलाई जाती है और ये सभी संस्थाए चैरिटी कमिश्नर के यहाँ पंजीकृत है और मुनाफा कमाना इनका उपदेश नहीं है ऐसा
स्पष्ट प्रावधान है। 

प्रदेश की किसी भी निजी स्कूल ने इस कानून के प्रावधानों का पालन नहीं किया है।महाराष्ट्र सरकार द्वारा उच्च शिक्षा के लिए शुल्क नियामक प्राधिकरण का गठन किया गया है। जो उच्च शिक्षा के लिए फीस निर्धारित करती है। उसी तर्ज पर निजी स्कूलों के लिए भी शुल्क नियामक
प्राधिकरण का गठन किया जाना चाहिए जिससे निजी स्कूल संचालकों द्वारा पालको से की जा रही लूट पर रोक लगाई जा सके।
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