सोशल मीडिया में देवनागरी लिपि के प्रयोग की नितांत आवश्यकता : अनिल शर्मा 'जोशी'
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नागपुर/पुणे। सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव से हमारी बातचीत का ढंग बदल गया है। मेल और मैसेज हमारे संवाद के माध्यम बन चुके हैं। परंतु इन माध्यमों में अपनी भाषा व लिपि दिखना बहुत ज़रूरी है। इस आशय का प्रतिपादन केंद्रीय हिंदी संस्थान के हिंदी शिक्षण मंडल, आगरा, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के उपाध्यक्ष श्री अनिल जोशी 'शर्मा' ने किया। आचार्य विनोबा भावे की सद प्रेरणा से नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली की महासमिति व महासभा की बैठक में वे अपना उद्बोधन दे रहे थे।
बैठक की अध्यक्षता नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के कार्याध्यक्ष प्राचार्य डॉ शहाबुद्दीन नियाज़ मुहम्मद शेख़, पुणे ने की। डॉ अनिल जोशी 'शर्मा' ने आगे कहा कि सोशल मीडिया में भारतीय भाषाओं व देवनागरी लिपि का प्रयोग बहुत ही कम मात्रा में हो रहा है।यह बहुत दुख की बात है। देश के पूर्वांचल क्षेत्र की अलिखित बोलियों के लिए नागरी लिपि के प्रयोग की आवश्यकता पर गंभीरता पूर्वक हमे विचार करना होगा।
प्रारंभ में रक्षा मंत्रालय,भारत सरकार के पूर्व हिंदी अधिकारी श्री ओम प्रकाश आचार्य ने पिछली बैठक का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया,जिसकी सर्वसम्मति से पुष्टि की गई। तत्पश्चात् आकाशवाणी के पूर्व सह निदेशक श्री अरूण कुमार पासवान ने नागरी लिपि परिषद के तत्वावधान में आयोजित निबंध ,शोध निबंध व पत्र लेखन प्रतियोगिताओं का निर्णय घोषित किया।
नागरी लिपि परिषद के महामंत्री डॉ हरिसिंह पाल जी ने परिषद की पिछले तीन माह की गतिविधियों पर विस्तार से प्रकाश डाला। इस अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रशासनिक अधिकारी श्री नत्थी सिंह बघेल की कृति 'भारतीय संस्कृति में पर्यावरण', परिषद के मध्य प्रदेश इकाई के संयोजक डॉ प्रभु चौधरी की पुस्तक देवनागरी लिपि ,तब से अब तक 'डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद का शोध प्रबंध 'देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता' तथा परिषद की पत्रिका "नागरी संगम "के नवीनतम अंक का लोकार्पण केंद्रीय हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष डॉ अनिल जोशी 'शर्मा' के करकमलों से तथा परिषद के महामंत्री डॉ हरिसिंह पाल की उपस्थिति में हुआ।
नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली की इस भौतिक और आभासी बैठक में श्री सुरेश चंद्र शुक्ल, ओस्लो, नार्वे, डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद, श्री सुरेश वानखेड़े, नांदेड़, तिलोक राठी, सत्य प्रकाश, कवि बाबा कानपुरी, विजय प्रभाकर नगरकर , अहमद नगर आदि महानुभावों ने अपने विचार रखे। भारत संचार निगम लिमटेड, अहमदनगर के पूर्व राजभाषा अधिकारी श्री विजय प्रभाकर नगरकर अहमदनगर ने अपने सुझाव में कहा कि 'नागरी संगम' के पुराने सभी विशेषांक ई बुक के रूप में प्रकाशित करें।ताकि शोध तथा देवनागरी लिपि के प्रचार प्रसार को गति मिलेगी।
बैठक की अध्यक्षता करते हुए नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के कार्याध्यक्ष प्राचार्य डॉ शहाबुद्दीन नियाज़ मुहम्मद शेख़, पुणे ने अपने उद्बोधन में कहा कि नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली पिछले पैतालीस वर्षों से भारतीय संविधान सम्मत देवनागरी लिपि के प्रचार, प्रसार व विकास कार्य में रत है। अपनी वैज्ञानिकता के कारण देवनागरी लिपि विश्व मान्य हो चुकी है।
सह लिपि के रूप देवनागरी के माध्यम से भारत ही नहीं, विश्व की किसी भी भाषा को आसानी से सीखा जा सकता है। भारतीय संविधान की अष्टम अनुसूची में सम्मिलित दस भाषाओं की लिपि देनागरी है। भारतीय संस्कृति के अबाधित अस्तित्व के लिए देवनागरी लिपि का कोई विकल्प नहीं है। इसलिए अपने दैनंदिन व्यवहार में हमे नागरी लिपि का प्रयोग व्यापक स्तर पर करना चाहिए।
डॉ विनोद बब्बर जी के कुशल संचालन में परिषद की इस महासमिति व महासभा की बैठक में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ जय जयराम अरूण पाल यूनीवार्ता के उप मुख्य संपादक श्री सत्य प्रकाश पाल, डॉ इस्पाक अली, बंगलुरू, प्रोफेसर अवनीश, डॉ मेराज अहमद, नारायण तिवारी, शेज्यू, केरल, श्री संजय चौबे, गाजियाबाद सहित अनेक सदस्यों तथा महानुभावों की सक्रिय उपस्थिति रही।