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बसंत ऋतु...




देखो सखि बसंत ऋतु आया हैं
अपने साथ प्रकृति का सौंदर्य लाया हैँ----------
सबका मन प्रफुल्लित हैं
वृक्ष और लताएँ, नवपल्लवों
नवकुसुमों से सजकर झूमने लगी है, जैसें प्रकृति को नया जीवन मिला हैं---------
देखो सखि बसंत त्रतु आया हैं।

नये उमंग के साथ सजधंज कर
प्रकृति का यह सुन्दर दृश्य आया हैं, मन मोह रही है सबकी -------
पीली - पीली फूल और कोयल की कूक, प्राकृतिक सुंदरता का हो रहा आभास-------
नवकोमल पतों का हो रहा अहसास, पक्षी मोर ,चहचहाने लगे
देखो सखि बसंत त्रततु आया हैं।

पलाश के फूल भी खिलनें लगे हैं
जैसे जंगल स्वर्ग सा बन आया हैं
साथ में भीनी - भीनी खुंशबू  भी लाया ,
जो मन को यौवन बना रही है
ऐंसा मधुमास आया हैं
देखो सखि बसंत त्रततु आया है।

हर तरफ आम के बौर बौराये है,
सरसों की पीली - पीली खेती जैसे
सोना जैसा छाया हैं----------
जैसे प्रकृति का कर रही श्रृंगार
मस्ती से तितली भी जैसे नाचें है।
फूलों पर भी भौंरे मंडराये ,
हर तरफ हैं छायीं बहार
देखो सखि बसंत ऋतु आया हैं।

नये उमंग, नयी तरंग, नया यौवन आया हैं,जब बसंत अपने संग
रंग बिरंगे रंग लाया रंग लाया,
लेकर सुगंध चल रही हवा
कोयल, मैना भी छेड़ रही सुरीली तान हैं,आई बसंत की ये त्रततु मस्तानी --------------
मंद - मंद यौवन की मुस्कान
बिखेरता,-------
देखों सखि बसंत ऋतु आया हैं।


- डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक

  सहायक प्राध्यापक
ग्रेसियस महाविद्यालय अभनपुर
रायपुर (छत्तीसगढ़)

काव्य 727590370922886834
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