नारी संघर्ष के नाम...
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एक कहानी... महिला दिवस पर
आज मेरे और सभी देशवासियों की तरफ से उन सभी महिलाओं को शत:शत: नमन, जिनके योगदान की वजह से हमारे देश का सिर हमेशा गर्व से ऊँचा रहा, चाहे वो महिला सरोजनी नायडू हो या विजया लक्ष्मी पंडित, इंदिराजी हो या सोनिया गांधी हमारी सानिया मिर्जा हो या मेरी काम, चाहे वो पी. टी. उषा से या कल्पना चावला और भी ऐसी कई महिलाए है जिनके कार्यों की वजह से उन महान हस्तियों ने देश - विदेश मे अपने नाम का लोहा मनवाया।
नारी का योगदान इस देश के लिए इस संभाग के लिए आज से नही बल्कि सदियों से चलता आ रहा है। हम इतिहास उठाकर देखे अहिल्याबाई से लेकर झांसी की रानी, रजिया सुल्तान से लेकर, रानी पदमावत और जीजामाता से लेकर सावित्रीबाई फुले तक आज हमारी देश की आजादी में महिलाओं ने बढचढ कर कार्य किया और उनका योगदान सहारनीय रहा, नारी मे गजब की शक्ति है । वह माँ बनकर बच्चों के लिए ममता की छांव है तो बहन बनकर भाई का प्यार, पत्नि बनकर पूरे परिवार की ढाल है तो गृहकार्य में परिपूर्ण जहां वो ममतामयी है वही त्याग की मुर्ति, जहां वो किसी की प्रेरणापात्र का अथांग सागर करुणामयी।
आज हम बाहरी दुनिया मे देख लो सर्विस हो या बिजनेस, वो कांधे से कांधा मिलाकर खडी है। हर कार्य कुशलपुर्वक निभाने में माहिर। लेकिन अन्याय और अत्याचार भी इसी नारी ने सहे, कभी उसे सती बनाकर जलाया गया तो देश के मानव रुपी दानवों ने उसे कोठे पर बिठाया , कभी "दहेज प्रथा" के नाम पर बलि दी गई, तो कभी बांझ बोलकर ताने, लेकिन गजब की सहनशक्ति दी भगवान ने उसे, दुनिया के सितम सह लेती लेकिन अब नही। कब तक अब नही कभी नही।
जनाब ! ये बदलाव का दौर है हमें सब मिलकर बदलाव लाना है, इस समाज में देश में, अपनी सोच में आये दिन बलत्कार की घटनाए सुनने को मिलती है, सोचती हूँ, क्या हम इसी भारत की महिलाए है, जिस देश में “औरत को दुर्गा' का रुप देकर पुजा 'मरियम" और बीबी “फातिमा" का दर्जा मिला वहां औरत के साथ हवस के शिकारीयों का ये अत्याचार कल हमारे देश के मानव रुपी दानव बदलेंगे हां जरूर होगा ये बदलाव। आज हम सब देशवासीयों को मिलकर लाना है ये बदलाव, आज देश बदला, सोच बदली और महिलाए शसक्त हुई।
आज इस भागदौंड की जिन्दगी मे उन महान महिला हस्तियों को तो याद रखते है। लेकिन इन महिलाओं को भुल जाते है, जो छोटे - छोटे कस्बो मे झोपडपट्टीयों मे अपना कार्य बहोत इमानदारी से कर रही है। ये महिलाए ज्यादा पढी लिखी नही है लेकिन इनके कार्यो से समाज में इनका योगदान है। मैंने देखा है कई महिलायें ऑटो चलाती है, कोई सब्जी बेचती है , कोई टूक चला रही है। कोई घरगुती कार्य, ये वो महिलाए है जनाब व जो अपने तरीके से परिवार और समाज मे अपना योगदान दे रही है।
लेकिन आज कोई मंच इन्हे बुलाकर सत्कार नही करता इनके कार्य की सराहना नही की जाती आज हमें ऊंच निच का भेदभाव भुलाकर ऐसी महिलाओं को सामने लाना है। उनका साथ देना । क्योंकि उन्हें आत्म विश्वास और आत्म सम्मान चाहिए, तो हम प्रतिक्षा करते है। हम कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढे और अपने लक्ष्य को पुरा करें।
- महेरुनिस्सा खान,
अवस्थी नगर, नागपुर