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बीमा क्षेत्र में एफडीआई 74 प्रतिशत तक बढ़ाने का विधेयक संसद के दोनों सदनों में पास - कानून बनेगा



बीमा सहित वित्त विधेयक,आयकर,सेबी,प्रतिभूति संविदा, सीएसटी,अनेक संशोधन विधेयक दोनों सदनों में पास - जनता को इसमें बहुत लाभ - एड किशन भावनानी

गोंदिया - भारत में प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से हम पढ़ते, सुनते और देखते आ रहे हैं कि जनता से चुनने के बाद विधायक या संसद जब विधानभवन या संसद में जाता है तो अपना मस्तक संसद की चौखट पर टेकते और नमन करते हैं। 

यह खुद प्रधानमंत्री महोदय को भी करते हमने देखा था, क्योंकि यह जनता का सबसे बड़ा मंदिर है जहां कानून बनते हैं और उसके आधार पर पूरा भारतवर्ष उस प्रक्रिया अनुसार संचालित होता है, जो सभी पर लागू होता है..इसी क्रम में वर्तमान बजट सत्र में जिन कानूनों में संशोधन और जिन विधेयकों की घोषणा बजट 2021 में की गई थी उन्हें अब संसद के दोनों सदनों में पास किया गया है। 

अतः अब राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से वे कानून बन जाएंगे..बात अगर हम बीमा क्षेत्र की करें तो उसकी एफडीआई 49 प्रतिशत से बढ़ाकर 74 प्रतिशत करने, बीमा (संशोधन)विधेयक 2021 जो 6 पृष्ठों का था, की घोषणा की गई थी उस विधेयक को दोनों सदनों ने पास कर दिया है और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होने पर वह कानून बन कर लागूहो जाएगा। वित्त अधिनियम के अलावा, विधेयक में आयकर अधिनियम,1961 में भी संशोधन करने का प्रस्ताव था।

जीवन बीमा निगम अधिनियम 1956, प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम,1956 केंद्रीय बिक्री कर अधिनियम,1956,सेबी अधिनियम,1992 आदि।बीमा अधिनियम 1938 को राज्यसभा ने पारित किया। बिल से जुड़ी वस्तु के बयान के अनुसार, घरेलू लंबी अवधि की पूंजी के पूरक, प्रौद्योगिकी और अर्थव्यवस्था और बीमा क्षेत्र के विकास के लिए प्रौद्योगिकी और कौशल का लक्ष्य हासिल करने और इस प्रकार बीमा प्रवेश और सामाजिक संरक्षण बढ़ाने के लिए वर्तमान 49 प्रतिशत से 74 प्रतिशत तक भारतीय बीमा कंपनियों में विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाने का निर्णय लिया गया है। 

यह ध्यान देने की बात है कि बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश को वर्ष 2000 में 26% तक की अनुमति दी गई थी। बाद में, देखिए 2015 का संशोधन अधिनियम इस सीमा को जमाकी गई इक्विटी पूंजी के 49%तक बढ़ाया गया, जो कि भारतीय स्वामित्व और नियंत्रित है। तत्काल विधेयक स्वामित्व और नियंत्रण पर ऐसे प्रतिबंधों को हटा देता है। तथापि, ऐसा विदेशी निवेश केन्द्रीय सरकार द्वारा यथा निर्धारित अतिरिक्त शर्तें अधीन होगा।

विधेयक में मुख्यअधिनियम की धारा 27(7) को संलग्न स्पष्टीकरण देने का प्रस्ताव भी है। वर्तमान में अधिनियम में बीमाकर्ताओं को आस्तियों में न्यू्नतम निवेश रखने की अपेक्षा है जो उनके बीमा दावों के दावे का निपटान करने के लिए पर्याप्त होगा। यदि बीमाकर्ता का निगमीकरण अथवा अधिवासित किया जाता है तो ऐसी परिसम्प त्तियां भारत में न्यास में धारित की जानी चाहिए तथा उन न्याससियों के साथ निहित होनी चाहिए जो भारत के निवासी होने चाहिए। 

स्पष्टीकरण में कहा गया है कि यह भारत में निगमित बीमाकर्ता पर भी लागू होगा, जिसमें कम से कम: (i)33% पूंजी भारत से बाहर अधिवासित निवेशकों के स्वामित्व में है, या (ii) शासी निकाय के 33% सदस्यों को भारत के बाहर अधिवासित किया जाता है। सदन में इसबिल पर पक्ष और विपक्ष के सदस्यों ने अपने अपने विचार रखे और इसके समर्थन व विरोध में तर्क वितर्क प्रस्तुत किए गए थे, इस बहस के प्रत्युत्तर में वित्त मंत्री ने सभा को आश्वासन दिया कि कोई भी कंपनी विदेशी निवेश बढ़ाने के लिए बाध्य नहीं होगी। 

उसने कहा कि प्रस्तावित ऊपरी सीमा अनिवार्य नहीं है और विदेशियों के जोखिम में स्वतःवृद्धि नहीं होगी। उसने हाउस को यह भी सूचित किया कि,भारतीय जमाकर्ताओं द्वारा जमा धन का निवेश भारत में केवल विदेशी कंपनियों द्वारा किया जा सकता है और उन्हें इस धन को देश से बाहर ले जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी निजीकरण के मुद्दे पर उन्होंने जोर दिया कि भारतीय बीमा क्षेत्र के लगभग आधे बाजार हिस्से का हिस्सा निजी कंपनियों द्वारा पहले से ही आयोजित किया जा चुका है। 

उन्होंने बताया कि सार्वजनिक क्षेत्र का बीमा शेयर केवल 38.78% है जबकि निजी क्षेत्र का बाजार में 48.03 % हिस्सा है उन्होंने कहा कि जब बीमा क्षेत्र की बात की जाती है तो यह ध्यान देना चाहिए कि इसमें सार्वजनिक क्षेत्र की सात कंपनियां और निजी क्षेत्र से जुड़ी 61 कंपनियां हैं। मंत्री ने कहा, जब हम आत्मनिर्भर भारत की बात करते हैं तब बीमा कवर बढ़ना चाहिए। देशके दलितों शोषितों,वंचित वर्गो सभी को सुविधा मिलनी चाहिए। 

अब देखना यह है कि राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह कानून बन जाएगा औरफिर इसका क्रियान्वयन धरातल पर किस परिवेश में होता है विनियोग कर्ता इसे किस परिवेश में लेते हैं,जनता और बीमा कर्मचारी इसे किस परिवेश में लेते हैं, यह तो समय ही बताएगा कि यह विधेयक और संबंधित संशोधन के कितने दूरगामी प्रभाव अनुकूल या प्रतिकूल होंगे यह समय के गर्भ में छिपा है जो समय आने पर खुलासा होगा।

- संकलनकर्ता कर विशेषज्ञ
एड किशन सनमुखदास भावनानी
गोंदिया (महाराष्ट्र)

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