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रिश्ता हमारा

बहुत खूब है रिश्ता हमारा,
मुझे है सबसे प्यारा,
ना  छूटे कभी साथ हमारा।

मैं कुछ बोलूं वो मान जाती हैं,
मेरी बात को सरलता से समझ जाती है।

पहले रुक -रुक के चलती थी,
अब दौड़ जाती है।

कभी-कभी सोचती हूं,
इसका संग ना होता, तो,
मैं खुद को कैसे समझ पाती।
अनकही पहेली बन जाती,

जब से आई जीवन में, मेरे।
जीने का तरीका बदल दिया,

अपने से ज्यादा उससे प्रेम हो गया।
अब उसका साथ छूटे मुझे यह बात गवारा नहीं,

उसके बिना किसी ने इतना जाना नहीं,
मेरी सहेली - मेरी दोस्त - मेरी जान है।
कलम से ही मेरी पहचान है।

मैं भी श्रद्धा समर्पण से उसका साथ निभाऊंगी,
रोज इसके मंदिर में शब्दों की माला समर्पित करते जाउंगी...!!

- जया सोनी
  भोपाल (मध्यप्रदेश)
काव्य 9077690329568063782
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