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किन्नर के रुप मे वो भगवान कहलाता...


- वीना आडवानी, कवियत्री तथा साहित्यकार, नागपुर, महाराष्ट्र

जब कभी मैं किसी किन्नर को देखती हूं। दिल सम्मान से भर जाता मैं तुरंत उनके पांव छूके आर्शिवाद लेती हूं। 
ऐसा माना जाता है कि... जो नर है ना है नार कहलाता
 
 ।। किन्नर के रुप मे वो भगवान कहलाता।।

वाकई ये हकीकत है हमारे वेदों मे भी किन्नरों का उल्लेख मिलता है। किन्नरों की दुआ मे बहुत ताकत होती है, इनके मुख से निकले हर एक शब्द मे जैसे मां वीणा वादनी सरस्वती विराजमान हैं।
       यदि हम प्राचीन ग्रंथों को उठा कर राजा महाराजाओं के इतिहास को जानेगें तो वहां भी हमें किन्नरों का उल्लेख जरूर मिलेगा। दरबार मे महाराजाओं की खिदमत करने वाली, नाच गान मे भी दरबार मे जिन दासियों का उल्लेख मिलता है उनमें अधिकतर किन्नर ही हुआ करते थे। 

किन्नर हमारे समुदाय का कोई आज का हिस्सा नहीं हैं, ये इतिहास से हमारे संग चले आ रहे हैं।
परंतु मेरे विचारों मे जहां किन्नरों के लिये सम्मान समाया है, वहीं दुनियाभर मे इन्हें अच्छी नज़रों से नहीं देखा जाता है। 

हमारे समाज मे तीन तरह के लोग हैं एक नर, एक नारी और एक नर ना नार। इन्हीं न नर और न नार को लोग अलग अलग नामों से संबोधित करती है। कोई हिजड़ा, कोई छक्का तो लोग मज़ाक के तौर पर ओ छक्के जैसे संबोधन से बुलाती है। बहुत ही हिन दृष्टिकोण से किन्नरों को देखा जाता है, जिस तरह समाज मे एक साधारण इंसान को सम्मान मिलता है तो किन्नरों को क्यों नहीं ? 

आखिर प्रकृति की देन के साथ समाज मे भेदभाव क्यों ? यदि कोई किन्नर बच्चा घर मे पैदा होता है तो जैसे मातम की लहर घर मे दौड़ पड़ती है, इसमें जन्म देने वाली मां की कोई खता नहीं फिर भी उसे दोष देते हुए उसके सहज़े नौ माह के गर्भ के बीज को तुरंत तिसरे समुदाय मतलब किन्नरों को सौंप दिया जाता है। 

कल्पना मात्र से ही दिल सहर उठता है कि क्या उस मां को अपना बच्चा प्यारा न होगा ? पर समाज क्या कहेगा यहि सोच रख मां दिल पे पत्थर रख अपनी औलाद सौंपने की अनुमति दे देती है। ये तो सोचिये जिस बच्चे को किन्नर कहके बहिष्कार किया गया वो साधारण नर/नार के बीज़ से ही उपजा एक फूल है।

किन्नर समुदाय का एक मुखिया भी होता है जिसे गुरु कहा जाता है समस्त कमाई उन्हीं गुरु को सम्मान देते हुए उन्के श्रीचरणों में सौंप दी जाती है। ये गुरु ही अपनी समुदाय के बीच प्रशासन, कुछ नियम बनाता है ताकि कोई भी नियमों का उल्लंघन कर मतभेद की भावना दिल मे ना लाऐ।
 
आज कई लोग अपनी स्वेच्छा से किन्नर बन इन्हीं किन्नरों की तरह जीवन यापन करना चाहते हैं, वाकई ये सच्चाई है अपनी स्वेच्छा से बनने वाले किन्नर भी समाज मे उपलब्ध हैं। आज वो जल्द ही समुदाय के संग रहके हावभाव तौर तरीकों को सीख जाते हैं और उन्के साथ टोलियों मे घूम काम भी सिख जाते।

लोग शादी, बच्चे के जन्म आदि कई खुशियों पर किन्नरों को निमंत्रण देते हुए उन्हें खुशी से सौगात भी देते हैं, वहीं कुछ लोग इन्हें हिन भावना से देखते हैं।

2014 मे सरकार ने इन्हें भारतीय नागरिकता का सम्मान दिया ये भी साधारण इंसान की तरह नौकरी कर सकते हैं।

किन्नरों के दुआओं और बददुआओं मे कितनी ताकत होती है मेरी जिंंदगी से संबंधित दो हकीकत भरे वाक्ये आपके साथ साझा करना चाहती हूं।

किन्नरों कि जिंदगी मे चाहे समाज उन्हें सम्मान नहीं देता पर किन्नर अपने समाज मे ही सामान्य इंसानों के प्रति बहुत ही सम्मान भाव रखते हैं वे उनके घर की हर एक खुशी को अपनी खुशी मानते हुए नाच/गाना कर दुआओं से भर जाते है उसके महज़ इंसा उन्हें कुछ सौगातों से नवाजते हैं।

जब प्राचीन काल मे राज दरबारों मे किन्नर नृत्य, गान या दासी बन सेवा करते थे तो उन्हें उपहार स्वरूप राजा तुरंत अशरफ़ीयों से या अधिक प्रसन्नता के चलते तो कई बार अपने ही स्वर्ण आभूषण उतार के दे दिया करते थे। राजा युद्ध पर जाने से पहले तीसरे समुदायों से विजयी होने की दुआएं भी मांगते थे। 

तब जो सम्मान दिया जाता था राज दरबारों मे किन्नरो़ को वो अब कहां देखने को मिलता है। सच खेद होता है मुझे जब कभी देखती हूं की कोई किसी किन्नर को अपमानित कर रहा है।दिल बहुत दर्द से भर जाता है मेरा। 

अब लोग किन्नरों को बहुत ही बुरी नजरों से देखते हैं उन्हें अपशब्द बोलते हैं और तो और उन्हें दुत्कार कर भगाते भी हैं। जबकि वो तो हमारी खुशियों मे सम्मलित होना चाहते हैं और होके बस थोड़ा सा जीवन यापन करने के लिये उपहार, अनाज और क्या। पर लोगों की अभद्रता का शिकार होते, अपशब्द सुनते बेचारे दुख होता है कि हम साधारण इंसान उनका दर्द न जान पाते।

क्या किन्नरों का दिल नहीं होता ये सवाल उठाती हूं आम इंसान से मैं ? 

जैसे हमारा शरीर है हम सांस ले रहे हैं ठीक उसी तरह किन्नर भी हाड, मांस से बना इंसान है उसका भी दिल है, दो आंखें है वो भी हमारी तरह चल फिर सकते हैं सांस ले सकते हैं।परंतु कुछ उस खुदा की रेहमतों के चलते कुदरती सामान्य से बदलाव को लोग विपरीत और अभद्र रुप से टिकाटिपणी कर उन्हें समाज से अलग बताते हैं।जो कि बहुत ही गलत है।

हाल ही मे जब हमारे देश मे महामारी की घडी आई (2020) मे तब मैंने खुद देखा किन्नर समुदायों ने अपने खजानों को हम आम इंसानों के लिये खोल दिया उन्होंने खूब समाज सेवा की भूखों को खाना खिलाया, दवाऐं उपलब्ध करवाई, उनकी यही कोशिश रही की ज्यादा से ज्यादा लोगों के सेवाऐं उपलब्ध करवा सकें कुछ किन्नरों ने तो मास्क भी बांटे।
                
मेरी ही जिंदगी मे किन्नरों से संबंधित दो ऐसे वाकये हैं जो उनके लिये आदर भाव से दिल को भर जाता है सच सम्मान दें किन्नरों को ये भी सांस ले सकते हैं, इनका भी दिल होता है।

हमारे पुराने पड़ोस मे जहां मे पहले रहती थी वहां एक आंटी रहती थी। किटी आंटी, हां यही नाम था आंटी का, किटी धनधान्य मे खूब अमीर, वो किसी से ज्यादा बात ना करती थी और कोई उनसे भी पड़ोस मे ज्यादा बात नहीं करना चाहता था। उनकी दो बेटियां और एक बेटा था बच्चे बैंगलोर मे पढ़ते थे। 

एक बार दोपहर के वक्त हमारे मोहल्ले मे सावन माह मे हिजड़े आऐ तब किटी आंटी घर मे सुकून से सो रही थी तभी अनायास ही घर की घंटी बजी और उन्होंने दरवाजा खोला हिजड़ो को देख पहले मुंह बनाई और बुरे लहज़े मे बोली क्या है ? 

तब एक किन्नर बोला भाभी सावन की खर्ची (दक्षणा) आंटी बहुत चिढ़ गई और बिना सोचे समझे बहुत बुरा भला कहती चली गई और उन्हें गुस्से मे कुछ भी ध्यान नहीं की वो क्या बोल रही है। किटी आंटी ने अंत मे कह दिया अच्छे खासे हट्टे कट्टे हो भीख न मांग कर जाके कमाके खाओ। 

तब वो किन्नर दर्द से भर उठा और रोने लगा उसकी वेदना के आंसू किटी आंटी के दर पे टपक पड़े और अनायास ही कह उठी, काश तू मेरी जगह होती और अपशब्द कहते हुऐ चला गया, पर आंटी ने उसे कुछ ना दिया। वो दिन और आज का दिन आंटी की जिंंदगी मे भूचाल सा आ गया। एक के बाद एक हादसे, दर्द।

अब मैं अपनी ही जिंदगी का एक किस्सा साझा करना चाहती हूं मैं अपनी ही सासु मां की बहन के घर मे किराऐ से रहती थी, मौसी सास नीचे के मकान मे और मैं ऊपर के मकान मे रहती थी।सच बहुत मर्यादा मे और बंदिशों के बीच रहना पड़ता था। मौसी सास को मैं किसी से भी बात करुं पड़ोस मे, ये पसंद ना था। 

एक बार इतफ़ाक से किन्नर आऐ और उस दिन मौसी सास अपने घर को ताला लगा कहीं गई हुई थी किन्नर मेरे पास आऐ मैंने उन्हें दक्षणा दी, वो बोले बेटी बहुत भूख लगी है आज खाना खिला सकती है तू हमें। मैं और मेरा बेटा जो उस समय मात्र चार साल का था खाना खाके उठे ही थे। 

पर मेरे दिल मे किन्नौरों के प्रति सम्मान और उनमें भगवान की छवि है यही मानना था उन्हें बिठाया और तुरंत उनके लिये वक्त मांगते हुए जल्द दाल चावल बनाया साथ अचार रोटी परोसी दिल से खाया भरपेट और शाम के लिये उनको भूख लगे तो एक नमकीन का पैकेट और बिस्कुट का पैकेट दिया उनके दिल से निकली एक एक दुआ मेरी जिंंदगी मे रंग भरती चली गई। 

आज भी जब कभी मैं कहीं भी किन्नर देखती तो दिल श्रृद्धा से भर जाता। आप सभी को दुआ और बददुआ के जीते जागते उदाहरणों से आज मैं अवगत कराई जो की मेरी जिंंदगी के ही आंखों देखे पहलूँ हैं।

विनती है आप सभी से ये भी हमारी तरह इंसान हैं इन्हें सम्मान दें इनके पास भी हमारी तरह दिल होता है, इन्हें भी दर्द होता है, इनके भी जज़्बात, इच्छाऐं हैं।

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