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चेक बाउंस मामला - सुप्रीम कोर्ट ने त्वरित निपटारे के लिए कदमों पर विचार के लिए समिति का गठन किया





चेक बाउंस पीड़ितों के लिए राहत की खबर - किस्तों पर सामान लेकर एडवांस चेक देने का प्रचलन हाल में बड़ा हैं - एड किशन भावनानी


गोंदिया - भारत में डिजिटल भुगतान सिस्टम इन दिनों हर कोई अपना रहा है, यह एक आसान और सुविधाजनक प्रक्रिया है। डिजिटल भुगतान सिस्टम का उपयोग कोई भी किसी भी समय और कही सें भी कर सकता है। भले ही डिजिटल भुगतान सुविधा को लोग आज सबसे ज़्यादा अपना रहे हैं, लेकिन हमें उस प्रक्रिया के बारे में नहीं भूलना चाहिए जिस प्रक्रिया से डिजिटल भुगतान प्रणाली के आने से पहले ऑफलाइन एक बैंक अकाउंट से दूसरे अकाउंट में फंड ट्रांसफर किया जाता था। 

इसमें सबसे ज़्यादा भूमिका चेक की रही है। वर्तमान समय में हम अगर देखें तो किस्तों पर सामान या ब्याज पर पैसे लेकर एडवांस चेक देने का प्रचलन बढ़ा है और भुगतान तारीख आने पर भुगतान नहीं होते हैं और मामला उलझनों, विवादों, समझौतों, जब्ती कार्रवाई इत्यादि से होकर अदालतों की चौखट ऊपर जाकर पहुंचता है, जो जेएमएफसी कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक और जिला उपभोक्ता न्यायालय से लेकर राष्ट्रीय उपभोक्ता न्यायालय तक सालों साल मामला चलता रहता है और दोनों पक्षों की उम्र भी कम पड़ जातीहै यही कारण है भारत की हर स्तर की कोर्ट में हजारों और पूरे भारतवर्ष में लाखों मामले पेंडिंग पड़े हुए हैं। 

जिस पर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने एमिकस क्यूरी की सिफारिशों पर संज्ञान लेकर मामला उठाया है और 25 फरवरी 2021 को एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत चेक अनादर के मामलों की सुनवाई के लिए अतिरिक्त अदालतों अदालतों के गठन पर केंद्र सरकार के विचार मांगे थे और कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 243 के तहत संसद को शक्ति है उसके बाद गुरुवार दिनांक 4 मार्च 2021 को भी माननीय बेंच ने कहा एक तात्पुरता कानून बनाकर भी अतिरिक्त न्यायालय का गठन किया जा सकता है। उसके बाद 7 मार्च 2021को भी माननीय कोर्ट में सुनवाई हुई। 

असल में देखा जाए तो चेक बाउंस होने पर भुगतान लेने वाला पैसे और परेशानी दोनों से पीड़ित होता है और देने वाला भी परेशान होता है और कोर्ट प्रक्रिया भी जटिल होती है। इसकी प्रक्रिया संक्षिप्त इस प्रकार है आपराधिक प्रकरण, 30 दिन का लीगल नोटिस,15 दिन का समय स्पीड पोस्ट या रजिस्ट्री एडी, थानाक्षेत्र अनुसार मजिस्ट्रेट कोर्ट, समन, पुनःसमन, वारंट,क्रॉस एग्जामिनेशन, न्यायालय की उपधारणा, समरी ट्रायल,समझौता योग्य, अंतिम बहस, निर्णय, जमानतीअपराध, ऊपर के न्यायालय से जमानत, किसी भी स्तर पर समझौता योग्य अपराध है यह 138 एनआई एक्ट और फिर कोर्ट फीस का स्लैब इस प्रकार है। 

कोर्ट फ़ीस चेक बाउंस के प्रकरण में महत्वपूर्ण चरण होता है। चेक बाउंस के प्रकरण में फीस के तीन स्तर दिए गए हैं। इन तीन स्तरों पर कोर्ट फीस का भुगतान स्टाम्प के माध्यम से किया जाता है। ये तीन स्तर निम्न हैं।

1 लाख़ राशि तक के चेक के लिए चेक में अंकित राशि की पांच प्रतिशत कोर्ट फीस देना होती है।1 लाख़ से ₹5 लाख़ तक के चेक के लिए राशि की चार प्रतिशत कोर्ट फीस देना होती है। 5 लाख़ से  अधिक राशि के चेक के लिए राशि की तीन प्रतिशत कोर्ट फीस देना होती है। हालांकि कि माननीय कोर्ट ने स्वत संज्ञान से मामला उठाया था और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में उल्लेखित रिपोर्टों के अनुसार बुधवार दिनांक 10 मार्च 2021 को संविधान पीठ की पांच जजों की एक बेंच जिसमें माननीय मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे, माननीय न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, माननीय न्यायमूर्ति बी आर गवई माननीयन्यायमूर्ति एस बोपन्ना तथा माननीय न्यायमूर्ति एस रविंद्र भट्ट की पीठ ने, बॉम्बे हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस आर सी चव्हाण की अध्यक्षता में एक समिति के गठन का निर्देश दिया है, ताकि निगोशिबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत चेक बाउंस मामलों के त्वरित निपटारे के लिए उठाए जाने वाले कदमों पर विचार किया जा सके सीजेआई बोबडे की अगुवाई वाली एक संविधान पीठ ने इस मामले में दिए गए सभी सुझावों पर विचार करने के लिए एक समिति बनाने और देश की सभी न्यायपालिका के माध्यम से इन मामलों के शीघ्र निपटान की सुविधा के लिए उठाए जाने वाले कदमों को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करने के लिए एक रिपोर्ट पेश करने को उचित पाया। 

समिति इस मामले में किसी भी विशेषज्ञ से परामर्श कर सकती है, और अपनी पहली बैठक के 3 महीने में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर सकती हैं न्यायालय ने भारत संघ से कहा है कि वह समिति को पूरे समय या अंशकालिक सचिव सहित ऐसी सचिवीय सहायता प्रदान करे, समिति के कामकाज के लिए स्थान आवंटित करे और भत्ते प्रदान करे जो भी आवश्यक हो। कोर्ट ने उन विभागों कोनिर्दिष्ट किया है जिनका समिति में एक प्रतिनिधित्व होगा, जो कि वकीलों से सुझाव प्राप्त करने के बाद, सॉलिसिटर जनरल ने अगले शुक्रवार को केंद्र की ओर से सुझाए गए नामों को प्रस्तुत करेंगे और अदालत नामों के साथ अंतिम आदेश पारित करेगी। 

न्यायालय के आदेश के अनुसार, निम्नलिखित अधिकारियों को समिति में शामिल किया जाना हैबॉम्बे उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर सी चव्हाण, समिति के अध्यक्ष के रूप में। वित्तीय सेवा विभाग, न्याय विभाग, कॉरपोरेट मामलों के विभाग,व्यय विभाग और गृह मंत्रालय के एक प्रतिनिधि जो कि अतिरिक्त सचिव के पद से नीचे के अधिकारी नहीं होंगे आरबीआई गवर्नर द्वारा नामित भारतीय रिज़र्व बैंक का एक प्रतिनिधि, आईबीए के अध्यक्ष द्वारा नामित किए जाने वाला बैंकिंग उद्योग का एक प्रतिनिधि, समिति के सचिव के रूप में कार्य करने के लिए नालसा का प्रतिनिधि अधिकारी एसजी तुषार मेहता या उनके द्वारा नामांकित वकील बार केप्रतिनिधि के रूप में हो सकते हैं। 

सुनवाई के दौरान न्यायालय ने कहा कि एनआई अधिनियम के तहत मामलों के निपटारे में होने वाली बड़ी देरी पर विचार करने के लिए न्यायालय द्वारा स्वत: संज्ञान मामला शुरू किया गया था। कोर्ट ने कहा,बदले में ये देरी सभी स्तरोंपर न्यायालयों में विशेष रूप से ट्रायल कोर्ट और उच्च न्यायालयों में लॉकजाम का गठन कर रही है।न्यायालय ने आगे कहा कि विभिन्न हितधारकों और एमिकस क्यूरी से विभिन्न सुझाव प्राप्त हुए हैं।

संकलनकर्ता कर विशेषज्ञ 
- एड किशन सनमुखदास भावनानी 
गोंदिया, महाराष्ट्र
समाचार 4514966745668670775
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