व्यंग्यकार के सरोकार को लेकर कोई भ्रम नहीं होना चाहिए : आप्टे
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व्यंग्यधारा द्वारा आयोजित ऑनलाइन विमर्श की चवालीसवीं गोष्ठी की के ‘पुनर्पाठ’ श्रृंखला
नागपुर। व्यंग्यकार के सरोकार को लेकर कोई भ्रम नहीं होना चाहिए। यह बात वरिष्ठ व्यंग्यकार, कलाकार, अभिनेता श्रीकांत आप्टे ने व्यंग्यधारा द्वारा आयोजित ऑनलाइन विमर्श की चवालीसवीं गोष्ठी के ‘पुनर्पाठ’ श्रृंखला के अंतर्गत शरद जोशी की रचना ‘मनी प्लांट और कैक्टस’ पर कही। उन्होंने कहा कि परसाई और शरद जोशी ने व्यंग्य की नींव रखी। आज जहां व्यंग्य का महल होना चाहिए, वहां झोपड़ा बन गया है।
वरिष्ठ व्यंग्यकार कैलाश मंडलेकर ने पुनर्पाठ की अगली रचना ‘मटका प्रसंग’ पर अपनी बात रखते हुए कहा कि शरद जोशी ने रचनाओं में व्यंग्य के साथ हास्य को स्थापित किया है। मनुष्य ने संत्रास से लड़ने के लिए हास्य को पैदा किया। हास्य को व्यंग्य से जुदा होकर नहीं देखा जा सकता है।
पुनर्पाठ आयोजन की तीसरी रचना ‘कस्बे के छोटेलाल’ पर चर्चा करते हुए व्यंग्य लेखिका रेणु देवपुरा ने कहा कि शरद जोशी अपनी रचनाओं पर सवाल छोड़ जाते हैं जिससे रचना की व्यापकता बढ़ जाती है। जोशी अनेक बार रचना में स्वयं को पात्र के रूप में प्रस्तुत करते दिखते हैं। इस रचना का बुनाव संवाद शैली में किया गया है।
‘अफसर’ व्यंग्य पर व्यंग्यकार डाॅ. अजय अनुरागी ने कहा कि यह मिश्रित शैली का व्यंग्य है। यह व्यंग्य देश में व्याप्त कार्यालयीन विकृतियों और अफसरों की प्रवृत्तियों को गहरे तक उजागर करता है। यदि व्यंग्य में वैचारिकता स्पष्टता नहीं है, तो व्यंग्य का निशाना सही नहीं होगा। रचना में विचार स्पष्ट होना चाहिए। पुनर्पाठ विमर्श की अंतिम रचना ‘सूअर चले फिर गंगा नहाने’ पर आलोचक डॉ. रमेश तिवारी ने अपने उद्बोधन में कहा कि जब कोई रचना अपने देशकाल का अतिक्रमण कर उससे आगे निकल जाती है, तो वह कालजयी रचना हो जाती है।
यह रचना ऐसी ही एक प्रमुख कालजयी रचना है। लोक से जन्मे मुहावरे का प्रभाव और सौंदर्य देखना है, तो इस रचना को पढ़ना चाहिए| यह व्यंग्य-रचना शासन की अमानवीयता पर प्रहार करती है। यहां रचनाकार शासन की प्रवृत्ति और प्रकृति की बात कर रहे हैं, जिससे रचना का प्रभाव बढ़ जाता है। व्यंग्य रचना का दायरा और व्यंग्यकार के दायित्व को जानने - समझने की दृष्टि से भी यह रचना बहुत महत्त्वपूर्ण है। अपने समय की इस प्रमुख रचना का महत्व आज के दौर में और अधिक बढ़ जाता है।
वरिष्ठ व्यंग्यकार रमेश सैनी ने गोष्ठी का संचालन करते हुए कहा कि आज हम व्यंग्य में जिस अराजक दौर से गुजर रहे हैं, इससे बाहर निकलने के लिए हरिशंकर परसाई, शरद जोशी, रवींद्रनाथ त्यागी, श्रीलाल शुक्ल आदि महत्वपूर्ण व्यंग्यकारों की रचनाओं का पुनर्पाठ और उन पर विमर्श करना जरूरी हो जाता है।
विमर्श गोष्ठी में सुनील जैन राही, सुधीर कुमार चौधरी, अनूप शुक्ल, सूर्यदीप कुशवाहा आदि ने अपने विचार रखे। विमर्श में मधु आचार्य ‘आशावादी’, बुलाकी शर्मा (बीकानेर), शांतिलाल जैन (उज्जैन), राजेंद्र वर्मा (लखनऊ), अरुण अर्णव खरे (बंगलुरु), डा. महेंद्रसिंह ठाकुर ( रायपुर), कुमार सुरेश (भोपाल), स्नेहलता पाठक (रायपुर ), हनुमान मुक्त (गंगापुर सिटी), हनुमान प्रसाद मिश्र(अयोध्या), संतोष त्रिवेदी (दिल्ली), वीना सिंह (लखनऊ), प्रभाशंकर उपाध्याय (सवाई माधोपुर), अल्का अग्रवाल सिग्तिया (मुम्बई ), मुकेश राठौर (भीकमगांव मप्र), एमएम चंद्रा (दिल्ली), जयप्रकाश पाण्डेय (जबलपुर), रामदयाल सूत्रकार, हनुमान प्रसाद मिश्र (अयोध्या), नवीन जैन (बड़़ा मलेहरा ) आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।