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आज के आधुनिक युग में बच्चौ की परवरीश

आज के आधुनिक प्रतिस्पर्धात्मक युग मे बच्चौ की परवरिश बहुत जटिल प्रकिया बन गयी है। पुराने समय मे परिवार बडा होने से बच्चौ को दादा - दादी, चाचा - चाची, भुआ, भाईयो बहनो का साथ, संस्कार, प्रेम, प्यार, अपनापन, सहयोग मिलता था। बच्चा सबके साथ रहकर बहुत कुछ देखकर, सुनकर, सहकर, समझकर सिखता था व उसे केयरिंग व शेयरिंग का महत्व समझता था। 
To make children good future human being you need to give child good GERIATIC CARE. 
दादा - दादी, नाना - नानी अपने अनुभव के आधार पर बच्चौ मे अच्छै संस्कार भरते थे। 
सयुक्त परिवार मे साथ रहने के फायदे बहुत है। लेकिन आज परिवार एकाकी हो गया। घर मे माता पिता व अधिकतर एक बच्चा रहता है। माता पिता दोनो बहुत बीजी हो गये। माता पिता समय नही देकर किसी अच्छै नामी स्कुल मे बच्चै को डालकर, उसे नये नये आधुनिक साधन देकर अपने फर्ज की इतिश्री समझते है। बच्चै को खुश रखने की होड मे उसकी हर जायज - नाजायज मांग पुरी की जाती है। बच्चै को 'ना' सुनने की आदत ही नही। धीरे धीरे बच्चा जिद्दी, घमंडी होता जाता है। वह हर चीज मे अपना अधिकार समझने लगता है। उसमे केयरिंग व शेयरिंग की भावना खतम हो जाती है। बच्चा सुबह से स्कुल जाता, दोपहर शाम घर आता फिर ट्युशन जाता व रात को वापस घर आता है। स्कुल मे अपने सहपाठीयो के पास नये नये उपकरण, गैजेट, साधन देखकर उसका भी मन ललचाता। 
अपने माता पिता घर परिवार की तुलना अपने से उॅचे बडे घर के दोस्तो से करने लगता। बचपन से ही उसमे या तो अंहकार या हीनता की भावना आने लग जाती। वह हर समय अपनी व घर की तुलना अपने दोस्तो, सहपाठी के माता पिता घर परिवार से करता है। एक कहावत है कि अगर आप भविष्य मे अपने बच्चौ के यादो मे रहना चाहते हो तो आप उसे आज अपना पुरा समय दो। आज बच्चौ के मन से कुछ जानने, समझने कि जिज्ञासा खतम हो गयी क्योकि उसे हर चीज आसानी से गुग्गल पर मिलने लग गयी। कुछ भी जानना है गुग्गल देख लिया। इसका मनोवैज्ञानिक बहुत नुकसान है। आज बच्चौ का पंचतत्व से रिश्ता खतम सा हो गया अर्थात पहले बच्चै बाहर खेलते थे। उनका आकाश, धरती, बारिश, हवा, धुप (गरमी) से मिलन होता था। इसी कारण हमारे धरती पर विवेकानंद, रामकृष्ण परमहंस आदि संतो - महापुरुषो ने जनम लिया था। अब बच्चै सिर्फ मोबाइल (इनडोर गेम) मे कैद हो गये। इससे उन्हे प्रकृती के गुण उर्जा नही मिलती। यह उर्जा बच्चौ के शारिरिक व मानसिक विकास मे बहुत सहायक होती है। दुसरा जैसा खाये अन्न वैसा रहै मन। पहले बच्चौ को दादी, नानी के हाथ का शुद्ध पौश्टिक आहार खानपान मिलता था जिससे उनका शरीर, दिमाग व समग्र विकास होता था। आज बच्चै खानपान के नाम पर बस पिज्जा, बरगर, मैगी इत्यादि अत्यंत नुकसान देह खाना खा रहे है जो उनके शरीर दिमाग के लिये नुकसान देह है। आज बच्चौ के हाथ मे मोबाइल व इलेक्ट्रौनिक गैजेट दिनभर रहते है जिसकी किरणे बच्चौ के शरीर, दिमाग व आंखों को नुकसान पहुचा रही है। यह एक तरह का स्लो पौईजन है। आज दो तीन साल का बच्चा भी मोबाइल का इतना आदि हो गया कि बिना मोबाईल वह एग्रेसिव हो जाता है। परिस्थितीवश घर में माता पिता अकेले रहते व अपने काम मे बीजी होने से, या अपने दोस्त सहेलियो से बात कर रहे, बच्चै के थोडा सा रोने पर सबसे आसान साधन है बच्चै को मोबाईल दे दो, वह चुप हो जायेगा। धीरे धीरे बच्चा मोबाईल का ऐडिक्ट (गुलाम) हो गया। वह मोबाईल मे इंटरनेट पर अच्छा - बुरा सब देखता है, व समय आने पर उस पर रिऐक्ट भी करता है। बच्चै सिर्फ हमारी बाते सुनकर नही सिखते। बच्चै हमारी एक एक बात ऑब्जर्वर देखते नोटिस करते है। बच्चौ के लिये उनके माता पिता हीरो होते है। कभी कभी परिस्थितीवश कुछ बाते हमारे बस मे नही होती, मजबुरीवश हमे करना पडता है। परंतु कुछ बातों मे सामंजनस्य बिठाकर सुधारा जा सकता है। आज हो सकता है दो पीढी की सोच, वैचारिक मतभेद, परिस्थितीवश आपका बच्चौ के दादा - दादी, माता - पिता से तालमेल नही बैठ रहा। ठीक है परंतु आपका बच्चा आने वाला सुनहरा भविष्य है। हमको हमारे बच्चै के आने वाले भविष्य के खातिर भी तालमेल बिठाकर समझौता करना हमारे सुनहरे भविष्य के लिया अच्छा है। आज के परिवेश मे कोशिश की जा सकती है कि हम अपने थोडे से अंहकार को त्याग कर, ईगो, जिद को हटाकर अपनी सोच को बदलकर बच्चौ को अधिकतम परिवार के बुजुर्ग सदस्यो दादा दादी नाना नानी का साथ संस्कार व प्यार मिले। 

शरद गोपीदासजी बागडी, नागपुर (महाराष्ट्र)
पोर्टफोलियो कंसलटंट, लेखक व समाज सेवी
३ अंतरराष्ट्रीय, २१ राष्ट्रीय पुरस्कार व २१८ संस्थाओं द्वारा संम्मानित. लेखक व समाज सेवी
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